बाउर बातिन का बिरोध से बेसी जरूरत बा नीमन बाति के लमहर परम्परा बनावे के !

हम विषय पर आपन बात राखे का पहिले रउवा सभे के सोझा 3-4 बरिस पहिले के कुछ बात राखल चाहत बानी। 20-22 करोड़ कथित भोजपुरी भाषा भाषियन का बीच 3-4 गो पत्रिका उहो त्रमासिक भा छमाही निकलत  रहनी स। ओह समय भोजपुरी के नेही-छोही रचनाकार लोगन का सोझा भा भोजपुरी के नवहा रचनाकार लोगन के सोझा ढेर सकेता रहे। ओह घरी 3-4 गो जुनूनी लोगन का चलते भोजपुरी साहित्य सरिता के जनम भइल। एकरा पाछे एगो विचार रहे कि भोजपुरी के नवहा लिखनिहार लोगन के जगह दीहल जाव, पुरान लोगन के अनुभव से सीख लेत कुछ अइसन काम कइल जाव, जवना से भोजपुरी भाषा के बढ़न्ति होखे। एह दिसाई अपना बीचे तकनीकि के भाषा में कहल जाव त उत्प्रेरक आ भोजपुरी में कहल जाव त हुरपेटिहा का रूप में डॉ सुमन सिंह बानी, जिनका के भोजपुरी साहित्य सरिता परिवार बेसी छोट बहिन का रूप में जाने आ मानेला बाकि कबों-कबों ई बड़ बहिन बन के कानो खींचेलीं। इनका हुरपेटला के प्रभाव से डॉ अशोक द्विवेदी भा डॉ प्रकाश उदय जइसन लोग ना बच पावल, त हमनी के कवने धान के होरहा। एही परिवार में भोजपुरी साहित्य सरिता के शिल्पी आ भोजपुरी के युवा तुर्क केशव मोहन पाण्डेय जी बानी, जिनका अनथक मेहनत से कइसनों अझुरहट सझुरा जाले। एही परिवार के एगो आउर सदस्या डॉ ऋचा सिंह जी बानी जिनका के हुरपेटे के काम हमरा जी में बा। आजु भोजपुरी अध्ययन केंद्र अइसन सुयोग बनवलस कि ऊ चारो लोग पहिला बेर एक संगे इहवाँ बा।

इहाँ-उहाँ से सुने के मिलेला कि हम भोजपुरिए में भोजपुरिया लोगिन से बतकही करीलें त ओह लोगन खातिर ई बतावल जरूरी हो जाला कि भोजपुरी हजारन साल से घर आ भोजपुरिया समाज के आपसी बात-व्यवहार के भाषा रहल बिआ । भोजपुरी एक समय कचहरी , आ सरकारी भाषा रहल बिआ एह से रउवा भोजपुरी में केहू से बतिया के भोजपुरी खातिर कुछ बेहतर नइखी करत , हं भोजपुरी में लिख के आ भोजपुरी लिखाइल चीजन के पढ के रउवा एगो सही डेग धरब अपना मातृभाषा के बिकास में । भोजपुरी भाषा एगो अइसन भाषा रहल बिआ जवन दोसरा असरा दीहले बिआ, असरा हेरले नइखे। भोजपुरी अजुवो जिंदा बिआ त ओकरा पाछे भोजपुरिया समाज के आधी आबादी आ ओह लोगन के चलते जेकरा से इलीट लोग बातो करल पसन ना करे। कुछ हेहन लोगन के चलते भोजपुरी के जवन रूप बिगरल, एह में अश्लीलता आइल, ओह लोगन के दीयरी बुताए लागल बा। बाउर आ फूहरपन के उमिर लमहर ना होखेला। साँच परेसान होला, हारत ना, एह बाति के अब सभे के अपने-अपने लुगरी मे गठिया लेवे के चाही। जब तलक भोजपुरिया माटी आ ओकर खाँटीपन जीयत रही, भोजपुरी भाषा के सनमान बनल रही, बढ़त रही। गमछा आ लाठी जवन भोजपुरी भाषा के पहिचान का रूप मे मानल गइल बा, असल मे उ एकर विशेषता बा, सबूरी के मजूरी कइसे लीहल जाला, ई भोजपुरिया लोगन से बेसी केहु ना जाने, आ जनिओ ना सकत, काहें से कि ई कन-कन आ सांस-सांस में भोजपुरियन के बसल बा।

भोजपुरी साहित्य सरिता के डेग पाठक लोगन का सोझा एही सोच के लेके आइल आ रउवा सभे के नेह-छोह से, सहजोग से आ स्वीकारता से हरियर भइल। फूल आ पाती लगी,इहो बिसवास बा। भोजपुरी भाषा में लिखे-पढ़े वाले लोगन के जोरत-बटोरत, भोजपुरी भाषा खाति आपन जिनगी लगावे वाला लोगन के सनमान करत, नवहा लोगन के मन आ मान बढ़ावत भोजपुरी भाषा आ साहित्य के सजावे-सँवारे में आपन एक चुरुवा जल ढारि रहल बिया, आगहूँ एही उछाह से लागल रहे के सोच मन में बाटे।

 

अब बिषय पर आ रहल बानी। एगो बात फेर से बतावल हमरा जरूरी बुझाता कि ई किताब भोजपुरी साहित्य सरिता के मई -2018 के अंक में थोर-ढेर बदलाव का संगे पुस्तकाकार रूप में ओझा बा। एह अंक के सोच डॉ सुमन सिंह के रहे आ इनका हुरपेटला का वजह से संभव हो पावल। अंक के सोझा ले आवे क गम्हीराह काम हमार आ केशव जी के रहे। जतरा शुरू भइल, एह में भोजपुरी के बड़ विद्वान लोगन के भरपूर सहजोगों मिलल। डॉ बलभद्र से लेके डॉ प्रकाश उदय, डॉ जयकान्त सिंह ‘जय’,डॉ ब्रजभूषण मिश्रा, प्रेमशीला शुक्ल  जइसन सभे लोग एह जग में एक चुरुवा पानी दीहल। बाकि ओह घरी पत्रिका ई-पत्रिका का रूप में रहे, एह से प्रिंट ना भइल। एह अंक के प्रिंट खाति डॉ बलभद्र जी आ डॉ सुमन के सभेले बेसी दबाव रहल। ओही के परिणाम आज ई किताब का रूप में राउर सभे के सोझा बा।

भोजपुरी भाषा खाति सम्पादन के काम दिल्ली आ एन सी आर  में बइठ के कबों आसान ना रहे,अजुवो नइखे। अगर हम ई कहीं कि पत्थर पर दूब जमावे लेखा बा, त गलत ना होखी। उहाँ भोजपुरी में टाइप करे वाला लोगन के ढेर ठाला बा।अक्सरहां ई काम खुदे निभावे के परेला। अपने भीरी जवन उत्प्रेरक बानी,ऊ बहुते बरियार बानी। मने करे के बा त बा, आ ऊ करहीं के परी। पत्रिका के मई -2018 अंक जवन आज राउर सभे के सोझा किताबि का रूप में बा, एकरा चलते हम एतना उबिया गइल रहनी कि पत्रिका के लेके ढेर उल्टा-सीधा बाति मन में चले लागल रहे। बाकि अंक का पूरा भइला का बाद मन के जवन सुकून मिलल,ओकरा के कागज पर उकेरल भा कहल मोसकिल बा। एह अंक का चलते भइल उबाहट खाति हम माफी मांगत डॉ सुमन सिंह के आभारों जतवनी।

आज पत्रिका भा किताबियन के पढ़निहार लोगन के ढेर टोटा बा आ भोजपुरी के हाल केकरो से छिपल नइखे। अइसना किताबि के बिकइला के बात ….. सपना के सम्पत बुझी। एकरा पाछे फिरी वाली संस्कृति बा। आजु भोजपुरी भाषा खाति सबसे बड़का जोगदान इहे बा कि रउवा भोजपुरी के किताबियन के किनी आ फेर पढ़ी। जय भोजपुरी बोलला से भा मंच पर माला पहिरला से भाषा के बढ़न्ति हमरा त संभव ना बुझाला।

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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