सतुआ

पहिले सतुए रहे
ग़रीबवन के आहार
केहू जब जात रहे
लमहर जात्रा प त
झट बान्हि लेत रहे
गमछा में
सतुआ,नून,
हरियर मरीचा
आ पियाजु के
एकाध गो फाँक
केवनो चापाकल
भा ईनार से
पानी भरि के
लोटा भर
सुरूक जात रहे
केहुओ बेखटके
ऊ बिस्लरी बोतल के ज़माना ना रहे
सतुआ सानि के गमछिए प
खा लिहल जात रहे ओह घरी
गरमी में केवनो पीपर,बर
आम भा महुआ के छाँह में
पहिले लोग क लेत रहे
गुज़र-बसर
सतुओ खाके
ओह घरी बजार में
बेंचात ना रहे
केवनो फास्टफूड
अब त गाँवों
नइखन स बाँचल एकरा से
सतुआ के नून संगे
खाइल जा सकत बा
पिंडी बनाके
पानी में घोरि के
पियल जा सकत बा
एकरा में गोरस डालि के
देसी घीव मिलाके
गुड़ आ चीनी के साथ
खाइल जा सकत बा
पहिले सतुइए कहात रहे
ग़रीबवन के आहार
सतुआ से बनावल जा सकेला
छप्पन गो बेंजन
ई मात देबेला
हर बेंजन के
एकरा के आम आ पुदीना
धनिया आ लहसून के
चटनी संगे
चटकारा लेके
खाइल जा सकेला
प्याज के संग-साथ के त
कहहीं के का बा
खिल उठेला
सवाद एकर
जीभि प
गाँव होखे भा सहर
सतुआ के मिलल
अब त
दिन प दिन दुल्हम
पहिले जेवना सतुआ के लेते नाँव
चेहरा प फइल जात रहे
लाज के ललाई
उहे अब सहरन में
साहब लोगन के रसोई में
रखा रहल बा
क़ीमती बेंजन लेखा
गरब के साथ
एने सतुआ के
काहे ना आवो जबुन दिन
बूँट के फ़सल उगावल
अब केतना कठिन
हमरा त बुझाला कि
ई समइए पड़ल बा
हाथ धोके पाछा
किसानन के
  • चंद्रेश्वर

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