धुआंला ना जेकर चुहानी ए बाबू

आसिफ रोहतासवी के नांव भोजपुरी गजल लिखे वाला ओह लोग में शामिल बा, जे गजल के व्याकरण के भी खूब जानकार बा। उनकर रचनाशीलता के पूरा निचोड़ गजल ह, खास क के भोजपुरी गजल।
खाली भाषा से ही ना, पूरा मन मिजाज से ऊ भोजपुरी के गजलकार हवें।
भोजपुरी के लोकधर्मी गजलकार कहे में हमरा कवनो उलझन नइखे। काहे कि उनकर गजल जवना चीज से बनल बा, जवना दरब से (ई शब्द हम अपना बाबा से सुनले रहीं। ऊ पइसा- कउड़ी के अर्थ में प्रयोग करत रहलें। इहां द्रव्य के अर्थ में प्रयोग भइल बा।), ऊ लोक के ह। ऊ लोक खेत,फसल, खेती के साज सामान, घर, आंगन, चुल्हा चउका, झाड़ू बुहारू, आदमी जन, हिस्सा बखरा के संगे संगे अपना समय के राजनीति आ राजनीतिक घटना क्रम से हमेशा बोलत बतियावत लोक ह। ऊ थथमल लोक ना ह। एहिजा खरहरा से दुआर बहारत बाबूजी त मिलिए जइहें, आजी के स्मृति के संजोवे के जर्बदस्त तड़पो मिली-
“आजो मन में साध रहेला देखीं चेहरा आजी के
तनिको नाहीं याद परेला हमरा चेहरा आजी के।”
बहुत ईमानदार तड़प के अभिव्यक्ति बा एह में। आसिफ जी बता रहल बाड़न कि उनका छुटपने में उनकर आजी गुजर गइल रहली। उनकर कवनो तसवीर उनका मेमोरी में नइखे, सिवाय घर के लोग के बात बतकही में आजी के जिकिर के। उनका अफसोस एह बात के बा कि उनकर एगो फोटो तक नइखे। ऊ घर के लोग के बतकही आ अपना बाबूजी के सकल सूरत में अपना आजी के उटकेरे के आपन बेचैनी के गजल के विषय बनावत बाड़न। ई भावुकता ना कहाई, कहल बेलकुल ठीक ना होई। सब भुला देवे के एह कुकाठ काल में एह तरे अपना आजी के, पुरखिन के स्मृति के परिजनन के बात बतकहियन से चुन चुन के संजोवल आ एगो मुकम्मल सूरत गढ़े के कोशिश आदमी के आदमी भइला के पहचान ह।
“गोदी बइठल घर ले दुअरा दुअरा ले फिर अगना में
खूब नचावत रहुवीं का दो खींचत अंचरा आजी के।”
दुसरकी लाइन में ‘का दो’ जवन बा, तवना से समुझल आसान हो जात बा कि घर के लोग से सुनलके ऊ सुना रहल बाड़न, ई सुनलके उनका के आजी के खोज के तरफ झुकवले बा।
“उंचा नाक रहल होई गोरो होइहें इनके जइसन
बाबूजी में उटकेरीले अक्सर चेहरा आजी के।”
बाबूजी में आजी के उटकेरल, आजी के देखल भोजपुरी गजल में ई मानवोचित काम आसिफ जी ही कइले बाड़न। एह तरह के अनेक प्रसंग आसिफ जी के गजलन में देखल जा सकेला।
आसिफ जी के गजल गांव,घर, परिवार, देश, दुनिया तक के बात अपना जद में लेके चलेले। दिल्ली, पटना, नगवा,बाथे, बथानी, सिंगूर, नंदीग्राम तक अपना के ले गइल बिया। देखल जाय –
“सहल खूब पत्थर आ पानी, ए बाबू
बखरिया के झांझर पलानी, ए बाबू।
बहुत आग ओकरा करेजा में तवंके
धुआंला ना जेकर चुहानी, ए बाबू।
सुनीं ओकरो कुछ, बहुत जीयले बा
जे मउअत नियन जिंदगानी, ए बाबू।
नेवाइल कहां बा, अबो टीसते बा
करेजा में नगवा बथानी ए बाबू।”
चुहानी के आज किचेन पढ़ल जा सकेला। चुहानी के ना धुंआए के मतलब अभाव में चुल्हा उपास परल ह। जेकर चुल्हा में आग ना जरे, बेशक ओकरा करेजा में आग दवंकल करेला।
एह में ‘नगवा’ आ ‘बथानी’ के जिकिर बा। जाने के चाहीं कि ई दूनो बिहार के दूगो गांव ह जवन सामंती सेना के कुकृत्य जनसंहार के गवाह बा। शेर में बा कि एह दूनो जनसंहार के दर्द ना कम भइल बा आ ना भुलावल जा सकेला। शासन सत्ता आ न्यायपालिका जेके भुला देल चाहल, कुलि मामिले झुठला देलस, भोजपुरी गजल ओह के अपना करेजा में टांक लेलस।
आसिफ जी के गजल सांचो भोजपुरी मिजाज के गजल ह। भोजपुरी के अनेक एह तरह के शब्द मिलिहें स जेके लोग अब भुलाइल जा रहल बा। ऊ अपना अर्थ आ नया-नया संदर्भ के साथे उनका गजलन में आइल बाड़न स। आसिफ जी के गजल पढ़ के भोजपुरी के लोकधर्मी गजल के मिजाज के समझल जा सकेला।
-डॉ  बलभद्र

Related posts

Leave a Comment