बतावा बुढ़ऊ

काहें काशी पर मोहइला

बतावा बुढ़ऊ।

काहें आदि देव कहइला

बतावा बुढ़ऊ।

 

जाने के त सभ जानेला हउवा बड़का दानी

भगतन खातिर कई जाला, बढ़-चढ़ के मनमानी

काहें असुरन पर लोभइला

बतावा बुढ़ऊ।

 

जेकर अरजी तहरे लग्गे दुख ओकर भागेला

दाही-दुसमन भूत-प्रेत, पानी सबही माँगेला

काहें दसानन से लुटइला

बतावा बुढ़ऊ।

 

हम निरधन तहरा सोझा,हमके राह देखावा

मझधार में बूड़त नइया, ओके पार लगावा

काहें हम पर ना छोहइला

बतावा बुढ़ऊ।

 

कैलास के बासी हउवा, मृग छाला पहिरेला

जंगल झाड़ का बतलाईं, पहड़ो में रहि लेला।

काहें हमरा के भुलइला

बतावा बुढ़ऊ।

 

काहें आदि देव कहइला

बतावा बुढ़ऊ।

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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