सुनीं ना अरज मोरे भइया हो

भोजपुरी कविता प जब बात होई त भोजपुर के भोजपुरी कविता प जरूर बात होई भा होखे के चाहीं। भोजपुर के जमीन भोजपुरी कविता खातिर काफी उपज के जमीन ह। भोजपुर के भोजपुरी कविता के एगो महत्वपूर्ण पक्ष ह ओकर जनधर्मी मिजाज। सत्ता से असहमति आ जन आ जन आंदोलन से सीधा संवाद।

रमाकांत द्विवेदी रमता, विजेंद्र अनिल, दुर्गेंद्र अकारी एही जमीन के खास कवि हवें। कृष्ण कुमार निर्मोही के नांव भी एह जमीन से जुड़ल बा। एह बीचे जितेंद्र कुमार के भी कविता सोसल मीडिया प लगातार पढ़े के मिल रहल बा। जितेंद्र कुमार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी- मार्क्सवादी लेनिनवादी से जुड़ल बाड़न। ई पूर्णकालिक कार्यकर्ता हवें। भोजपुर जिला कार्यालय के प्रभारी। जाहिर बात बा कि रोज रोज इनका अनेक तरह के लोग से भेंट-मुलकात होत रहेला। किसान से, मजदूर से, छात्र से, नौजवान से, महिला से। अनेक तरह के सवालन से रोज -रोज पाला पड़त रहेला। कई कई मोरचा प काम करे वाला लोग से भी इनकर रोज के भेंट ह। एह सबसे हासिल ज्ञान आ अनुभव के अभिव्यक्ति इनका गीतन में हो रहल बा।

जितेंद्र कुमार खुद निम्नमध्यवर्गीय गंवई परिवार के हवें। पार्टी ऑफिस में रहे के चलते इनका रमता जी, अकारी जी जइसन अनेक कार्यकर्ता कवि लोग के देखे सुने के मोका मिलल बा। ओह लोग से बहुत कुछ सुने आ समझे के भी। जनता के दुख-दरद आ ओकर जुझारूपन के बोध के बीचे इनकर कवि आ कविता आकार ले रहल बा। बिना कवनो शोर शराबा के।

भाकपा माले के कार्यक्रम, ओकर राजनीतिक एजेंडा के कविता के विषय बनावे के कला ई अकारी जी से लेत लउकत बाड़न।

इनकर एगो गीत ह -“भोंभा लेके विकास गुन गावल करीं।” भोंभा के मतलब हर भोजपुरिया जानत बा। बहुत पहिले से ही लाउडस्पीकर के लोग भोंभा कहेला। आजकल सरकार बहुते जोरशोर से आपन काम के परचार करे में लागल बिया। ओकरा हाथ में मीडिया बा, गोदी मीडिया। ई सब सरकारी भोंभा ह। सरकार अब एही भोंभा के जरिए आपन छवि चमकाऊ परचार में लागल बिया। बिहार के मौजूदा सरकार होखे भा केंद्र के। विकास- विकास खूब गवा रहल बा। बाकी कवि कुछ दोसर बात कह रहल बा। बिहार सरकार के नल- जल योजना के हकीकत बता रहल बा। आकासे टंगाइल बिना जल के टंकी के ओर इशारा करत बा

“खलिहा टंकी आकासे देखावल करीं

भोंभा लेके विकास गुन गावल करीं।”

कुछ बात बा जेके ठीक से समझे के होई। गीत में चापाकल आ इनार के सुखाए के बात बा। का एह के हलुके में लेवे के चाहीं!

“नल जल के जबसे दिहलीं पाइप पसार

चापाकल बन भइल, गंउवा के इनार।”

एकरा बाद बा खाली टंकी। ठीक अइसहीं जइसे गैस सिलिंडर बांटे के जोजना चलल। आ फेर हजार रोपया से ऊपर हो गइल सिलिंडर के दाम।

भरोसामंद सहारा जे रहे से ठप हो गइल आ जेकर सपना देखावल गइल ऊ फेल भ गइल भा पहुंच के बहरी।

एह गीत में एगो अउर बात बा। ऊ बात बा कि सरकार खूब जोर शोर से

खुशहाली के परचार करा रहल बिया आ एने गरीबन के हांडी लेवन लागे के जुगुत नइखे बनत। लेवन हांडी के पेनी में लागेला। जे हांडी के पेनी देखे के दृष्टि वाला बा, जाने के चाही कि ऊ समाज के सबसे निचिलका पावदान के आदमी के माली हालत देखे के दृष्टि वाला बा। ऊ देख रहल बा कि जीए के जद्दोजहद में लोग गांव छोड़ रहल बा, कवनो सवख में ना।

महंगाई आज चरम से चरम प बा। आम आदमी के जियल मुहाल बा। हर दौर में महंगाई प भोजपुरी में गीत लिखाइल बा। अटल बिहारी वाजपेयी के सरकार के समय अकारी जी लिखलें – ‘महंगइया हो बड़का भइया बढ़ल बेशुमार।’ इंदिरा गांधी के समय खइनी के बढ़ल दाम प अकारी जी गीत लिखलें। खइनी -बींडी प महंगी के मार भोजपुरिए कविता गीत के विषय हो सकेला। जितेंद्र के भी एगो गीत बा –

” डेढ़ा सवइया रोज बढ़े महंगइया मोरे भइया हो

मजधार में जिनगी के नइया मोरे भइया हो।”

हम एह बात प गौर करे प मजबूर बानी कि बेशुमार बढ़त महंगाई प गीत लिखत समय अकसरहां मोरे भइया, बड़का भइया जस टेक अदबद काहे आवेला! बुझाला जे ई टेक आपरूपे आ जाला। बात अपना लोग से कहे सुने के क्रम में। गीत के अगिला कड़ी देखीं-

” करुआ तेल के बोली रोज भइल जाता टांठ हो

आग लाग जाता देख गैसवा के ठाठ हो

दामवा बढ़े शान झरेला दवइया, मोरे भइया हो।

रोज रोज बढ़े दाम डीजल पेट्रोल के

नाचवा देखावे महंगी लाता कपड़ा खोल के

नइखे बुझात कहवां घुसत बा कमइया, मोरे भइया हो।”

“नाचवा देखावे महंगी लाता कपड़ा खोल के” प गौर जरूर करे के चाहीं।

ई सामान्य कथन ना ह। ई करारा व्यंग्य ह, मार ह, बलुक सबसे कारगर। एह व्यंग्य से मौजूदा सरकार लंगटे हो जात बिया। ओकर सजल- धजल ठाट के धज्जी धज्जी उड़ जाता।

जितेंद्र कुमार के पासे स्मृति के खजाना जे बा, ऊ कविता के धज में जगह ले रहल बा। जाड़ा के कड़ा शासन में कउड़ा के सहारा बा इनका स्मृति के खजाना में। पुअरा -पेटाढ़ी के अलम बा।

इनका लगे एगो जिद बा, समझ बा, भरोसा बा कि “बीती रात अन्हरिया आई नयका भोर हो।” रमता जी कहत बानी कि “फाटी कुहेस सब घरी अन्हार ना रही।” जितेंद्र जी भोजपुर के भोजपुरी कवि हवें।

– डॉ बलभद्र

गिरीडीह कालेज, गिरीडीह

 

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