टिकुरी से बहावल अंखिए बर रहल बा

रामजियावन दास बावला के एगो गीत राह चलते इयाद आवेला आ मन ओह गीत के गुनगुनाए लागेला। ऊ गीत ह -” हरियर बनवा कटाला हो कुछ कहलो ना जाला।” आगे के लाइन ह -” दिनवा अजब चनराला हो, कुछ कहलो ना जाला। ” हरियर बन के कटाइल एगो मामिला बा जवन रोज देखे में आवत बा। रोज हरियर गांछ -बिरिछ विकास के नांव प कटा रहल बा। बन उजड़ रहल बा। जंगल प माफिया आ कॉरपोरेट जगत के दबाव बढ़त जा रहल बा। ई सब हो रहल बा आ बावला जइसन कवि, जे किसान जगत के कवि रहल बा, किसान कवि, ऊ एह सब से दुखी आ चिंतित होत बा आ ऊ आगे आवे वाला संकट के भांप रहल बा आ जवन भांप रहल बा, तवने के गाइयो रहल बा -‘ दिनवा अजब चनराला हो।’

एहिजा ‘चनराइल’ शब्द प जरूर सोचे के चाहीं। ‘भविष्य-भांपन ‘ के अर्थ में एह शब्द के प्रयोग होला। ठीक एही तरे हमरा सुमन कुमार सिंह के गीत के ई लाइन बारंबार गुनगुनावे के मन करेला आ हम गुनगुनाइबो करीला, ऊ लाइन ह – “हमरा बाबा के बगइचा रात दिने कट रहल बा।” हम सोचिला कि ई कवन बगइचा ह भाई जे रोजे कट रहल बा आ कवि एकरा के बहुत धीम अंदाज में गा रहल बा। बगइचा आ बाबा के जब बात चलल त एगो कजरी इयाद आ रहल बा – “हमरा ही बाबा के दुअरा प निमिया कि सब सखी लावेली हिलोरवा। ” बाबा आ नीम आ बगइचा के भोजपुरी लोकगीतन में खूब उल्लेख बा आ ई असहीं नइखे। सुमन जवन बगइचा के बात करत बाड़न ऊ दू अर्थ में बा। एगो त गांछ-बिरिछ वाला ह आ एगो आदमी-जन के परिवार वाला ह। लोग अकसरहां बात बात में परिवार के फुलवारी भा बगइचा कहबो करेला। ऊ दूनो बगइचा अब कटत जा रहल बा। पेड़ कट रहल बा, आदमी से आदमी कट रहल बा। हर-हथियार अब खेलौना बन गइल बा। लोहा के खेलौना से पेड़ आ मानुस दूनो हतल जा रहल बा। अब त जेसीबी आ गइल बा जवन पेड़न के सीधे उखाड़ देला। सुमन एह गीत में बर, पीपर प संकट के साथे साथ हारिल के ऊ डर भी देखत बाड़न जवना के चलते ओकर जोड़ा अब चैन से कतो बइठ नइखे पावत -“काव में हारिल के जोड़ा डर से ना उतरे कबो।” काव माने ताल-पोखर के किनारा। हारिल के डर के संगे इहो बात बा कि ” गाँव- गंवई के आबादी लोर पी के रह रहल बा।” बाबा के बगइचा के कटे से लेके आदमी आ चिरई-चुरुंग के संकट के साथे साथ ई बात गौर करे जोग बा कि आदमी जनमे से बेबस आ लाचार ना होला, बलुक ओकरा के बेबस लाचार बना देल जाला, परथकू बना देल जाला। ट्रेजडी अइसन कि आपन सपना आ कल्पना से ओह के बेलाग कके ओकरे साधन से ओकरे सोझा विकास के नारा देल जा रहल बा, मॉडल के बात हो रहल बा – “जनमे से आन्हर ना रहलीं हम भिखारी ना रहीं, आंख टिकुरी से बहा के सभके बिजुरी बर रहल बा।” टिकुरी से बहावल अंखिए बिजुरी के बल्ब अस बर रहल बा। एहिजा ई जिकिर कहल चाहब कि अइसन बात पहिले कहत रहे लोग कि मुअल आदमी के अंखिए जोन्ही बन आकाश में सारीरात बरेला। जवान आदमी के आंख चटक बरे वाली जोन्ही बनेला। सुमन एह के नया अर्थ आ संदर्भ देत बाड़न।

एहिजा रमता जी के किसान कविता के ऊ बात इयाद आवत बा कि किसान अपने कान्हा प आपन लाश ढोवे प मजबूर बाड़न। समय के एह त्रासद सांच के देखल-देखावल बहुत जरूरी बा।

सुमन के एगो अउर रचना खूब जमेला। ओह में एगो माई बाड़ी, घर गिरहती संभारे वाली। मन त हो रहल बा कि पूरा बात कथा अस कहि जाईं। सचो एह में एगो मेहरारू के कथे कहल गइल बा। एह के ‘स्मृति बिम्ब’ कहल ठीक होई। माई के हाथ के रेखा एहमे गोइंठा तक में देखल

गइल बा। गोइंठा पाथत जे देखले होई ओकरा खातिर ई अचरज के विषय ना होई। गोइंठा पाथल जाला खायक बनावे खातिर। खाना दूनो जून बनेला। गोइंठा के धुंआ दूनो बखत ऊपर उठेला। नागार्जुन के कविता ‘अकाल और उसके बाद’ में बा कि ‘धुंआ उठा आंगन के ऊपर।’

सुमन एह धुंआ के संगे माई के हस्तरेखा के छापो आकासे उड़त देखत बाड़न। अपना ‘स्मृतिशेष’ माई के। ई बेलकुल नया अंदाज बा।

” माई तोहरा हाथ के रेखा, गोइंथा में उभरल देखलीं

जब उड़े आकाश में धुंआ, रोजे जात सरग देखलीं। ”

माई प भोजपुरी में कविता खूब मिली। भोजपुरिए नाहीं, हिंदियों में, आ अउरियो भाषा में। सुमन के कविता भी ओह कतार में बिया। एह में जवन माई बाड़ी ऊ मतारी के संगेसंग बापो के भूमिका बाड़ी। हक हिस्सा खातिर आपन आवाज बुलंद करत-

“हक-हिस्सा प गोतिया-नइया, जब-जब दीठ गड़वलें

पूरे ना देलू साध केहू के, बन के बाप लड़त देखलीं।”

साड़ी के एक खूंट के आंचर आ एगो खूंट गेंठ परले माई ताजिनगी आस के बले खटत रहली। बाकी का कि

” सुने में आवे घर के बहुरिया, पहिल-पहिल जब अइलू

अनजा से घर भरल रहे अस, कबहूं भरल ना घर देखलीं।”

माई के बहुरिया बन आवे के समय के सुनल-सुनावल बात से लेके माई के अपने आंखी देखल-महसूसल बात तक एह में बा। ओह माई के बात बा जे अने-धने भरल पूरल घर ना देखली। भरे-पूरे खातिर जिनगी भर जूझत रहली।

सुमन हिंदी आ भोजपुरी में बराबर सक्रिय बाड़न। कविता आ कहानी के संगेसंग आलोचनो लिखेलें। इनकर एगो हिंदी कविता के किताबो छपल बा जेकर नांव ह ‘महज बिम्ब भर मैं’। भोजपुरी के नयकी पीढ़ी के ई एगो महत्वपूर्ण कवि-लेखक बाड़न।

-डॉ  बलभद्र

 

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