पिनकू जोग धरिहन राज करीहन

बंगड़ गुरू अपने बंगड़ई खातिर मय टोला-मोहल्ला में बदनाम हउवन।किताब-ओताब क पढ़ाई से ओनकर साँप-छुछुनर वाला बैर ह।नान्हें से पढ़े में कम , बस्ता फेंक के कपार फोड़े में उनकर ढ़ेर मन लगे।बवाल बतियावे में केहू उनकर दांज ना मिला पावे।घर-परिवार अड़ोसी-पड़ोसी सब उनके समझा-बुझा,गरीयाय के थक गयल बाकिर ऊ बैल-बुद्दि क शुद्धि करे क कवनों उपाय ना कइलन।केहुतरे खींचतान के दसवीं ले पढ़लन बाकिर टोला- मुहल्ला के लइकन के अइसन ग्यान बाँटें कि लइका कुल ग्यान के ,दिमाग के चोरबक्सा में लुकवाय के धय आवें अउर तब्बे बहरे निकालें जब मनोरंजन करे के मूड होखे।एक बार चोरी-चोरी ग्यान बहरिआवे क करतब देखावत पिनकू पकड़ाय गइलन।भयल इ कि एगो लइका उनसे ‘एल. एल. बी ‘ क फुल फॉर्म पूछे आयल त पिनकू कहलन–‘ देखा भाय , ई गियान बंगड़ गुरु ओरी से मिलल ह त गुपुते रखे में भलाई समझिहा। नाही त तू जनिहा तोहार काम जानी… तोहार कटहा बाबू जब तोहके धउरा-धउरा के मारे लगिहन त हमके दोस मत दीहा …ठीक न ,त सुना।एल .एल .बी. क फूल-फारम होला ‘ लालमती क लछमिनिया ब्यूटीफूल’ ।’ लइकवा ई सुन के अबहीं दाँत-फड़हीं वाला रहल कि लछमिनिया आपन नाम सुन के अउर हंसी-ठिठोली सुन के दहाड़ मार के रोवे लगल।ओकरे बाद पिनकू क दउरा-दउरा के तोड़ाई भईल।ओ दिन के बाद पिनकू जयिसहीं बंगड़ गुरू के देखें आन्ही नियन अन्हें हो जायँ ।बाकिर बंगड़ गुरु केहू के पाछे पड़ें त आफत-बीपत नियन पड़ जाएँ।एक दिन पिनकू के दुआरे जोतिसी बोलावल गईल रहलन।पिनकू क माई सवाल पूछ-पूछ के ओनके परेसान क घले रहलीं।पंडित जी हूँ-हाँ करत ,कुंडली देखत, छत -असमान निहारत एकदम हलकान भयल रहलन कि तबले बंगड़ उंहवां पहुँच गइलन—
‘ का हो पंडी जी, केकर कुंडली विचारत हउवा …आंय।” बंगड़ के बवंडर से सबही घबरात रहल बाकिर पंड़ी जी पसेना पोछ के कहलन-
” पिनकू क…” पंडी जी केहू तरे पिनकू के माई अउर बंगड़ के बवाल से छूटल चाहत रहलन ऐसे जल्दी-जल्दी पतरी-पोथी समेटे लगल रहलन।
” अर्रे ..का हो चाची ,का बेचारा पिंकुवा के पाछे पड़ल रहे लू …तनी अपनही लूर-सहूर सीख ले ले रहतू त लइकवा अपने आप न होनहार निकल जात।पंडा-पंडी के कुंडली देखवले कुछ होवे वाला रहत त हमार अम्मा त सैकड़न बार हमार कुंडली देखा घललस…आंय।”
“ए बंगड़ चल जा त इँहा से ,तोहरे नियन लखैरा बिसनाथ बाबा सात घर दुसमनो के नत दं… भागत हउवा कि ना इँहा से।कुल टोला-मोहल्ला के लइकन के नास घलला.. कुलबोरन कहीं क।ए गुरू जी काहें कुल पोथी-पतरा सरियावत हईं।बतायीं त पिनकू कवन पढ़ाई पढिहन क बड़ अदिमी बनिहन।” पंडी जी फिरो पतरा खोल के गणना करे लगलन।बंगड़ आपन बेइजती बरदास्त ना क पावत रहलन अउर एही खीस में चाची क आकी बाकी पूरा करे क मोका ढूँढे लगलन।
” बचवा मन लगा के पढ़िहन त भबिष्य में बड़ पद पर बिराजमान होइहन।राजयोग लिखल ह इनका कुंडली में बाकिर इहो बात क डर ह कि …।” पंडी जी अबहीं बोलहीं के रहलन कि बंगड़ कूद पड़लन-
” कालसरप जोग ह का हो बाबा…?”
“नाही…।” पंडी जी बंगड़ के बोली-बानी में बिसमाधल ब्यंग के भाँप गयल रहलन।
” त बुद्धि-उद्धि प सनी बाबा क प्रकोप होवे क संका ह ?” बंगड़ जेतने सवाल पूछें चाची ओतने खिसीयाय।
“नाही भाय…।” पंडी जी खुनुसा गइलन।
“तब ?” एना पारी पिनकू खुदे मोर्चा सम्हाल लिहलन।
” मन लगा के पढ़िहन त ई डाकटर- ओकटर बन जयिहन नाही त (बंगड़ ओरी कनखी ताक के) गलत-सलत संगत में पड़िहन त नासे ह… नसा -ओसा करेके भी जोग देखात ह।”
“तू पतरी में देख के जोग देखत हउवा हम रोज देखत हईं… नसा-ओसा..।” बंगड़ एतरे बड़बड़इलन कि केहू सुने चाहे न सुने पिनकू सुन लें।अउर साँचो पिनकू सुन लिहलन अउर इसारा-इसारा में बंगड़ गुरु क हाथ -गोड़ जोड़े लगलन।
” ए पंडी जी तू एकदम लिख लोढ़ा-पढ़ पत्थर हउवा।हम एगो जानकार पंडित से पिनकू क हाथ देखवले रहलीं त ऊ कहलन कि लइका बड़ भारी बैरागी बनी।” बंगड़ मंद -मंद मुस्कियात बंगड़ई पर उतर अइलन।
” साँचो हो बचवा ?” अब चाची क सांस -परान टंगा गयल।
” हं हो चाची। बनारस में बस के बैरागी बन के तरे क मोका बड़भागी लोगन के मिलेला। का हो पंडी जी, कहा कि झूठ कहत हईं ?” बंगड़ तीर नज़र से पंडी जी के घवाहिल करे क कोसिस करत पुछलन।
” ए बचवा तब त कुल धन-संपत,कुल-खनदान बिला जाई।बचवा जोगी-बैरागी बन जयिहन त हम त अभागिन हो जाईब।” चाची छाती पीट रोवन -पीटन करे क तैयारी में रहलीं त बंगड़ बात सम्हरलन-
“नाही हो चाची आजकाल लोग जोगी बन के भी राजकाज भोगत-सम्हारत हउवन।पहिले क ज़माना गयल कि कहल जात रहे कि ‘संतन को कहाँ सीकरी सो काम, आवत जात पनहिया टूटी बिसर गयो हरिनाम।हमहन क पिनकू भी ओहीतरे एक दिन राज सम्हरिहन।का हो पंडी जी कहा कि झूठ कहत हईं।” बंगड़ ठहाका मार के पिनकू क पीठ ठोंकत रहलन अउर चाची भजन जस जपे लगलीं… हमार बचवा पिनकू जोग धरिहन, राज करीहन।हमार करेजवा -दुलरुवा पिनकू जोग धरिहन ,राज करीहन।
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डॉ. सुमन सिंह

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