बाप के माल ह

इनकर उनकर सबकर

दबा के हजम कइल

रउरे चाल ह।

बेसरमी से कहेलन

बाप के माल ह।

 

कुछो जोड़-घटा द

इहाँ उहाँ के कुछो सटा द

कुछ गूगल से उधार करS

बाचल-खुचल अनुवाद करS

फेर कतनों अनवाद करS

थेथरई त ढाल ह।

बाप के माल ह।

 

एगो गिरोह बना ल

कुकुर-बिलारो के मंच पर चढ़ा द

जेकरा स के नइखे पता

ओकरा शोध के काम पकड़ा द

कबों अपनों विरोध करवा  द

एह पर त सभे निहाल ह।

बाप के माल ह।

 

कतों घुसुर के तर्क-बितर्क

अपना के सही दोसरा के गलत बतावा

चुहेड़न के जुटा के हँसी ठट्ठा उड़ावा

मन होखे त महफिल सजावा

कबों-कबों पिकनिक मनावा

रउरा ऊंच भाल ह।

बाप के माल ह।

कबों सोझा केहु बरोबर भेंटा जाय

गुड़ चूँटा लेखा लपटा जाय

अगली बगली देखिके

खुदही सरक  जाय

इहे मंतर मय गिरोह के पढ़ावा

देखि के दुनिया निहाल ह।

बाप के माल ह।

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

Related posts

Leave a Comment