गाँव आ गँवई नारी के हालत क पोढ़ लेखा-जोखा- “के हवन लछुमन मास्टर”

यथार्थ के खुरदुरा जमीन पर आम आदमी के जूझत जिनगी के जियतार बखान लीहले भोजपुरी के सुप्रसिद्ध कथाकार श्री कृष्ण कुमार जी के भोजपुरी क पहिलका उपन्यास आजु के समाज के आधी आबादी जेकर चरचा हर ओरी बा, बेटी पढ़ावों, बेटी बचाओ, के नारा लग रहल बा, “के हवन लछुमन मास्टर” के रूप मे हमनी सभे के सोझा बा । उपन्यास आपन शिल्पगत विशेषता आउर तथ्य आ कथ्य के संगे जिनगी के जवन ब्याख्या देवेला, उ जियतार होला आ समाज खाति एगो अन्हरिया मे टिमटिमात दियरी लेखा सहारा बनेला। ई उपन्यास आजु के समाज मे शिक्षक लोगन के महती जिमवारी खाति उद्वेलित करत समाज की कुरीतियन आ नारी विमर्श के एगो आधार स्तम्भ लेखा बा। पाँच खंड मे लिखाइल ई उपन्यास अपने फेंटा मे ढेर कुछ समेटले बा। भोजपुरी के कहाउत, भूलत बिसरत शब्दन के जोगावत अपने जतरा मे निकलल बा।

 

उपन्यास “के हवन लछुमन मास्टर” मे उपन्यासकार गँवईं जिनगी हूबहू खाका खींचले बाड़न। भाषा ठेठ टकसाली भोजपुरी जवना मे कहाउतन के भरमार बा,एकदम गहिराह परयोग रोचक बन गइल बा। उपन्यास के पहिलका खंड मे एगो प्राइमरी स्कूल के हेडमास्टर के रूप मे रघुवा गाँव लछुमन मास्टर के आगमन से शुरुवात भइल बा। गाँव के रीति रेवाजन के संगे मेहमान के सनमान के परम्परा क बरियार रेखाचित्र खिंचाईल बा। औसत गाँवन के स्कूल मे पढ़ावे वाला मास्टर आ पढे वाले लइकन के स्कूल मे उपस्थिती के यथार्थ बाति के सबके सोझा सहजता के संगे उपन्यासकर राखे मे सफल भइल बाड़ें। मिड डे मील वाली सरकारी योजना केस्कूलन मे दशा दिशा का होला नीमन से उजागिर भइल बा। लछुमन मास्टर के बेवहार आ संघर्ष के चलते रघुवा गाँव के स्कूल के दशा दिशा मे गंवे गवें बदलाव आवे शुरू भइल। मरद-मेहरारू के झगरा के बहाने गँवईं मेहरारून के असली पहिचान सबके सोझा आइल बा। सिजतन आ लखपतिया क चरित्र के लेके सुधार के गुंजाइस कइसे निकालल जा सकेला, एकरो के नीमन रखाइल बा। समाज मे मेहरारून के सनमान होखो ओकरे खाति उपन्यासकार मजगुती से आपन बात राखत कह रहल बाड़ें-

 

“मेहरी के मारल आ गाय के मारल कबों माफ ना होखे।“

 

आधी आबादी मने नारी विमर्श के कुल्हि बाति शहरन तक सिमट के रहि जाले। गँवईं मेहरारूरन के त अजुवों कतों कतों इहे कहल जाला कि-

 

“नइहर से ससुरा अइलू, गोबर पथलू, बकरी चरवलू, घास गढ़लू। करिया अच्छर भइस बरोबर।“

 

गाँवन मे जहवाँ शिक्षा के किरिन नईखे पहुंचल उहाँ के स्थिति निम्मन नइखे। रूढ़िवाद,परम्परा आ देवास के हालत के संगे-संगे भूत-प्रेत, ओझा-सोखा आ ओहनी के गिरफ्त मे अझुराइल गंवई मनई अजुवों बाड़ें। एकर सबसे बेसी शिकार त मेहरारूवे होनी सन। भूत, परेत, चुरइल, डाइन के कहनी सुनाके, ओकरे फेरा मे फंसाके ओझा अजुवों मेहरारून के इज्जत से खेलि रहल बाड़ें। बड़ा जियातार तरीका से उपन्यासकार एह बाति के सोझा रखले बाड़ें –

 

“निम्मन-निम्मन घरन के सुघर मेहरारू साज-धज के बेसकीमती साड़ी-ब्लाउज पेन्हले रघुनी ब्रह्म तर झूमत तारी स आ अन्हार होते होरिला के बगइचा मे ओझन के साथे हमबिस्तर हो जा तारी सन। आपन लुग्गा अपने लुटवा दे तारी सन।“

 

रोजगार के चलते जवन पलायन होला ओहमे सबसे बेसी मेहरारूवे पिसानी। कहीं-कहीं उ अपने जिस्मानी जरूरत खाति खुदे एह फेरा मे फंसेली आ कहीं-कहीं घरे के लोगन के बेवकूफी के चलते ई सब होला। एह कुल मे बहुते घरन के इज्जत चरमरा के टुटत रहेला ।

 

गाँव के बरियार दबंग लोगन के दबंगई के चलते खेते-खरिहाने, पुवरौटी, भुसउले खूब अनैतिक कामो होला। मेहरारून के इज्जत से खेलवाड़ करे वालन के कमी नइखे। अइसना जगहा पर “बेटी बचाओ,बेटी पढ़ावो” के बात बेमानी बुझाले। लइकी-लइका के भेद अजुवों खूब लउकेला। लइकिन के बियाह भइला के बाद अगर उनका कवनो मदत के जरूरत परि जाले आ उ मदत खाति अपना नइहर चहुंप जाली, त उनका हिस्से झिड़की आवेला। कहे के मतलब ई बा कि लइकिन के सहजोग करे के बात निम्मन ना मानल जाले।

सगुन-असगुन के नांवों पर सबसे बेसी अत्याचार महरारूने पर होला। समाज के बनावल नियम भा वर्जना खाली महरारूने खाति बा। एही से त कहल जाला मरद प्रधान समाज मे खालि मेहरारूवे बीपत उठावेली। उपन्यास के नायक लछुमन मास्टर के बहाने शिक्षकन के जिमवारी केतना बढहन हो सकेला आ एगो शिक्षक का का क सकेलन जवना से पिछुवाइल गांवन के दशा सुधर सकेले, एह बात के निम्मन से उकेरल गइल बा। ओझा-सोखा जइसन बेमारियन मे साक्षरता के कइसे हथियार बना के अजुमावल जा सकेला, उपन्यासकार बढ़िया से बतवाले बाड़न।

आजु के एह जुग मे गाँवन मे मेहरारून के दशा के बतावत एह उपन्यास के एगो चरित्र “लटगेनिया” भुलवावे जोग नइखे। लटगेनिया के बहाने गांवन मे मरद-मेहरारू के अनैतिक रिस्ता, मेहरारून के संगे हो रहल बलात्कार आ अपहरण के ताना-बाना सब कुछ बता रहल बा। गांवन मे गरीब-गुरबा के लइकी भा मेहरारू के संगे का का हो सकेला, लटगेनिया के संगे उ सब भइल बा,गाँव के दबंगन से लेके लफूआ तक ओकरे संगे कुछहू करे से नइखे चूकत। एकरे चलते जब उ बेमारी के शिकार हो जातिया, त मुँह फेर लेत बदन स। ओह घरी लटगेनिया खाति लछुमन मास्टर भगवान बनि के ओकर इलाज करा के फेर से जीवन दे रहल बाड़ें। जब लटगेनिया बेमारी से उबरि जाता, फेर उहे लफुआ ओकरे घरे के चक्कर लगावे लागत बाड़न। जब उ झिड़क देता, त ओकर अपहरण एगो बदमास से करा देहल जाता। एह बहाने उपन्यासकार एगो आउर कुरीति पर सबके धियान खींचे मे सफल बाड़ें।

उपन्यास के अंत सुखांत कहल जा सकेला । अइसन कुरीतियन के बीच रहला के बादो लटगेनिया के आतमा ओह घरी जाग जात बा, जब ओकर अपहरण क के ओकरा के रखैल के जिनगी देवे वाला बटोरना के हत्या ओह घरी कइलस जब उ अपने गिरोह के संगे रघुवा गाँव के लछुमन मास्टर के मारे जात रहल। तब लटगेनिया के ई कहल –

“साँच आदमी उहे हs, जे आदमियत खातिर जान दे देला। हम त जान ले लेनी।“

कुल मिला के उपन्यासकार कृष्ण कुमार जी अपने दमगार भाषा आ पोढ़ संवादन के संगे गांवन के दीन-दशा,  अशिक्षा आ कुरीतियन के ओरी सभे के धियान खींचे मे सफल भइल बाड़े। उपन्यास शुरू से अंतिम तक पाठक के बान्ह के राखे मे सक्षम बा। ई भोजपुरी उपन्यास नारी सशक्तिकरण आ नारी विमर्श के दिशाई एगो लमहर परयास लेखा देखल जाई। मुहावरन के परयोग से भाषा जियतार बन गइल बा। इहे त भोजपुरी के गहना ह,सुघरई ह आ ओहू से बढि के जीवन रस ह।

 

पुस्तक – के हवन लछुमन मास्टर

विधा- उपन्यास

उपन्यासकार – कृष्ण कुमार

प्रकाशक- अरुणोदय प्रकाशन,बक्सर

मूल्य – रु0 200.00

प्रकाशन वर्ष- 2018 (पहिला संस्कारण)

 

जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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