खेला

नदी पर ढेर दिन ले

पूल ना रहे

केहु कहे कि

नदी के पूल पसन ना ह

केहु कहे कि

पूल के इ नदी पसन नइखे

बूढ़वा बिधायक दूनू जाना के बात

गाँठ बान्ह लेले रहनी

कहीं कि, जवन नदी के पसन

जवन पूल के पसन,

उ पब्लिक के पसन

जवन पब्लिक के पसन

उ बिधायक के करतब्ब

बिधायक जी

छव गो चुनाव पार क गईनी

बिना पूल के .  . . .

 

बाकि एकरा के खेला मत बुझीं

खेला त इ रहे कि

तीस साल में पूल

छव बेर बनल

छव बेर दहल

ना केहु बनत देखल

ना दहत

ना बनला ना दहला

के बात

केहु केहु से कहल

 

उ त

हाँ दे

कुछ फ़ाइलन के आपस में

मतभेद हो गइल

पूल के कहानी

सरेआम हो गइल

 

– कमलेश के मिश्र

राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार विजेता फ़िल्ममेकर

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