हमार रामभंजन बाबा

बात हमहन से छ पीढ़ी पहिले के ह। बरहुआं के कश्यप गोत्रीय दुबे लोगन के परिवार में दुर्गानन्द दुबे के तीन गो सुपुत्र भइल रहलें। जवना में सभेले बड़ रामभंजन बाबा रहलें। उहाँ से दूनों छोट भाई राम सहाय दुबे आ हंसराज दुबे रहल लोग। तीनों भाई एकदम सोझबग, मयगर आ साधु लेखा सोभाव के रहल। तीनों भाई लोग के लइकई बहुत नीमन से बीतल। तीनों भाई लोग बड़ भइलन। रामभंजन बाबा आ उनुके एगो छोट भाई हंसराज बाबा के बियाहो-दान समय से हो गइल। तीसरका भाई के बियाह ना भइल कि ना कइलें, ठीक से कहल मोसकिल बा। समय से दूनों भाई लोग के बालो-बच्चा हो गइलन। जिनगी गाँव का हिसाब से खुसहाली में बीतत रहल। बाक़िर रामभंजन बाबा के बुढ़ौती अपना संगे एगो दुख लेके आइल। उ अपना पैर से चले में लचार हो गइलें। घर-पलिवार के लोगन पर आश्रित हो गइलें। बुढ़ौती अपना संगे कमजोरी त लेइके आवेले। केहु उठावे त उठें भा बइठें भा मर-मैदान क पावें। एकरा चलते उनुकर खटिया हरमेसा दुआरे  पर पड़ल रहे। पहिले मरद लोग दुवरहीं रहबो करे।

एक दिन अचके एगो घटना घट गइल। रामभंजन बाबा के घर के लोग ना रहे। बाबा दुआरे पर अकेलहीं रहलें। घर के लोग अपना-अपना काम-धाम के चलते बहरा चल गइल रहल। मेहरारू घर में रहलीं सन। सवकेरहीं गउवें के एगो घर से खाये के नेवता देवे नाऊ आइल  रहे, तब दुअरा पर एक-दू लोग रहल। उ नेवता अइसना घर से रहल,जेकरा किहाँ बभनइया के लोग नाही खात-पीयत रहलें, ई हाल अबो जस के तस बा। मने उ घर बिरादरी से निकलुवा निकाल गइल रहल। नउवा के गइला के बाद उ लोग बाबा से कहल कि ओकरा घरे नइखे जायेके। बाबा अपना से जाये में समरथो ना रहलें। बाबा कहलें कि हम कइसे जा सकीले, चल त पवते नइखीं आ तू लोग कतों जाइये रहल बाड़ा। त हमरा उहाँ जाये के सवाले कहाँ से आइल। बातो सही रहल , उहो लोग निफिकिर होके अपना काम पर चल गइल।

फेर जब खाये के जून भइल त नउवा फेरु बोलावा देवे आइल आ बाबा के चले के निहोरा कइलस, उ जाये में आपन दिकत बता के जाये से मना क दीहलें। नउवा से ई जनला का बाद कि बाबा दूअरे पर अकेलहीं हउवें, ओहनी के घर से दू जने अइलें आ बाबा के पवलग्गी कइला के बाद संगे चले के निहोरा कइलें, तबों बाबा जाये से मना क दीहलें। बाक़िर उ लोग रेघरियावत- रेघरियावत  उनुका के अपना पीठ पर उठा के अपना इहाँ खियावे खातिर ले गइल। एह में उ लोग के आपन सोवारथ रहल। अपना घरे बाबा के खइका खिया के फेरु दुअरे चहुंपा गइल।

संझा के बेरा सब लोग जुटल। सब कोई आपन-आपन खटिया बिछा के दिन भर के सुख्खम-दुख्खम बतियावे लागल। बाबा से लोग रोज का तरे हाल- समाचार पूछलस। तब सोझवा बाबा जइसे कुल्हि बात भइल रहे, बता देहलन। अतना सुनते उहाँ सभे अगिया बैताल हो गइल । अदिमी त अदिमी मेहररुओ कुल्हि भुसुराये लगलीं। सभे उनुका पर चिचिया-चिचिया के  आपन गुस्सा देखावे लागल। बाबा के घर के लोगन क ई ब्योहार ढेर बाउर लागल, काहें  से कि उ अपना से त गइल ना रहलें। कहबो कइलें कि तू लोग हमरा पर काहें चिचियात हउवा, हम अपना से त गइल ना रहनी ह। हमरा जइसन कमजोर आ अपंग मनई के केहु बरियाई पीठ पर उठा के ले गइल, त हमार कवन दोस। तू लोग हमरा पर मति चिचिया। एहमे हमार कवनो दोस नइखे। बाक़िर उ लोग ना मानल आ बाबा के खूब नीक-नेवर सुनावल ।

बाबा एकरा चलते अपना घर के लोगन से खिसिया गइलन आ खीसे रात खइको ना खइलन आ सभेके धीरावत कहलन, तू लोग हमरा के बेमसरफ में दोसी बतावत हउवा बाक़िर एहमें हमार कवनो दोस नइखे। एकरा बादो अगर हमहीं दोसी बानी त हम पश्चाताप करेम। तू लोग काल्हु सुरूज़ बाबा के उगला पर हमार मुँह ना देखबS, हम मर खप जायेम।

लोग बोलल बन्न त ना कइलस बाक़िर भीतरें डेरा जरूर गइल। उनुका खटिया के चारो ओरी आपन- आपन खटिया डाल के राते सब सूत  गइल। बाबा के खीसे रात नीन ना आइल आ रात भर खटिया पर करवट बदलत रहि गइलें। जइसहीं सब निभोर होके सूत गइल, बाबा कइसों खटिया पर से उतर के घुसुकत घुसुकत दुअरा के ईनार पर पहुँच गइलन आ ईनरा में कूद गइलन।बूढ़ आ कमजोर मनई के ओही ईनरा में मउवत हो गइल। घर के लोग जे उनुका खटिया के चारो ओरी अगोर के सूतल रहल, ओह लोगन के जरिकों भनक नाही लगल, कि बाबा कब आ कइसे खटिया से उतरलें आ कब ईनरा में कूद गइलें। अउर त अउर कूदलका के अवाजो ना सुनाइल। भोर भइल, गोरू-बछरून के कोयर-कांटा डाले के बेरा सभे लोग गवें गवें उठल। सभेके के निगाह खाली परल खटिया पर गइल। बाबा उहाँ ना रहलें। बाबा खटिया पर कइसे देखइतें, उ त दुनिया छोड़ के जा चुकल रहलन। घर में जनते कोहराम मच गइल। रोवा-रोहट शुरू हो गइल। अदिमी लोग उनुका के खोजे-हेरे लगलें। ओही लोगन में से एक जना कहलें , अरे मरदे तनि ईनरा में देखा लोग। कहीं ओही में कइसहूँ  जा के कूद न गइल होखें। रात जवन क़हत रहलें, तवने क के देखा देहलन, हमरा त इहे लागता। लोग ईनार पर चहुंप के ओहमें भीतर झांकल , त का देखता कि बाबा ओही में उतिराइल बाड़न। फेरु उनुका के ईनार से निकालल गइल, बाकि उ जीयत ना रहलें। लोग हाली-हाली उनुका के मनिकणिका  ले जाके फूँक-ताप आइल आ उनुकर किरिया करम क दीहलस । टोला मोहल्ला के लोग समझदार रहे आ एक-दोसरा के दुख-सुख के बूझत रहे, नाही त बात बतंगड़ बने में देर कतना लागेला।

समय बीते लागल, ओही बरिस पलिवार के एक जने गयाजी जाये के तइयारी कइलनआ ओझइत आ पंडित लोगन के बोला के अपने पुरबुज लोगन के गया जी बइठावे जाये क काम नाध देहलें। जब पुरबुज लोगन के आह्वान कइल गइल त ओझइत से बाबा गया जाये के मना क दीहले आ ना गइले। उनुका छोड़ के सभे के लोग गयाजी में पिंडदान क के आ गइल। अपना दायाद पटीदार के संगे लोग भागवत सुनल आ सभे के भोज दीहल।

जवना दिने बाबा ओह ईनार में मरि गइलें ओह दिन से लोग ओकर पानी पीयल बन्न क दीहल आ ईनरा के भाठ दीहलस। ओह ईनरा से सटले सोनारन के टोला रहल, जवन अजुवो बा। ओह भठलके ईनरा के बगले से सोनरन के पनारा बहत रहे। जवना के पानी रिस-रिस के ओह ईनरा में जात रहे। एक दिन बाबा लोका सोनार के सपना देखवलें आ फटकारत बरिजलें कि हम ओही ईनार में बानी आ तहनी के पनारा के पानी ओह में रिस रिस के जात ह। आपन पनारा मति बहावा सन, नाही त तोर नास हो जाई। भोरही लोका सोनार परिवार के सभे बड़-बुजुर्ग लोगन के जुटा के अपने सपना के बात सबके सोझा रखलें बाकि उहो लोग कुछ कह ना पावल। पनारा रोकल संभव ना रहे आ बाबा के सपना में आके कहल त खास रहल। बात आइल गइल हो गइल। कुछ दिन बाद फिरो लोका सोनार के सपना में बाबा अइलें आ कहलें कि पनारा बहावल बन्न कर , ई ना क सकेले त हमार मूरत (पिंडी) बना के हमरा खेत के पीपरे तर हमरा के बइठा दे, नाही त तोर अब नासे होई। अगिला दिन फेर लोका सोनार पुरनिया लोगन के भीरी अइलें आ रात के सपना के बात कहलें । त उहाँ जुटल सभे लोग कहल कि ए लोका ! जइसन बाबा क़हत हउवन, उहे कइला में भलाई ह। बाकि लोका सोनार सपरत सपरत फिरो बाति के भुला गइलें । कुछ दिन बाद फिरो बाबा लोका  सोनार के सपना में अइलें आ उनका अनिष्ट के बाति कह के चल गइलें। भोरे होत लोका सोनार के दुअरे बान्हल उनुकर एगो भइस आ एगो बरधा खड़े-खड़ा गिरलें आ मर गइलें। हहकारा मचि गइल , मय सोनरान डेरा गइल आ सब लोका सोनार के कोसे लागल। सब उनुका के बाबा के कहलकी बाति बेगर कवनो देरी कइले करेके हुरपेटे लागल। बाबा के परिवार के लोग कहल कि जेतना जलदी हो सके, एह काम के कइले ठीक होई।

अगिला दस-पनरह दिन में लोका सोनार आ उनुकर भाई दूनों जने मिलके गोलवा पहाड़ से पथल, ढोका आ पटिया ढो ढो के ले आइल आ अपने हथहीं बाबा के पिंडी गढ़लस लोग।  जब सब कुछ तइयार हो गइल, त बाबा के बतावल जगहा पर गाँव के गोइड़े उनुका खेत में पीपर के पेंड़  रहल, उहवें उनुका चउतरा बना के पिंडी बइठा के प्राण-प्रतिष्ठा बभनइया के लोग मिल के करा दीहलस। ओह दिन के बाद लोका सोनार के गरीबी गवें-गवें दूर  होखे लागल आ देखते देखत लोका सोनार, लोका सेठ हो गइलें। लोका सेठ के परिवार के उपर बरम बाबा के किरपा बरसे लागल। लोका सेठ हर बरिस हर फसिल के अन्न के पहिले बरम बाबा के परसाद चढ़वला के बादे खास। उनुका परिवार के लोग अजुवो नई फसल के अन्न बेगर बाबा के भोग लगवले ना खाला। बरम बाबा के किरपा से उनकर परिवारों दिनो दिन आगु बढ़ रहल बा। अब त गवें-गवें पूरा सोनरान बरम बाबा के भगत बनि गइल आ सभे उनुका प्रसाद चढ़वावे लागल। कहल जाला कि बरम बाबा के परसाद बाभन लोग ही खाला, अउर दोसरा के ना खाएके। एह का चलते उ लोग परसाद कवनो बाभन से चढ़वा के बाबा के आशीष ले लेला।

हम जब से होस सभरलीं, बाबूजी इहे बतवलें कि हमनी के बरम बाबा के संतति हईं  सन आ उनुकर पूजा कइल हमनी के करतब ह। लइकइयें से हमनी के उनुका में बिसवास बढ़े लागल। अपना परिवार में हमार एगो चाचा बाड़न। 20 बरिस पहिले तक उनुकर पारिवारिक स्थिति ढेर ठीक ना रहल, अचके उनुका के बरम बाबा में सरधा जागल आ उ रोज बरम बाबा के पूजा करे लगलें, बरम बाबा के उनुका पर किरपा भइल आ उ मुंसी से मालिक बन गइलें। बरम बाबा उनुका घर भर दीहलें। आजु उहाँ के धन संपदा से भरल पूरल बाड़न। बरम बाबा में उनुका सरधा अजुवो जस के तस बा। अजुवो हप्ता में एक दिन बरम बाबा के पूजा क के परसाद चढ़ावल उनुका दिनचर्या में सामिल बा।

गाँवे के एगो बनिया परिवार में ढेर परेसानी चलत रहे, ओकर कवनो संतान ना बच पावत रहलें। ओहके केहु सलाह दीहल कि तू रामभंजन बरम बाबा के मनौती मान के पूजा कइल शुरू कर , परसादी चढ़ाव आ ओके पंडी जी लोगन के दे दीहे , खइहे मति , तोर दुख दूर हो जाई। परेसान आदिमी के हर सलाह भल लागेले,ओहू के लागल आ उ मनौती मान के बरम बाबा के पूजा करे शुरू कइलस, ओकर बीपत दूर हो गइल। घर परिवार खुसहाल हो गइल। जवन संतान भइल उ अजुवो ओह परिवार के मान बढ़ा रहल बा। उ अदिमी अपना मनौती  पूरा कइलस आ बरम बाबा के मंदिर आ बड़ चउतरा बनवा दीहलस।

रामभंजन बरम बाबा से जुड़ल ढेर कथा कहानी बाड़ी सन, जवना में परिवार आ गाँव के लोगन के भलाई सोझा लउकेले। सन् 1990 के आस-पास के बात होखी, ओह घरी हम इंजीनियरिंग के पढ़ाई करत रहनी। हर बेर का तरे बसंत पंचमी पर अखंड रामचरित मानस पाठ ठनाइल रहे। जब घरे अखंड  रामचरित मानस पाठ होखे त संगही बरम बाबा के अथाने उनुकर पूजा आ सत्यनारायन भगवान के कथा जरूर होखे आ बरम बाबा के भोग जरूर लगावल जाव। ओह बरिस कवनो छोट लइका घरे राखल बरम बाबा के परसाद जूठ क दिहलस। हमरे माई के नजर पर गइल, त माई ओह दिन बरम बाबा के अथाने होखे वाला पूजा के रोक दिहलस, काहें से कि दोबारा परसाद तइयार कइल संभव ना रहे। माई सोचलस कि 2-4 दिन बाद परसादी तइयार क के तब बरम बाबा के अथाने पूजा हो जाई आ उनुका भोग लाग जाई, बाक़िर माई ई बाति भुला गइल। पनरह बीस दिन बीतल होखी कि एक दिन अचके एगो कुकुर

पहिलका तल्ला के रसोईघर में चहुंप गइल आ पथरा में राखल पिसान में मुँह गोत के लउटत बेर माई के देखा गइल। माई धउर के रसोई घर में गइल आ देखलस कि कुकुर कहीं कुछों अउर नइखे कइले, बस पिसान में मुँह लगा के लउट गइल बा। माई मुड़े हाथ राखि के बइठल आ सोचे लागल कि अइसन त कबों ना भइल रहल ह, तब आज काहें कुकुर रसोई घर में आ गइल। अचके ईयाद परल कि बसंत पंचमी के बरम बाबा के परसाद के भोग ना लागल रहल ह। कहीं ओही के ई संकेत त नइखे। माई दू दिन के भीतरे गोहूँ  धो-पीस के परसाद तइयार कइलस आ बरम बाबा के अथाने कथा-पूजा करा के भोग लगवा देहलस। तब से आजु ले फेर कबों कुकुर रसोई घर में नइखे गइल। आ माई तब ले कबों भोराइलो नइखे।

कुछ दिन बाद हमरे छोट भाई के मन में भाव आइल आ उ बरम बाबा के अथान पर मंदिर का भीतर टाइल लगवा दीहले, आजु उनुकर स्थिति आ धन संपदा बरम बाबा के किरपा से दिनो दिन बढ़ रहल बा।

तीन बरिस पहिले पटीदारी के एगो चचेरा भाई आपन नया ब्यवसाय शुरू कइला  का बाद बरम बाबा के अथाने कथा सुनलस। मने मन मनौती मनलस कि हमार ब्यवसाय चल जाई त अगिला बरिस हम बरम बाबा के चउतरा पर टाइल लगवा देब। डेढ़ बरिस पहिले उ टाइल लगवा देहलस।

बरम बाबा अपने घर-परिवार के लोगन से जब कवनो सेवा लेवे के बा आ ओही बहाने उनुका पर कवनो किरपा करे के बा त ओकरे मन में भाव जगा देवेलन। ई जानि के लोग चंउक जाला। नवंबर 2020 के बात होखी जब हमार छोटका बेटा अपना बियाह के नेवता चढ़ावे बरम बाबा के अथाने गइलें, पूजा क के आ बाबा के नेवत के आ गइले। इहाँ अइला का बाद हमरा से बरम बाबा के चउतरा पर टाइल लगवला के बारे में पुछलन। हम जानत ना रहनी कि बरम बाबा के अथाने कुछ नया काम भइल बा। हम अगिला दिने बाबूजी से पूछनी, त उ सगरी बात बतवलें। तब हमरा मालूम भइल आ हम छोटका बेटा के बतवनी। फेर उ हमरा से कहलें कि अब जब गाँवे जाईं त बरम बाबा के चउतरा के चारो ओरी घेरा बंदी करवा के तबे आइब, हम उनुका बात से तुरते सहमत हो गइनी। दिसंबर 2020 में जब हम गाँवे गइनी त एह बाति के जिकिर बाबूजी से कइनी। बाबूजी कहलें, बरम बाबा के इच्छा कुछ अइसने होखी। हम बरम बाबा के अथाने काम शुरू करवनी। देखते देखत ओह काम के दायरा लमहर हो गइल। हमरे एगो चाचाजी कुछ बदलाव आ सहयोग के कहलें आ फिर छोट भाई कुछ अउर बदलाव आ सहयोग के कहलें। सबके कहलका के धियान में राखि के उहाँ निर्माण भइल। अतना निर्माण से बरम बाबा के अथान के सुघरई बहुते बढ़ गइल। अप्रैल 2021 में हमरा के उत्तर प्रदेश सरकार के हिन्दुस्तानी अकादमी, प्रयाग राज से हमरे एगो किताबि ‘आखर आखर गीत’ के भिखारी ठाकुर भोजपुरी सम्मान के घोषणा भइल आ अगिला दिने चंदौली बनारस आ प्रयागराज के सगरे अखबारन में  ई खबर प्रकाशित भइल। गाँव के लोग जब एह खबर के पढ़लस त सहास कह उठल, ई कुल्हि ‘रामभंजन बरम बाबा’ के सेवा आ उनुके किरपा के फल ह। अइसन हउवन हमार ‘रामभंजन बरम बाबा’ जे अपना परिवार, गाँव आ समाज के लोगन पर आपन किरपा बरसावत रहेलन।

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

Related posts

Leave a Comment