महेंदर मिसिर : गीत- संगीत के ढाल का संगे राज धरम निबाहे वाला मनई

पूरबी के कालजयी गीतन के लिखनिहार मने पूरबी के जनक, भोजपुरी के पहिलका महाकाव्य ‘अपूर्व रामायन’, प्रेम , विरह आ  निरगुन गीतन के सिरजना करे वाला एगो अइसन मनई जे समाज आ देस के खातिर आपन सागरी जिनगी दाँव पर लगा देलस। जेकरा के आज भोजपुरी अस्मिता के प्रतीक का रूप में जानल- मानल जाला। बाकि ओकरा के ऊ अथान ना देहल जाला। बंगाल के सन्यासी विद्रोह के सहचर आ अंग्रेजन के राज क आर्थिक रूप से करिहाँय तूरे खातिर नोट छाप के सगरे सरकारी तंत्र के चूल्ह हिलावे वाले महेंदर मिसिर का संगे न्याय करत उपन्यास  ‘ महेंदर मिसिर’ जवना के रचनाकार पं रामनाथ पाण्डेय जी बानी । एह उपन्यास के संशोधित संस्करण 2021 में सर्वभाषा प्रकाशन से प्रकाशित भइल बाटे। उपन्यास के पढ़ला का बाद महेंदर मिसिर के जवन रेखाचित्र उभर के सोझा आ रहल बा , उ भोजपुरी के पहिल उपन्यासकार पं रामनाथ पाण्डेय जी के लेखनी के बेर बेर गोड़ छुवे ला उदबेगे लागता। ‘ महेंदर मिसिर’ उपन्यास के पहिल संस्करण 1996 में आइल रहे आ ओह पर ओह घरी ‘श्री राज मंगल सिंह’ सम्मनो मिलल रहे, तबो आलोचक लोगन के दीठि महेंदर मिसिर का संगे न्याय करे में कोताही कइलस, जवना का चलते महेंदर मिसिर के जवन अथान भोजपुरिया समाज  आ साहित्य में बने के चाहत रहे, ना बन पावल।

(महेंदर मिसिर के केंद्र में राखिके भोजपुरी में एगो अउर उपन्यास अदरणीय पाण्डेय कपिल जी के  ‘फुलसूंघी’ बा। ओह उपन्यास के जे पढ़ले होखी आ ओकरा बाद पं रामनाथ पाण्डेय के उपन्यास ‘महेंदर मिसिर’ के पढ़ले होखी। ओह बेकती के दूनों उपन्यासन में गढ़ाईल महेंदर मिसिर के चरित सोझा नाच जाई आ दूनों के अन्तरो बुझा जाई । इहवाँ हम तुलनात्मक रूप में कुछो ना कहेम। रउवा सभे दूनों उपन्यासन के पढ़ी आ खुदे बुझीं , कि कहवाँ का खेला भइल बा।)

शुरुवात करे से पहिले हम रउवा सभे के सोझा एक-दू गो बातिन के जिकिर करल चाहतानी-

 पहिल बात-भोजपुरी के नामचीन आ स्थापित साहित्यकार पं मोती बी ए जी पं रामनाथ पाण्डेय जी के महेंदर मिसिर पर एगो उपन्यास लिखे खाति काहें बेर बेर हुरपेटलें?  एह बाति के जानल बहुते जरूरी बा।

आईं सभे पहिले एहिके के जान लीहल जाव। महा पंडित  राहुल सांस्कृत्यायन जी के प्रेरणा से जब पं रामनाथ पाण्डेय जी भोजपुरी के पहिल उपन्यास ‘बिंदिया’ 1956 में लिखनी। जेकरा के पढ़ला का बाद उहाँ के टिप्पड़ी धियान देवे जोग बा – ” भोजपुरी में उपन्यास लिखकर आपने बहुत उपयोगी काम किया है। भाषा की शुद्धता का आपने  जितना ख्याल  रखा है, वह स्तुत्य है । लघु उपन्यास होने से यद्यपि पाठक पुस्तक समाप्त करते समय अतृप्त ही रह जाएगा, पर उसके स्वाद की दाद तो हर पाठक देगा। आपकी लेखनी की उत्तरोत्तर सफलता चाहता हूँ।”

अइसन टिप्पड़ी पढ़ला आ जनला के बाद मोती बी ए जी के इहाँ से जबर कवनो अउर बेकती ना लउकने जिनका के महेंदर मिसिर जइसन इतिहास पुरुष पर उपन्यास लिखे ला उपायुक्त मानल जाव। खास कारण ई रहे कि जवना समय स्त्री विमर्श जइसन कवनो अवधारणा न रहला का बादो उहाँ के बिंदिया के कथानक के स्त्री विमर्श केन्द्रित क दीहलन।

दोसर बाति पर रउवा सभे के धियान खींचल चाहत बानी। एगो खास फेसबुक के (16 जून 2018) के पोस्ट बाटे, जवना के लिखले बानी आदरणीया श्रीमती मीना पाण्डेय जी आ एह पोस्ट के कबों अपने बतकही में केशव मोहन पाण्डेय जी उद्धृत क चुकल बानी। ओह पोस्ट के कबीर बाबा लेखा  ‘जस के तस धर दीनि चदरिया’ का तरज पर हमहूँ राख रहल बानी-

 

एक ससुर का पिता होना …एक श्रद्धांजलि मेरी भी …

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स्व.श्री रामनाथ पांडेय जी !! जन्मतिथि 8 जून 1924 , पुण्यतिथि 16 जून 2006, यानि बारह वर्ष पूर्व आज ही के दिन प्रातः तीन से चार के बीच वे गोलोकगमन को प्रस्थान कर गए। अक्सर अपने बुजुर्गो से सुना था ‘पुण्यात्माएँ भोर के समय ही संसार से विदा लेती हैं’ उस दिन यकीं भी हो गया।

अब बात उनकी साहित्यिक यात्रा की …

अपने जीवन काल में वे अपने पारिवारिक और नौकरी की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाते हुए अनवरत साहित्य साधना में संलग्न रहे। उनका उपन्यास ‘बिंदिया’ जिसे उन्होंने 1956 में लिखा था, को भोजपुरी भाषा का प्रथम उपन्यास होने का गौरव प्राप्त है। इसके अलावा उन्होंने महेन्दर मिसिर, इमरीतिया काकी, सतवंती का सृजन किया। अनेक कहानी संग्रह (भोजपुरी) के आलावा हिंदी में भी उनके दर्जनों उपन्यास प्रकाशित हुए, जिसमे से एक ‘कीचड़ और कमल’ थी।

अब बात एक ससुर के पिता बनने की …

विवाह से पहले हर लड़की अपने ससुराल पक्ष को लेकर बहुत सी अनिश्चितताओं से घिरी होती है। सब कैसे होंगे? कैसे निभेगी सबके साथ!! उस समय में सबको साथ लेकर चलने की सीख माता-पिता दिया करते थे। मुझे भी यही सीख देकर विदा किया गया था। ससुर जी के बारे में इतना समझी थी कि सिद्धांतवादी है, गलत बर्दाश्त नहीं करते, कड़क हैं, एक बार क्रोध आ गया तो खैर नहीं … सबको साथ लेकर चलते हैं आदि आदि … बाप रे … इतना सब … काफी था सहमने के लिए …

उस दिन मेरी मुँह दिखाई की रस्म होनी थी। उन दिनों आज के जैसे रिसेप्शन नहीं होते थे। मेरा भी नहीं हुआ था। बस रस्म के लिए एक कमरे में एक कुर्सी रखी जानी थी, मुझे उस पर एक लंबा सा घूँघट निकाल कर बैठना था, कोई कह रहा था आँखे बंद रखना तो कोई कहे, नहीं खोलो मगर झुका कर रखना !! मैं परेशान ! तभी एक गरजदार आवाज आयी … ‘ये क्या तमाशा लगा रखा है?’ सबकी सिटी पिट्टी गुम ! मेरी भी ! सच सुना था बहुत गुस्सैल हैं। तभी फिर सुनाई दिया ‘घूंघट क्यों डलवा रखा है इतना लम्बा ? बस सर पर पल्ला डलवाओ, सब आएँगे और ऐसे ही दूर से देखकर जाएँगे और आँख क्यों बंद करेगी या नजरे क्यों झुकायेगी? क्या अंधी है या कोई गुनाह किया है?’ सब चुप !! कोई जवाब नहीं !! लेकिन मुझे कुछ सवालों के जवाब मिलने लगे थे। कुछ भरम टूटे थे कि किसी को सिर्फ किसी से सुन कर उसके बारे में यूँ ही अपनी राय नहीं कायम करनी चाहिए। और मेरे मन का डर उस दिन कुछ पिघला था।

रस्म पूरी हुई। दिन गुजरने लगे। रहते-रहते पता चला सब उनको काका बोलते हैं। बच्चों के साथ मेरी सास भी उन्हें काका ही बोल देती थीं। ‘काका क्यों’ पूछने पर मेरे पति बिमलेन्दु जी ने कहा कि बड़े पापा के बच्चों को सुनकर हम भी वही बोलते हैं। ओ..अच्छा …मैंने कहा। अब मेरी समस्या ! मैं क्या बोलू ? ससुर जी मुझे दुल्हिन बोलते थे। मैं बस आप खाना खा लीजिये, चाय पी लीजिये ही कर पाती थी। किसी ने मुझे फोर्स भी नहीं किया ये एक बहुत अच्छी बात थी। दिन गुजर रहे थे की अचानक एक दिन खबर आती है कि मेरे पिता नहीं रहे! मैं बिलख-बिलख कर रो रही थी कि एक हाथ मेरे सर पर आया, साथ ही एक धीर-गंभीर सी आवाज ….‘मीना (मेरे बाबूजी मुझे इसी नाम से पुकारते थे) एक पिता गए तो क्या हुआ ? मैं हूँ न तुम्हारा एक पिता !!’ आज पहली बार उन्होंने मुझे दुल्हिन न कह कर मीना कहा था और मैं सब कुछ भूल कर उनके पैरों पर झुक गयी थी। मन से और मुँह से यही निकला था …. ‘काका …’

और उसके बाद मुझे पिता की कमी कभी भी महसूस नहीं होने दी। हमेशा मेरे साथ रहे मेरे हर फैसले में …अब बस इतना ही। उम्मीद करती हूँ कि हर लड़की को ऐसा ससुराल मिले और ऐसे ही एक ‘काका’

उनकी पुण्यतिथि पर शत शत नमन !!”

हमरा एह पोस्ट के जिकिर करे के एगो खास मक़सद बा, उ ई कि साहित्यकार के जवन व्यक्तित्व होला, ओकरा विषे  में ओकर नजदीकी लो जेतना नीमन से जाने-बुझे लें, अइसने कुछ ओकरा लेखनों में उभर के सोझा आवेला । हमरा ईसारा के अब रउवा सभे बूझे लागल होखेम । )

अब हम आ रहल बानी अपने विषे पर मने ‘महेंदर मिसिर’ उपन्यास पर हमार आपन विचार राखे । अगर एक लाइन में सोझ साफ कहल जाव त –

 

“महेंदर मिसिर : गीत- संगीत के ढाल का संगे राज धरम निबाहे वाला मनई “के चरित के लेखा-जोखा ह ।

अब आगु बढ़े से पहिले कुछ महेंदर मिसिर के बारे में जान लीहल जरूरी बुझाता  –

“बिहार, छपरा के काहीं-मिश्रवलिया गांव में 16 मार्च, 1886 के माता गायत्री देवी आ पिता शिवशंकर मिसिर के घरे  जनमल महेन्दर मिसिर के भिखारी ठाकुर आपन गुरु मानत रहलन। मिसिर जी पहलवान रहनी।  कसल देह रहे।  धोती-कुर्ता पहिनी।  गरदन में सोना के सिकड़ी आ मुंह में पान चबात रहीं।  महेन्दर मिसिर के पत्नी के नाम परेखा देवी रहे। परेखा जी कुरूप रहली।  त कादों एही का चलते  गीत-संगीत में अपने मन के भाव उतरले बाड़ें महेन्दर मिसिर।  हिकायत मिसिर एकलौता बेटा रहलें मिसिर जी के।

गीतन के कुछ बानगी  देखीं-

(1) अंगुरी मे डंसले बिआ नगिनिया, ए ननदी दिअवा जरा दे ।

2) सासु मोरा मारे रामा बांस के छिउंकिया, सुसुकति पनिया के जाय,

 पानी भरे जात रहनी पकवा इनरवा, बनवारी हो लागि गईले ठग बटमार।

(3) आधि आधि रतिया के पिहके पपीहरा, बैरनिया भईली ना,

मोरे अंखिया के निनिया बैरनिया भईली ना ।

4) पिया मोरे गईले सखी पुरबी बनिजिया, से दे के गईले ना,

 एगो सुगना खेलवना से दे के गईले ना।

एह गीतियन के सुनते बहुते लोग बता सकेले कि एकर लिखनिहार महेंदर मिसिर जी बानी।

ढेलाबाई के कोठी में बनल शिव-मंदिर में 26 अक्टूबर,1946 के महेन्दर मिसिर एह दुनिया के अलविदा कह देलें बाकिर लोकमन में उहाँ के  अथान अजुवो जस के तस बा। ”

महेंदर मिसिर उपन्यास के रचना उपन्यासकार पंडित रामनाथ पाण्डेय जी के कहानगी का हिसाब से मोती बी ए जी के बेर बेर हुरपेटला के वजह से भइल रहे। कारन  रहे कि महेंदर मिसिर जइसन भोजपुरी के धरोहर के भोजपुरी साहित्य आ समाज में उचित अथान मिलो। काहें से कि महेंदर मिसिर के लेके समाज में कई तरह के भ्रांति पसरल रहल । जवना पर के गरदा उड़ावल जरूरी रहल। एही का चलते पंडित रामनाथ पाण्डेय जी कई बेर काहीं मिश्रवलियाँ के चक्करों लगवलें आ  समुचित जानकारी जुटवलें। एकरा इतर उपन्यास खातिर काम करत बेरा समाज के ढेर लोगन से मिललें आ ढेर भ्रांतियन से धूरा झारे में उहाँ के मदद मिलल। जवना के जिकिर उहाँ के अपने ‘आपन सफाई’ में कइलहूँ बाड़न। एह ऐतिहासिक उपन्यास ला जरूरी कल्पनों के सहारा लेले बाड़न। ओकर कुछ बानगी देखहूँ  जोग बा-

” डेरा मत, तूँ अपना के थोड़ा बदल दS। बेड़ा पार हो जाई। भगवान राम कावरी थोड़ा  झुक जा। उनकर कथा कहS। उनकर गीत गावS।”

हनुमान जी का संगे उनकर ई साक्षात्कार भोजपुरी के पहिल महाकाब्य ‘अपूर्व रामायन’ लिखे क बिरवा नायक महेंदर मिसिर के मन में उपन्यासकार डाल दीहलें। कहीं न कहीं ई साक्षात्कार तुलसी दास के इयादो ताजा करा रहल बा।

“चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर

तुलसी दास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर।”

इहों हनुमान जी प्रेरित क रहल बाड़न। आ तुलसी बाबा के रामचरित मानस लिखे क ऊर्जा मिलल। ठीक इहे स्थिति ‘अपूर्व रमायन’ ला महेंदर मिसिर के बा। अब आईं अइसन कुछ अउर बातन पर नजर डालल जाव, जवन पंडित रामनाथ पाण्डेय जी के एगो पारंगत उपन्यास कार होखला के चिल्ला चिल्ला के सबूत दे रहल बा। एक बेर फेर से हम रउवा सभे के धियान रामचरित मानस का ओर ले के चलल चाहत बानी-

बाली बध के बाद रामचरित मानस के नायक ‘राम’ क चरित तनि कमजोर पड़त देखाए लागल, तुलसी बाबा तुरते राम से कहवा देलन-

“अनुज सुता भगिनी सुत नारी / सुनू सठ कन्या सम ये चारी।

इनही कुदृष्टि बिलोकहीं जेही/ तिनके बधे कछु पाप न होई॥ ”     

अब आईं ‘ महेंदर मिसिर’ उपन्यास पर, जब ढेला बाई आ केसर बाई से भइल अपमान का चलते नायक महेंदर मिसिर के चरित कमजोर पड़त देखाए लागल त पं रामनाथ पाण्डेय जी काशी के दर्शन करावत, ओकर महिमा बतावत कबीर बाबा आ रैदास जी के अतमा से नायक के साक्षात्कार करा देलन आ नायक के ओकरे सही राह पर चले खातिर प्रतिबद्ध क देलन।

उपन्यास ‘ महेंदर मिसिर’ के नायक उदार मन के रहलें, उनुका से ओकरो दुख न देखल जात रहे जेकरा से उ नराजों रहस। तबे नु बिद्याधरी बाई से केसर बाई के बेमारी आ लकवा मरला के बात सुनि के उनुका के काठ मार देलस आ केसर बाई तक आपन सनेसा भेजे खातिर गंगा माई से विनती करत गावे लगलें-

सासु मोरे मारे राम बाँस के छिउंकिया

ए ननदिया मोरी रे, सुसुकत पनिया के जाय।

गंगा रे जमुनवा के चिकनी डगरिया

ए ननदिया मोरी रे, पऊंवा धरत बिछिलाय।

छोटे मोटे पातर पियवा हँसी के ना बोले

ए ननदिया मोरी रे, सेहो पियवा कहीं चलि जाय।

छोटे मोटे जामुन गछिया फरे न फुलाय

ए ननदिया मोरी रे, सेहो गछिया सूखियो ना जाय।

गावत ‘महेंदर मिसिर’ इहो  रे पुरुबिया

ए ननदिया मोरी रे, पिया बिनु रहलो न जाय।

उपन्यासकार पं रामनाथ पाण्डेय भारतीय परम्परा के पोसक आ धरम में असथा राखे वाला बेकती रहलें। एकर झलक देखे खातिर बस एक गो बात हम राखल चाहेम कि उपन्यास के नायक ‘महेंदर मिसिर’ के अपना मउवत के आभास जइसही भइल, उ एगो निरगुन गावे ला मंच सजवा के सभे के जुटा लेलन। गीत खतम होते उहाँ के गोलोक चल गइलन। हिन्दू भा वैदिक परम्परा में अंतिम बेरा में भगवान के सब ईयाद करेला। उपन्यास के नायको से ई काम पाण्डेय जी करवा देलन। देखी-

एकहू गहनवा नइखे सारी

हो कइसे जाईं ससुरारी।

खेलत रहनी हो सिपुली- मउनिया से,

आई गइलें गवना के नियारी।

बाबा घरे रहितें, मोर भइया घरे रहितें,

त फेरि देते डोलिया कहारी।

नाही मोरा लूर ढंग,एको ना रहनवा,

पिया हमसे करिहें पूछारी।

मिलि-जुलि लेहु सभ संग के सहेलिया,

करी लेहू भेंट-अंकवारी।

क़हत महेंदर सुनS संग के सहेलिया,

छुटि गइलें बाबा के दुआरी।    

उपन्यास ‘महेंदर मिसिर’ के आमुख लिखत बेरा आदरणीय (डॉ) भगवती शरण मिश्र जी के ई बाति धियान देवे जोग हवे  – ” महेंदर मिसिर स्वतन्त्रता के इतिहास के एगो उपेक्षित पात्र रहल बाड़न, जबकि उनुकर योगदान भारतीय आजादी के इतिहास में कम नइखे। महल के चमकत कंगूरा त सब लोग देखेला, नेंव में चल गइल ईंटा प केकर धेयान जाला ? महेंदर मिसिर अइसन कतना लोग नेंव के पथल बन गइल। ऊ लोग के चमका के हीरा बनावे वाला लोग के भारी कमी बा। श्री राम नाथ पाण्डेय जी इहे कइले बानी। कम से कम एगो नेंव के पथल के बढ़िया से तरास के हीरा त बनाइये देले बानी।”

जहाँ तहाँ ठेठ भोजपुरी के ठाट एह उपन्यास के बनावट- बुनावट में चार चाँद लगा रहल बा। कुछ अइसने कहनाम आदरणीय (डॉ) भगवती शरण मिश्र जी के बा आ एकरा पक्ष में कुछ उदाहरणो रखले बानी, जवन एही उपन्यास से बा। रउवो देखीं-

‘ भाला छतिया के जब महेंदर मिसिर निसाना साधस, त लोग डरे बनउरी अइसन एक-दोसरा पर पटउर पड़ जाय। लोग सँभार के उठे-उठे तले दोसरको ओरी इहे लीला। ‘

 

‘पापी-से-पापी के काया के कांचन करत इनका मन में कबहीं ई भाव ना उपजल कि हम पतित पावनी हईं । लोग भले उनुका के पतित-पावनी क़हत होखे। लोगन के कुकर्म के अपने अंगीकार भले कइलीं, बाक़िर केकरो पर कबही एहसान ना लदली। बस एह धरती पर आ के अपना के कई साखा-उपसाखा में बाँट के छितरा देली आ खूब ज़ोर से खिलखिलात समुंदर में अमा जाली।’  

‘महेंदर मिसिर’ उपन्यास में उपन्यासकार पं रामनाथ पाण्डेय जी के दार्शनिको रूप के दर्शन भइल बा। कई विद्वान लोग कहेला कि लेखक के दार्शनिक होखल उचित ना होला बाकि इहाँ पाण्डेय जी के लेखन में लउकत बा। बाक़िर ऊ लेखन पर हावी नइखे होत। देखीं-

‘ विश्राम आ लक्ष्य के प्राप्ति के प्रयास में तनिको मेल नइखे। विश्राम के चाह आदमी के अपना लक्ष्य से दूर हटा देला आ विश्राम के त्याग आदमी के अपना लक्ष्य के पास पहुंचा देला।’

कउनो कथा, कहानी भा उपन्यास में जवन सभले खास होला, उ ह कथ्य, कथोपकथन, भाषा आ शिल्प । एह कुल्हि कसौटी पर ई उपन्यास मील के पथल बा,एहमे संदेह नइखे। एकरा संगही चरित्र चित्रण एगो अइसन अंग होला, जवन कथा, कहानी भा उपन्यास के दसा-दिसा तय करेला, मने नीमन चरित्र – चित्रण कथानक के उच्च श्रेणी में  खड़ा क देला। एह उपन्यास में केहुओ के चरित्र के संगे अन्याय नइखे भइल। उपन्यास के नायक महेंदर मिसिर , जमींदार हलवन्त सहाय , स्वतन्त्रता सेनानी अभयानन्द  आ ढेला बाई  के संगही गंगियो के चरित्र नीमन से उभर के सोझा आइल बा।कहानी के बहाव गंगा माई के बहाव लेखा बा बेलौस, कतों बाधित होत नइखे देखात।  ई पं रामनाथ पाण्डेय के लेखन के ढेर खास बना रहल बा।

कथानक में महेंदर मिसिर के चरित्र के दू गो रूप उभर के सोझा आवता, संगीत साधक आ स्वतन्त्रता सेनानी। पूरे उपन्यास में एह दूनों के चाल एक-दोसरा अगल-बगल  होइयो के एक दोसरा से स्पर्धा करत नइखे देखात। बलुक एक-दोसरा के पूरक लेखा बा। कवनों एक रूप में नायक के मूल्यांकन नायक के संगे अन्याय  होखित बाकि अइसन कुछ इहाँ नइखे भइल।

अब जवन बात विमर्श के जोग बा ओकरो आज चरचा होखल जरूरी बा। महेंदर मिसिर के चरित्र पर लोग दू कारन ले के अंगूरी उठावेला- जाली नोट छापल आ ओकरा चलते जेल के जिनगी जीयल आ दोसरका बाई जी लोगन के  कोठा पर आइल-गइल।     अब पहिले जाली नोट छपला के लेके जवन निरर्थक विरोध लोग करेला,उ अज्ञानते कहल जा सकेला काहे से कि ओकर परयोग महेंदर मिसिर अपना सोवारथ में कबों नइखे कइले। एह बाति के प्रमाण उनुका परिवार खुदे बा जवन ओह घरी जमींदार परिवार रहल बा। जहाँ कवनों सुख-सुविधा के कमी नइखे रहल। ई पक्ष उपन्यासकार बखूबी से उकेरले बाड़न। संगही इहों जानल जरूरी बा कि बंगाल के संन्यासी आन्दोलन के प्रभाव रहे मिसिर जी पर।  उनका देशभक्ति के धुन सवार हो गइल आ ऊ अंगरेजन के उखाड़ फेंके खातिर आ क्रन्तिकारियन के मदद खातिर जाली नोट छापल शुरू कर दिहलें।  अंगरेजन के कान खड़ा हो गइल।  उ खुफिया तंत्र के जाल बिछा देलन स।  सीआइडी के जटाधारी प्रसाद आ सुरेन्द्र नाथ घोष के अगुवाई में खुफिया तौर-तरीका से छानबीन चलल।  जटाधारी प्रसाद त गोपीचंद बनि के तीन बरिस ले मिसिरजी के संघतिया आ नोकर रहले आ भरोसा जीति के घात कर देलें।  16 अप्रैल, 1924 के रात में नोटे छापत में नोट के गड्डी आ मशीन का साथे महेन्दर मिसिर आ उनका चारो भाई के गिरफ्तार करवा देलें। बाक़िर संजोग से महेंदर मिसिर ओह घरी सूतल रहलें, एही से उनुका सजा में रियाइत भइल रहे। एह बाति के तसदीक संसद सदस्य रहि चुकल स्वतंत्रता सेनानी बाबू रामशेकर सिंह आ श्री दइब दयाल सिंह  जइसन लोग मनले  बा कि मिसिर जी के घर क्रांतिकारी लोगन के अड्डा बनि गइल रहे।  असली बात त इ रहे कि नोट छापे के काम आपन सुख के खातिर ना बलुक अंगरेजी राज के इंतजाम चउपट करे खातिर शुरू भइल। जवन एह गीत से ठीक बुझा रहल बा जवन जटाधारी मने गोपीचंद कहले बाड़न  –

 

नोटवा जे छापि-छापि गिनिया भजवलऽ ए महेन्दर मिसिर
ब्रिटिश के कइलऽ हलकान, ए महेन्दर मिसिर
सगरे जहनवां में कइलऽ बड़ा नाम, ए महेन्दर मिसिर
पड़ल बा पुलिसवा से काम, ए महेन्दर मिसिर!

बाकिर महेंदर मिसिर अइसन काहे कइलन।  अपना गीत में बतावत बाड़न –

‘हमरा नीको ना लागे राम, गोरन के करनी
रुपया ले गइले, पइसा ले गइले, ले गइले सब गिन्नी
ओकरा बदला में त दे गइले ढल्ली के दुअन्नी
हमरा नीको ना लागे राम, गोरन के करनी

 

अब दोसरकी बाति – जवन बाई जी लोगन के कोठा पर गइला के लेके लोग उठावेला। महेंदर मिसिर बाई जी लोग के कोठा पर एगो संगीत साधक के रूप में जात रहन। उनुका केसर बाई, बिद्याधरी बाई भा ढेला बाई से प्रेम भइलो रहल बाकि ओहमें वासना के अथान ना रहे।

सभे ले मजगर बात जवन डॉ मुन्ना कुमार पाण्डेय अपना कथ्य में लिखत बाड़न – ” महेंदर मिसिर भोजपुरी प्रांत आ भाषा के सबसे लोक प्रसिद्ध आ सम्मानित नाम बाड़ें बाक़िर एगो बड़ दुर्भाग्यो उनका संघे जुड़ल बा। जवन आदमी पूरबी के जनक मानल जाला आ भोजपुरिया समाज , साहित्य आ संस्कृति में एगो बड़हन नाम बा , जनता के दिल आ जुबान पर ओकर गीत बसल बा आ जेकरा से ओकरा समय के सब कलाकार , साहित्यकार  प्रभावित रहे  आ जउन आदमी  राष्ट्रीय आंदोलन के ना मालूम केतना सिपाही लोग के मदद कइलस, उ पता ना कवना साजिस भा दुर्भावना से जाने-अनजाने मुख्य धारा के  साहित्य आ संस्कृति से कगरिया दीहल गइल।”

कतों न कतों डॉ मुन्ना कुमार पाण्डेय के एह बाति से सहज इत्तेफाक हो जाला कि “सारण के एगो ब्राह्मण परिवार में जनम लेके लीक से अलगा हट के भोजपुरी कला कर्म आ काव्य के एगो व्यापक फ़लक तक पहुँचइलें। लोक कहावत ‘….लीक छोड़ तीन चले शायर, सिंह, सपूत’  मिसिर जी पर पकिया बइठेला। उहाँ के लीक छोड़िए के चलल रहनी ओहिसे एगो रहस्यमयी, मिथकीय चरित्र बन गइनी। ”

ई बाति केहुओ के सोचे के मजबूर कर सकत बा कि महेंदर मिसिर के संगे अइसन अन्याय काहे? महेंदर मिसिर के संगे ई अन्याय पहिलहूँ भोजपुरी के सभे इतिहास लिखे वाला लोग कइले बा आ हलिए प्रकाशित डॉ सुनील कुमार पाठक जी के  किताबि ‘ छवि और छाप’ तक ई अन्याय रुकल नइखे।

ई एगो अजबे इत्तफाक बा कि भोजपुरी के महान आलोचक  महेश्वराचार्य जी के लिखल एगो निबंध में उहाँ के लिखले बानी-‘जे महेंदर ना रहितें त भिखारी ठाकुर ना पनपतें।  उनकर एक एक कड़ी लेके  भिखारी भोजपुरी संगीत रूपक के सृजन कइले बाड़न । भिखारी के रंग कर्मिता, कलाकारिता के मूल बाड़न महेंदर मिसिर जेकर उ कतही नाम नइखन लेले। महेंदर मिसिर भिखारी ठाकुर के  रचना गुरु, शैली गुरु बाड़न। लखनऊ से लेके रंगून तक महेंदर मिसिर भोजपुरी के रस माधुरी छींट देले रहलन, उर्वर बना देले रहलन, जवना पर भिखारी ठाकुर पनप गइलन आ जम गइलन।’

अब ई देखल जाव कि हेतना कुल्हि बातिन के हेर के , जुटा के, सहरिया के एह किताबि में परोसे वाला डॉ मुन्ना कुमार पाण्डेय ओही डर के शिकार हो गइल बाड़न, जवना के ऊ अपने भूमिका में जोरदार ढंग से उठवले बाड़न। ऊ डर कतना बरियार बा कि उदय नारायण तिवारी से शुरू होत कृष्ण देव उपाध्याय से गुजरत डॉ सुनील कुमार पाठक तक सभे नोनाह भीत लेखा महेंदर मिसिर के नाँव पर भहरा गइल बा। अइसना में डॉ मुन्ना कुमार पाण्डेय के कुछो ना कहल जा सकेला। ऊ डेराते सही ढेर कुछ कह गइल बाड़न, जवना से असल बात  बूझल कठिन नइखे। महेंदर मिसिर के लेके जवना डर के बाति डॉ मुन्ना कुमार पाण्डेय जी उठवलें, पड़तालों ठसक के संगे कइलें बाक़िर खुदो ओहमें चभोरा  गइलें। ओह डर से पाण्डेय कपिल जी ठीक ठाक डेराइल बाड़न नाही त ‘फुलसुंघी’ जइसन कृति के कपोल कल्पना ना कहितें। भलही उहाँ कुल्हि चरित्र का संगे ठीक से न्याय नइखे भइल।

कई गो अउर किताबि महेंदर मिसिर पर बा, पंडित जगन्नाथ के ‘पूरबी पुरोधा’ अउर जौहर सफियाबादी के ‘पूरबी के धाह’ का संगे प्रसिद्ध नाटककार रवीन्द्र भारती के  ‘कंपनी उस्ताद’ नाँव से, साहित्य अकादमी से प्रकाशित भगवती प्रसाद द्विवेदी के लिखल ‘भारतीय साहित्य के निर्माता ‘महेंदर मिसिर’ जरूर बा। ढेर लोग लिखलहूँ बा, बाक़िर लोग मूल मुद्दा से किनारा क गइल बा भा डर के असर ओहिंजों काम कइले बा। नाही त आजु जे लोग भिखारी ठाकुर के भोजपुरी के पर्याय मान रहल बा, ऊ लोग अइसन ना क पाइत। अगर महेंदर मिसिर के मूल्यांकन न्याय का संगे भइल रहित भा एकेडमिक रूप से सविकारल गइल रहित त उनुको पर शोध त भइले रहित आ महेंदर मिसिर के भोजपुरी साहित्य में अछूत न मानल जाइत।

सर्वभाषा ट्रस्ट से जवन ई संवर्धित संस्करण ‘महेंदर मिसिर’ उपन्यास के आइल बा, ऊ एक बेर जरूर हलचल पैदा करे में सफल होत देखात बा।जवना के बारे में अपना प्रकाशकीय में केशव मोहन पाण्डेय एह एतिहासिक उपन्यास ‘महेंदर मिसिर’ आ लिखनिहार श्रधेय पं रामनाथ पाण्डेय जी ला कहले बानी -‘इतिहास के एगो तोपाइल आ सबसे चमकदार पन्ना पर पड़ल धूरा के बड़ा आदर से झार झार के साहित्य आ समाज के सोझा ले आइल बानी।’  ई हलचल ऊंच लहर बनि के महेंदर मिसिर के उचित स्थान दियावे में सफल होखे, ई हमार मनोकामना बा। अतने भर ना बलुक एह उपन्यास के सिरजना जवना उमेद से भइल रहे, उहो एक दिन सार्थक होखे, इ भाव हरमेसा मन बनल रही।

 

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

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