बिला रहल थाती के संवारत एगो यथार्थ परक कविता संग्रह “खरकत जमीन बजरत आसमान “

मनईन के समाज आउर समय के चाल के संगे- संगे  कवि मन के भाव , पीड़ा , अवसाद आउर क्रोध के जब शब्दन मे बान्हेला , त उहे कविता बन जाला । आजु के समय मे जहवाँ दूनों बेरा के खइका जोगाड़ल पहाड़ भइल बा , उहवें साहित्य के रचल , उहो भोजपुरी साहित्य के ,बुझीं  लोहा के रहिला के दांते से तूरे के लमहर कोशिस बा । जवने भोजपुरी भाषा के तथाकथित बुद्धिजीवी लोग सुनल भा बोलल ना चाहेला , उहवें  भोजपुरी  के कवि / लेखक के देखल , मति पूछीं । अइसने मे डॉ ब्रजभूषण मिश्र सरीखा भोजपुरी भाषा के पहरुवा के कविता संग्रह “खरकत जमीन बजरत आसमान” ओही समाज के बिला रहल थाती के जोगावे ला एगो लमहर परयास करत देखाई दे रहल बा ।

भोजपुरी भाषा भाव के भाषा ह । भोजपुरी भाषा के शब्द भंडार आउर ओकर धार के जानल आउर ओकरा के सोझा परोसल , फेर ओकरे आपन हथियार बनाके समाज के लोगिन के बतावे ला कवि पुरजोर कोशिस कर रहल बा । आजू के समाज मे भोजपुरी आउर भोजपुरियापन से जवन भोजपुरिया लोग शरम कर रहल बाटें , उनुका के जगावत कवि क़हत बाटें –

” इयाद के बसिया पानी मे

डूबा के

शब्द के धार तेज करीं ।”

 

चारुओर पसरल अन्याय आउर कुपोसन के कुहास से कवि हिरदे दूर कइसे हो सकेला –

जाँगर ठेठवला के बादो

हाँडी उलाटल बा

त टोला परोसा से

खपड़ा पर आगि

मांगियों के

का हो सकेला ?

गाँव समाज से बिला रहल नेह – छोह , एक दोसरा ला करे धरे के चाह , जवन अब हेरे के पड़ रहल बा । पीपर आ बबूर मथेला कविता मे उपराइल बा । देखल जाव –

 

ना जाने कइसे

सुख गइल पीपर आ

सपना हो गइल छांह

पीपर के छांह –

जहां बनल रहे चउतरा पर

बइठत रहे संउसे गाँव

बांटत रहे

आपन दुख – दरद ।

 

जब बेगर कवनों बेजाँय के मनईन के दबावल जाला , उनुके जीये के रसता मे ठोकर बनावल जाला भा उनुकर जीयल काल करल जाला त बिरोध के एगो ज्वार उठेला ,ओकर रूप अइसने होला –

 

अगर इ साँच बा

एकरा पाछे

राउर हांथ बा ,

त मुट्ठी भर

राख़ लेके –

हम खोज रहल बानी

रउरे के

कि मल सकीं

रउरा मुँह पर करिखा ।

 

लंका आ रावण मथेला कविता मे कवि पौराणिक चरित्रन के आपन हथियार बना के आपन बात बड़ी चतुराई से रखले बाड़ें । जवन बाति आजु के समाज खाति सोरहो आना साँच बा –

 

मोहित बाड़ें राम – लखन

सुपनखिया रूप पर

आपुस मे लड़त बाड़ें ।

 

समाज के छीजत रिस्तन पर कवि के लेखनी समाज के अइना देखावे खाति मजबूर देखाता –

 

आजु के बनि जटायु ?

जे रावण से लड़ी

आपन पांख कटवाई

आ परमारथ मे

घवाहिल होके

छटपटाई ।

 

आज जहवाँ केहू से दोसरा के बढ़न्ति ना देखल जा सकत बा । ओहू पर कवि के लेखनी चलल बा आ खूब चलल बा । देखीं –

 

आज के बानरी सेना

खाली उधम मचावत बा

बान्ही कइसे सेतु

उ त पुल के नीचे

पलीता लगावत बा ।

 

धन आउर राजनीति के बाउर गठज़ोर पर कवि के पीड़ा देखीं –

 

धन अरजइले ना अरजाइल

दुश्मन अरजे लागल

लोग बाग के गला रून्हाइल

गोली गरजे लागल

जहर समेटले जीयत बडुवे ।

 

इ कविता संग्रह कविता के कई रूप अपने मे समेटले बा । एहमे पाँच गो खंड बा – मुक्त छंद, तितकी, हाइकू- सनेरयू , गीत -नवगीत – जनगीत आउर दोहा ।  बाकि दोहा सबसे नीमन तरे से लोगिन अपने ओरी खींचे मे ढेर सफल देखात बा । कम शब्द मे चोख बात राखे मे दोहा के कवनों जबाब ना होला –

 

ठूँठ भइल हर गांछ बा , एगो ना छतनार

छांह भला कइसे मिली , के बान्ही अँकवार ।

 

कवि प्रयोग करे मे पाछे नइखे । देखीं एगो गीत के –

 

“बान्ह त बन्हा गइल बा ओनहीं

इहाँ  तक आ , नदी बा सुखाइल

धूप मे त जेठ के जलन बा

छांह बाटे कतहीं घेराइल

गायब बा भीतर के कागद

खलिहा लिफाफा बा आइल !”

 

भोजपुरी पाठक ला एगो नीमन उपहार बा इ कविता संग्रह “खरकत जमीन बजरत आसमान ” । ढेर लोगिन के नीमन पाठ सिखावे ला मिठकी गोली । कवि डॉ ब्रजभूषण मिश्र के फ़लक मे एगो नया हीरा जड़ गइल बा इ काव्य संग्रह । एकरा संगे कवि के हमार अनघा बधाई बा ।

 

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

 

 

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