लोकजीवन मे रचल-बसल अघोर पंथ के मरम- रमता जोगी

लोकजीवन आउर लोक संस्कृति के कतौ जब बात होखे लागेला, त चाहे-अनचाहे लोककवि लोगन के भुलाइल संभव ना हो पवेला।भोजपुरिया जगत मे अनगिनत लोककवि भइल बाड़ें, जेकर कहल-सुनल गीत-कविता लोककंठ मे रचल-बसल बाटे। पीढ़ी दर पीढ़ी चलल आवत संस्कार गीत एही के उदाहरण बाड़ी सन। भोजपुरिया समाज मे एह घरी लोककवि के बात करल जाव त कुछ नाँव तेजी से सोझा उपरि आवेलन। अइसने एगो नाँव पं. हरिराम द्विवेदी जी के बाटे। आजु के समय के जीयत-जागत, बोलत-बतियावत,सबके दुख से दुखी आउर दोसरा के सुख मे आपन सुख महसूसे वाला लोककवि बानी पं. हरिराम द्विवेदी जी। लइकइयेँ से खेती-किसानी वाले रेडियो प्रसारन मे सुनल-जानल नाँव “हरि भइया” कई पीढ़ी के “हरि भइया” बानी। अइसने विराट व्यक्तित्व के मालिक के रचनाकर्म पर टिप्पड़ी हमरे लेखा मनई खातिर ढेर कठिन काम बाटे, बाकि अपने अजीज छोट बहिन के बातो टारल हमरे बस के बाति नइखे। एकरे चलते सुरूज़ के दियरी देखावे के एगो परयास कर रहल बानी।

अघोर पंथ का प्रशस्ति मे लिखाइल कविता संग्रह “रमता जोगी” पं. हरिराम द्विवेदी जी के कालजयी कृति बाटे। अघोर पंथ के इतिहास बहुत पुरान बाटे। अघोर के मतलब होला न + घोर, मने जे भयंकर ना होखे, सौम्य होखे। साँचो एह पंथ के माने वाला जोगी लोग भेद,भय आउर घृणा के जीतले रहेला लोग आ शिव स्वरूप होला। इहे शिवत्व ओह जोगी लोग के मस्ती आउर तेज के श्रोत होला। कविवर पं. हरिराम द्विवेदी जी अपने एह काव्य संग्रह मे एकरे गुणगान कइले बानी, एही के बखनले बानी। देखी न-

“वह अघोर औरों की खातिर ही जीता आया है

जग को अमरित बाँट बाँट खुद विष पीता आया है।“

शिव के त लोक के ईश्वर कहल जाला एही से उनुका अनुवाई अघोरी साधु लोग खातिर लोक हित पहिले होखेला। पं. हरिराम द्विवेदी जी त लोककवि बानी एही से इ कविता संग्रह लोकहित के संग्रह बन गइल बा। इ बतिया त सभे सुनलही बाटे- “रमता जोगी,बहता पानी”, मने एकदम निश्छल आउर पवित्र। इहाँ-उहाँ रमे वाला जोगी निष्कलुष होखेला, जइसे बहत पानी। एही लोक मे बसल मुहावरा से एह संकलन के शुरुवातो भइल बाटे। रउवो देखीं-

“रमता जोगी,बहता पानी

इनका भेद कौन जाने है, इनकी अलग कहानी।

रमता जोगी,बहता पानी॥“

अघोरी साधु लोग खातिर लोकहित उनुका पियास होखेला। उनुका लग्गे के आवता, के जाता, इ ना पूछल जाला। उहवाँ जे जाला बिना बतवले सब कुछ पता चल जाला, आ पहुँचे वाला के परसदियो मिल जाला। विराग आउर लोकराग के रसते अघोरी जोगी जवने ऊंचाई आ गहराई मे होखेलन, उहे ओह लोग के शक्ति पुंज बनि के सोझा देखाला-

थाहे सागर की गहराई

नापे अम्बर की ऊंचाई

विजय घृणा पर जिसने पाई

वह ही बड़ा गियानी

रमता जोगी,बहता पानी॥

 

अघोर पंथ मे रमल पं. हरिराम द्विवेदी जी ओकरे गुणगान से अघात नइखे, थाकल नइखे। क़हत बाड़ें-

 

पंथ अघोर गंग-जल-धारा

श्रद्धा भगति,प्रीति का संगम,भ्रम तम नासे अस उजियारा

पंथ अघोर गंग-जल-धारा॥

जइसे गंगा जी मे जा के नदी-नार के नीमन-बाउर पानी आ गंदगी कुल्हि समा जाला आ गंगाजल के महातिम जस के तस बनल रहेला, कुछ अइसने सुभाव अघोरी जोगी लोग के होला। उ लोग लोक कल्यान खाति सब कुछ पी लेवेला, आ उनुके इहवाँ पहुंचे वाला लोग के कल्यान कर देवेला।

माता सर्वेश्वरी के महतारी लेखा पूजनीय,सम्माननीय मानत कवि यूएनयूके महातिम के बहुते नीमन से बखनले बाड़न। उनुके रूप- सरूप के गंगा लेखा पवितर आ उनुके छवि के सुघर मानत कवि पं। द्विवेदी जी क़हत बाड़ें-

सुरसरी सरीखा अति पवित्र विराट जिसका स्वरूप है

जिसमे बसी है तृप्ति, छवि जिसकी अनंत अनूप है।

 

कवि पं. हरिराम द्विवेदी जी एहिजे ना रुकल बाड़ें । आगहूँ देखी-

सबकी जननी सबको चाहे

रीति,नेह की नीति निबाहे

सबसे ही वह आस लगाए

माँ सर्वेश्वरी सगुन जगाये।

 

अघोर पंथ के संत बाबा कीनाराम के किरती गावे मे जरिकों कोताही द्विवेदी जी से नइखे भइल। कवि कीनाराम बाबा के गुणगान दिल खोल के कइले बाड़े। रउवों देखीं-

आगम अथाह सिंधु मे नइया

आकुल मन कोई न खेवइया

कीनाराम नाम बन जाये, खेवनहारा

मिले किनारा॥

अघोर पंथ के जोगी लोग आपन पहचान ना बतावेला, वैरागी लेखा जिनगी, बहरा से एकदम कठोर होला। बाकि दोसरा के दुख से बरफ लेखा पघिल जाले। इहे सुघरई लोककवि पं. हरिराम द्विवेदी जी के मोह लेवेले। एही से उ ई क़हत ना अघालें-

अनजाना रहकर सब जाने

कोई उसे नहीं पहचाने

पत्थर है, पर पीर देखकर बर्फ सरीखा गलता है।

लोककवि लोकरंजन आ लोकमंगल के कामना लेके जीयेला। आपन कवि धरम निभावेला आ उहे ओकरी कविता के धारा होले। पं. हरिराम द्विवेदी जी के कृति “रमता जोगी” के इहे सनेसा बा। कवि अजुवो भक्ति आ आध्यात्म के गीत लिखत अपना के भक्त कवि के पाँत मे देखेला सभे के मजबूर क देले बाटे। जवने बाति के लेके पं. हरिराम द्विवेदी के ई करम बा, उ सराहे जोग बा। हमरा बिसवास बाटे कि अइसन कृति कवि जन कवि के पाँत मे एकदम आगे ठाढ़ करे मे जरिको कोताही ना करी। एही शुभकामना के संगे कवि के एह कृति के हमार नमन बा। “रमता जोगी” अब पढ़निहार लोग के सोझा बा, उमेद बा कि ढेर लोग एकरा के पढ़ी आ भक्ति रस से सराबोर होखी।

 

किताब- रमता जोगी

कवि- पं. हरिराम द्विवेदी

मूल्य- 100/-

प्रकाशन- पिलग्रीम्स प्रकाशन, वाराणसी

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

सम्पादक

भोजपुरी साहित्य  सरिता

Related posts

Leave a Comment