सोहर

घरवा में जनमेली बिटिया त , हिरीदा उमंग भरे हो।

बबुनी तोहरा प सब कुछ नेछावर, सोहरियो सोहरि परे हो।

बाबा खुशखबरी जे सुनले, धधाइ घरवा अइलन हो,

बबुनी पगरी के पाग सोझ कइलन, मोछिया अइठी बोलेहो।

गुरु जी के अबहीं बोलईबी, पतरा देखाइबि , ग्रह मिलवाइबि हो।

बबुनी तुहीं मोरा कुल के सिंगार, सृजन मूलाधार हउ हो।

सुनि सुनि अनध बधाव, जुटेले पुर गाँव, ले ले के उपहार नू हो।

बबुनी तहके निहारे खातिर धरती, आकास लागे एक भइले हो।

तहके पढ़ाईबि लिखाइबि , अकासे ले उठाइबि , दुनिया घुमाइबि हो,

बबुनी तहरा हुनर के सहारे, अन्हरिया मेटाइबि हो।

कहे ‘रसराज’ आजु बेटी पर, केकरा ना गुमान होई हो,

बबुनी जुग जुग जीय ई असीस, जगति अभिमान बन हो।

 

  • शिव जी पाण्डेय ‘रसराज’

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