गीत

हम गइलीं चउकठि के
लवट अइलीं गांव ।
काली आ कमइछा
बाबा बरम्ह के ठांव। हम——

केकरा से बोलतीं आ
केके देख हँसतीं
कवना बिधि जियरा के
गम-दुख अंकतीं
सकदम अरथ
सबद फइलांव। हम—-

धनि हो नहर तूं
बांगर धनखरलू
जहाँ उड़े धूर तहाँ
कमल उगवलू
बाकी खोजले न मिले
बाग बड़की के छांव। हम—

थनि भूमि भूखले न
हमरा के रखलू
मन के पसन्द तवन
कवर खियवलू
मन्दिरो से ढेर तोर
खँड़हर नांव। हम—-

कलम खबरदार
झूठ जदी बोललू
माँगि के कितबिया
उधार तुहूं पढ़लू
अइसना सहिरदयी के
हम छुईं पांव।हम—–

 

  • आनन्द संधिदूत 

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