कबले होइहं गवनवा हमार

कबले होइहं गवनवा हमार भउजी।

बाटे मौसम मे आइल खुमार भउजी।

 

बसंती हवा चले देहीयां दुखाता।

कोइलर के बोलियो माहुर बुझाता।

नीक लागे ना पायल झंकार भउजी।

कबले होइहं गवनवा हमार भउजी।

 

सरसो के खेतवा मता के पिअराइल।

आमन के बगिया बा खूबे मउराइल।

सून्न लाग$ता सगरो जवार भउजी।

कबले होइहं गवनवा हमार भउजी।

 

अपने बहिन से  बियाह रचवइलू।

ओकरे बाद आजू ले ना बोलवलू।

भइल फागुन मे हमके बुखार भउजी।

कबले होइहें गवनवा हमार भउजी।

 

अब गवना करा द तोहार गुन गाइब।

लइकन के तोहरे खेलाइब घुमाइब।

दिन काटल भइल बा पहाड़ भउजी।

कबले होइहं गवनवा हमार भउजी।

 

  • जगदीश खेतान

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