अनुवाद के बाद के माने-मतलब

का जमाना आ गयो भाया। कुछ दिन से में/से के चकरी घूमे शुरू भइल बा। बाक़िर ई चकरिया के घूमलो में कुछ खासे बा। जवन आजु ले मनराखनो पांड़े के ना लउकल। ढेर लोग कहेलन कि अइसन कुल्हि काम पर मनराखन पांड़े के दिठी हमेशा जमले रहेले। अब मनराखनो बेचारे करें त का करें। उनका के आजु ले ई ना बुझाइल कि भोजपुरी में बयार मनई आ गोल-बथान देखि के बहेले। एक्के गोल में कई सब-गोल बाड़ी स, ओहिजो हावा के गति परिभाषा के संगे बहेले। जहवाँ एक गोल के काम दोसरका गोल वालन के सुझत ना होखे उहवाँ बे गोल वालन के केहू पुछनिहार कइसे भेंटाई। हजारन बरीस पुरान भाषा के बरीस-दू बरीस के जामल गोल वाला जबरी रहनुमा बन रहल बाड़ें। कापी-पेस्ट वालन के दुअरे ई भषवा मड़िया मारेले, कुछ लो अइसने क़हत भेंटा जाला। सातवीं सदी के बाबा गोरखनाथ के बानी में भोजपुरी छछात लउकेले, तबो कुछ लोग कबीर बाबा से भोजपुरी के शुरुआत कह रहल बा आ उनकरे से जोड़ के जोर-सोर में अपने माथे पगड़ी बान्ह रहल बा, मने कुछों। कुछ लो अपना आगा-पाछा अतना नु लमहर देवार बना देले बा आ कुछ लोग बनाइयो रहल बा कि भीतरि वाला लो बहरे ना आ सके आ बहरी वाला भीतरि न जा सके। इनारे के दुगोड़वा बेंग।

मनराखन पांड़े के भोजपुरी से/में अनुवाद के लेके एगो लमहर बात बतावत रहलन। सुखद लागल ई देखि-सुनि के कि कुछ लोग ओह बतिया के साथे एकरा भविष्य आ वर्तमान के लेके कुछ चर्चा आगु बढ़वले बा। मनराखन अगरा के ओह पोस्टवा के पढ़े लगलें बाक़िर ओहमें चरचा खाली एगो किताबि के कुछ रचना के बात के लेके भइल रहे। भोजपुरी में एह घरी कुछे साहित्यकार लो बा जे एह दिसाई कुछ कर रहल बा। अइसना में ओह पर विशद चरचा होखल जरूरी बा। अइसन कुछ लो के इहवाँ नांव लीहलो हमरा जरूरी बुझाता। जइसे गौतम चौबे,  दिनेश पाण्डेय, डॉ मुन्ना कुमार पाण्डेय, केशव मोहन पाण्डेय, सरोज सिंह,संतोष पटेल, डॉ राजेश माझी,जयशंकर प्रसाद द्विवेदी के संगही कुछ अउर लो लगातार भोजपुरी में अनुवाद कर रहल बाड़ें। भोजपुरी के उपन्यास ग्राम देवता आ फ़ुलसूंघी के अनुवाद अङ्ग्रेज़ी में हो चुकल बा। भोजपुरी साहित्य सरिता पछिला 18 अंक से कई गो भोजपुरी अनुवाद धारावाहिक का रूप में प्रकाशितो क रहल बा। जून अंक से हिन्दी ललित निबंध संग्रह (कुबेर का अभिशाप) के निबंध के भोजपुरी भावानुवाद प्रकाशित हो रहल बा। केशव मोहन पाण्डेय के डोगरी से भोजपुरी अनूदित बाल उपन्यास ‘छुट्टी’ हलिए पुस्तकाकार का रूप में आइल ह। हिन्दी उपन्यास (शिखरों से आगे- डॉ अशोक लव) के भोजपुरी भावानुवाद पछिला 18 अंक से लगातार प्रकाशित हो रहल बा। चाणक्य नीति के भोजपुरी पद्यानुवाद के 14 अध्याय प्रकाशित हो चुकल बा। केदार नाथ सिंह के कई गो हिन्दी कविता के भोजपुरी भावानुवाद जवना के डॉ मुन्ना कुमार पाण्डेय कइले बानी, भोजपुरी साहित्य सरिता प्रकाशित क चुकल बा। बाक़िर अइसन कुल्हि काम पर लोगन के दिठी कमे जाले, भा जइबे ना करे। कुछ लो त इहाँ ले कहेला कि भोजपुरी साहित्य सरिता के नाँव देखते कुछ लो अन्हरा जालें आ डूबे उतिराए लागेलें। ई बाति अब मनराखन के संगे-संगे घुरहू पेबारू सभे के मालूम चल गइल बा। कुछ लो दलित त कुछ लोग बाभन-ठाकुर, भुईहार के गहिराह कुंठा में अझुराइल बा। एही से अइसन कुल्हि कामन पर आजु ले केहू के कवनो टिप्पणी कतों देखे भा पढ़े के ना मिलल।

कतों केहु कवनो चिठी लिख देता त कुछ लो ओकरो में अवसर ढूँढे लागत बा। मने एह कुल्हि लछन के देखि मनराखन के मिजाज गरम हो चुकल बा। सुने में आवता कि चाची-बाची आ दुका-दुका गा रहल गवइयन के मूड़े गमछा बान्ह के आ लाठी लेके हेरे खाति निकल चुकल बाड़ें। रउवा सभे के पता होखे त मनराखन के फोन जरूर करेम काहें से कि बेगर कुरसी के 7 बरीस में उनुके कई गो पेंच ढील आ कुछ पेंच बिला गइल बा।

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

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