ठकुरान के ठसक

विंध्य के पहाड़ियन के घाटी में बसल गाँव आ उहाँ के रहनिहारन के एगो अलगे सुघरई होले। पहुनई में त करेजा काढ़ि के रख देला लो, बाकि मोछ के बात आ गइल बेखौफ आर-पार करे खातिर उतर जाला लो। खेती- किसानी आ गोरू-बछरू से नेह छोह राखे वाला लो अपनइत नीमन से निबाहेला। अइसने एगो गाँव के बाति जवना गाँव में ढेर बाभन लोग रहे। ओह गाँव में अउरो जात धरम के लोग रहे बाकि एगो खास बात उ ई कि ओह गाँव में एगो राजपूत परिवारो बसल रहे। धन संपदा से भरल-पूरल, गाँव में बढ़िया घर आ सीवान में बढ़िया खेत । गाँव के बड़ लोगन में गिनती के संगही उठ-बैठ। रहन-सहन आ बात-बतकही में नफासत झरत रहे। ओह घर के मुखिया रहने बड़ भाई सुमेर सिंह, लमहर कद-काठी,गठल सरीर, गढू -गम्हीर अउर रोबदार आवाज उनुका पहिचान रहे। छोट भाई कुबेर सिंह कद-काठी में त अपने बड़ भाई लेखा रहने बाकि रहने सोझवा। अपना दुअरहूँ पर जब बाबू सुमेर सिंह बइठस तबों धप धप उजर धोती,कलफ लागल कुरता आ उजरे साफा। बगल में पान से भरल पनडब्बा  हर घरी राखल रहे उहाँ के लग्गे।

लगन-पताई के दिन चलत रहे। बाबू सुमेर सिंह अपना दुअरे हर घरी लेखा बइठ के अखबार पढ़त रहलें। तबे 3-4 लोग उहाँ के दुअरे चहुंपल आ परनाम-पाती  क के ठाढ़ हो गइल। तब बाबू सुमेर सिंह बेचना के हाँक लगवलें, बेचना उहाँ के नोकर रहे, तुरते हाजिर भइल। तब बाबू सुमेर सिंह ओकरा के बाबू साहेब लो के बइठे चाह-पानी के इतिजाम करे ला अरहवलें। बेचना तुरते काम में लाग गइल। पहिले बइठे खातिर कुरसी राख़ के ओकरा सोझा एगो टेबुल राख़ देहलस। फेर धउर के मीठा आ पानी ले आइल

, सभे के बारी बारी से पानी पिया के चाह-नमकीन लियावे ला चल गइल। थोर देर में बेचना चाह आ नमकीन लेके मेहमान लो के सोझा हाजिर हो गइल। मेहमान लो का संगही बाबू सुमेर सिंह चाह के चुसकी लेत मेहमान लो का संगे आइल बाबू धरम सिंह से मोखातिब होत पुछलें-” बाबू साहब, अब बतावल जाव, अवनई के के कवनो खास मकसद बा कि एहर से जात रहलीन ह, एही से हालचाल लेवे आ गइनी हा?”

बाबू साहेब! हमनी के आइल त एगो मकसदे से बानी सन , धरम सिंह कहलें। मकसद ई बा कि रउरा छोट भाई के बेटा सतेन्दर सिंह परिवार में सभेले बड़ बाड़ें, उनही के बियाह खातिर आइल बानी सन।  जोगिंदर बाबू के एगो बेटी बा, ओही ला रउरा से हथजोरिया बा। राउर दया हो जाई त  जोगिंदर बाबू राउर समधी बनि जइहें। दूनों पलिवार देखल सूनल बा आ संस्कारित बा। इजत-मरजाद पर कतही केहु तर्जनी ना उठा सकत। बहुत सोच-विचार के हम जोगिंदर बाबू के संगे लिया के आइल बानी आ हमरा बिसवास बा कि रउवा हमरे एह अवनई के मान जरूर राखेम। बाबू धरम सिंह एकसुरिये आपन बात बोल के चुप भइलें।

रउवा सभे पहिले सतेन्दर बबुआ के देख लेहीं, जवन पूछे-जाँचे के होखे, उ पूछ-जांच लेहीं,  पसन क लेही, फेरु आगु कुछ बात होखी न। जानत त होखबे करब कि सतेन्दर बबुआ सिंचाई विभाग में सरकारी नोकरी में बाड़न। एतना कहला के बाद ठाकुर सुमेर सिंह बेचना के हांक लगावत सतेन्दर बबुआ के संगे लियावे के कहलें। गंठल कद काठी आ  सुघर छरहर सरीर के मालिक रहलें सतेन्दर बबुआ। एक्के नजर में लइकी के बाबू-चाचा के पसन पर गइलन। गाँव में घर आ सिवान में खेती, नोकरिहा लइका, इजतदार आ समरिध पलिवार अउर का चाही एगो लइकी के बाप के। ई सगरी एकही जगहा भेंटा जाव, भल त अइसन होत नाही, अगर कतो अइसन कुछ बा त केहु लपके में ना पिछुआला।  त इहाँ जोगिंदर बाबू  कइसे पिछुआ जइतें। बाबू  जोगिंदर सिंह तुरते हामी भर लिहाने आ बाबू धरम सिंह से बाति आगे बढ़ावे ला निहोरा कइलें।

अब बारी लइकी के देखे बात आ दिन धरे के आइल त बाबू  धरम सिंह बड़ गम्हीर हो के कहलें कि हमार त दूनों घर  आ लइका लइकी देखले रहल ह। अब जइसन बाबू सुमेर सिंह जी के आदेश होई, उहे होखी। हमनी के हर तरह से तइयार बानी सन। उनका कहे के ढंग आ बाति राखे के सहूर के फेरा में ठाकुर सुमेर सिंह अझुरा गइलें। ठसक का संगे कहलें कि जब लइकी बाबू धरम सिंह के देखल बा त बूझी कि हमरो देखले बा।

बाबू धरम सिंह तुरते कहि भइलें कि बाबू साहेब ! रउवा के लइकी देखे के चाही आ नाही त फेर कुछों कहे -सुने लायक ना बाचेम।

हम काहें के कुछों कहेब, जब कह देनी कि राउर देखल बा त हमरो देखले बा। ठकुरान के मरजाद त इहे नु होला कि एक बेर कहि देलें त ओहके निभावल उनुका शान में सामिल हो जाला।

जथाजोग लें-देन के बाति के संगे बियाह तय हो गइल। तिथि-मिति से तिलक भइल आ हरदी-धान बंटा गइल। लगन पतरियो लिखा गइल। मजे -मजे में बियाहो तड़क-भड़क का संगे हो गइल। अगिला दिने लइकी के बिदाई कराके ठाकुर सुमेर सिंह गावें आ गइले।

ससुरा के रीति-रेवाज़ निभावत आ कक्कन छोड़ावत,देवी-देवता लोग के पूजा-फरा करत-करत पहिला दिन बीत गइल। अँगना में पूजा के रसम बाकी रह गइल ओकरा बाद मुँह देखाई के रसम होला । ओकरा बादे लइका-लइकी एक दोसरा से मिल पावेलन।

दोसरा दिन अँगना में पूजा होखे लागल  तबे दुअरे चउथारी लेके लइकी के नइहर से 15-20 लोग पहुंचल। ठाकुर सुमेर सिंह मेहमान लोगन के आवाभगत में अझुरा गइलें। फेर उहें एहर-ओहर के बात-बतकही चले लगल। पूजा के बाद लइकी के मुँह देखाई के रसम रहल। भर गाँव से लइकी मेहरारू लो ठाकुर साहेब के बहुरिया के मुँह देखाई करे आवे लागल। मुँह देखला का बाद मेहरारू आ लइकी भुसुराते जात कइयन के देखलें बाबू साहेब। उनुकर  माथा ठनकल। मनही मन सोचलें कि कुल्हि लइकिया आ मेहररुआ काहें आ का भुसुर-भुसुर बतियावत जात बानी सन। कुछ त बात जरूर बा? अतने में कहरान के दूगो मेहरारू लउटत लउकनी। ठाकुर सुमेर सिंह हाँक लगा के बोलवने आ पुछलें, ए चाची कवनों बात बा का?

बाबू सुमेर सिंह का अतना पूछते कमरिनिया चाची फूट परल। कतना रूपिया गनवला ह, हो सुमेर बाबू, जे सुघर -साघर लइका के सिरे कानी मेहरारू लाद दिहला। बियाहे करे के मिलल त, तहरा के कानिये लइकी भेंटल ? लइकवा में कवनो कमी बा का? कि ओकर बियाहे ना होत रहल ह जे जवन मिलल उहे उठाय के ले अइला ह? भा कवनो अउर दुसमनी भाई के लइका से साधे के रहल हा? अतना सुनते बाबू सुमेर सिंह के काठ मार देहलस। मुँह खुलल के खुलले रहि गइल?  फेर त मारे क्रोधन ठाकुर धरम सिंह के गरियावते बइठका का ओर बढ़ने।

ठाकुर धरम सिंह त एह खातिर पहिले से तइयार रहलें। ई कुल्हि उनही के कइल -धइल रहल। ठाकुर सुमेर सिंह के सोझा अवते ठाकुर धरम सिंह ऊंच अवाज में बोल पड़लें, रउवा बाबू साहेब बानी कि कुछ अउर। जब ओह दिन जहिया तय-तमान होत रहे त हम कई बेर कहनी कि बाबू साहेब, लइकी देख लेही, बाद में जनि कुछो कहेम कि कनियवाँ लूल,लंगड़,आन्हर भा कानी बिया। मरद हई त मरद के बात एक्के होला। अब काहें नटई फ़ारत हई। जब 100 के समाज में कनियवा के बियाह के ले आइल बानी त ओके निभावहूँ के पड़ी। बाबू सुमेर सिंह के सोझा कवनो उत्तर ना सूझल। उनकर ठकुरान के ठसक धइल के धइल रह गइल।

 

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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