मुफ़लिसी में चमकल नगीना-हीरा प्रसाद ठाकुर

साहित्य के अखाड़ा मे कुछ अइसनो  कवि आ लेखक पहलवान पैदा भइलें,जे ‘स्वांतः सुखाय’ खातिर आपण कलाम दउरावत रहलें आ अपना कृतिअन के प्रकाशन आर्थिक लाभ के दृष्टि से ना बलुक सेवा भावना से करत रहि गइलें आ उ ग्लोबल हो गइलें।ओइसनें हिन्दी आ भोजपुरी के सुपरिचित गीतकार कविवर ‘हीरा प्रसाद ठाकुर’ जी रहनीं। उहाँ के भोजपुरी साहित्य के मुख्यधारा से एकदमे अलग-थलग। पाटी-पउवा से कोसहन फरका। पत्र-पत्रिकन से कवनों मतलब ना। सोरहो आना स्वतंत्र। नदी के बहाव लेखा उन्मुक्त रहिके आपण लेखनी गोदनी। ‘माटी के आवाज’ नामक कविता संग्रह के भूमिका मे अपना हृदय के आवाज उहाँ के लिखले बानी, “का लिखीं….?कइसे लिखीं…?केकरा खातिर लिखीं…?केहु सुने वाला होला त निम्मन लागेला। केहु गुने वाला होला त बात बनेला। बाक़िर मन नइखे मानत। कलमों तइयार रहs तिया, कवनों चीज के देखि के, सुनि के,पढ़ि के ….. ।अधिकता तs तब आवेला जब कवनों विद्वान हमरा से कवानों सवाल पुछेलें आ उहे भइल राह मे जात रहीं। एगो शिक्षक हमरा से पुछलें, “हीरा जी! का रउवा गैंग रेप पर कवनों कविता बनवले बानी….?उहाँ के जबाव मे हम ना कहि देनी। बाकि उहाँ के सवाल हमरा दिमाग मे घर बना लेलसि। आ एगो कविता के जगह पर एगो किताब तैयार हो गइल,जवन रउवा सभे के सोझा बा….।

भोजपुरी भाषा के आगे बढ़ावे खातिर एक सई छहबीस गो मोट पातर किताब लिखि के अमर हो गइनी हीरा जी। बिहार के रोहतास जिला के नावाडीह गाँव मे पाँच जनवरी उन्नीस सई अड़तालीस ई. के पैदा भइल हीरा जी अपना माई-बाबूजी के एगारहवाँ संतान रहीं। जबकि इनका पहिले उहाँ के माई-बाबूजी के दस गो संतान कुछ होत-होत आ कुछ दू-चारि दिन जियला के बाद गुजरि गइलें। एह कुदरती करामात से  आजीज अइला के बाद उहाँ के जनम से पहिले शिव स्थान मे पूजा-पाठ-सप्ताह भइल आ पंडित रामाधार तिवारी ओही समय उहाँ के बाबूजी से कहनी, “नन्हकू राजा” घबराये के बात नइखे। हम शिव जी के सप्ताह मनवती के साथ कर रहल बानी। हीरा होइहें ‘हीरो’, आ साँचो उहाँ के कहला के ठीक तीसरा दिने हीरा जी के जनम भइल।

हीरा जी बहुते गरीब परिवार मे जनमल रहीं एह से उहाँ के लालन-पालन उचित ढंग से ना हो पावल। बाक़िर तबो भगवती के कृपा से गवें-गवें उजिआये लगनी। जब पढे के जोग भइलीं त गाँवहि के प्राथमिक इसकूल मे उहाँ के नामांकन करावल गइल। बाक़िर जब मध्य विद्यालय के बारी आइल त डेढ़गाँव मिडिल इसकूल मे उहाँ के दाखिला भइल। बड़ा धरछना से हीरा जी पैदा भइल रहीं। एह से ओह फटेहाल स्थिति मे भी उहाँ के बाबूजी पीछा ना हटलें। बाक़िर दुर्भाग्य के सुजनी अइसन जुटल कि हीरा जी जब सातवाँ क्लास मे पहुंचनी त मात्र दो रोपया परीक्षा फीस ना देला के चलते उहाँ के पढ़ाई छूट गइल।ओह घरी समय दोसर रहे। एक सई रोपया मे एक बीगहा खेत रेहन हो जात रहे। तब हीरा जी गाई के चरवाही मे भिड़ी गइनी। गरीबी के चलते पूरे-पूरी एक बरिस के पढ़ाई रुकि गइल। जब सालों छूछा रहि के, गाई चरा के, गोबर बिनि के आपण दिन काटत रहीं, ठीक ओही समय मे डॉ रामचन्द्र पाण्डेय जी के दवाखाना मे पचरुबिया (भोजपुर) के प्रधानाचार्य श्री राम नरेश शास्त्री जी अइनी आ संस्कृत  पढे खातिर डॉ रामचन्द्र पाण्डेय जी कुछ विद्यार्थिन के मांग कइनी। संजोग निम्मन भइला पर भगवान छानि फ़ारि के मदद करेलें आ ओकर हर भूत हाँके लागेला। डॉ रामचन्द्र पाण्डेय जी सबसे पहिले शास्त्री जी के ‘हीरा प्रसाद ठाकुर’ के नाम देनी आ ओही घरी उहाँ के बाबूजी के बोला के गाई चरावे गइल हीरा जी के अपना दवाखाना मे बोलवनी। शास्त्री जी, हीरा जी से कुछ सवाल कइनी आ अक्षरशः सही-सही जवाब पवनी। शास्त्री जी खुस होके  ठीक दुसरके दिन हीरा जी के अपना संस्थान मे बोला के नामांकन कइनी आ किताब-कापी किने खातिर रोपयो देनी।

बिलाई के भागे सिकहर टूटल। हीरा जी के दोबारा पढ़ाई शास्त्री जी संस्थान मे होखे लागल। कबहीं खा के, कबहिं बिना खइले, कबहिं जेबी मे भूँजा लेके, कबहिं फाटल धोती, कबहिं फाटल कुरता पेन्हले हीरा जी संस्थान मे पहुँच जाईं। बाक़िर उहाँ के पढ़ाई जारी रखनी। शास्त्री जी के संस्थान मे दाखिला के साथे हीरा जी के शिक्षा के सफर परवान चढ़े लागल। बाक़िर एक-एक पइसा के मोहताज माई-बाबूजी के एकलौता बेटा हीरा जी के ई आठ बरीस परिश्रम,अभाव,तकलीफ आ दुख-दर्द के इंतहाँ के साथे उहाँ के धैर्य, संघर्ष आ संकल्प के साक्षी बनल। खुद पढ़ाई करत गाँव मे ट्यूसन पढ़ाके दस रोपया महीना अर्जित करे लगनी।ओह घोर संकट के घरी मे ऊ दस रोपया ,दस लाख के बरोबर साबित भइल। गवें-गवें घर के गाड़ी पटरी पर आवे लागल। उहाँ के ओही संस्थान से उत्तर मध्यमा,शास्त्री आ साहित्याचार्य के डिग्री ले लेनी। तब शास्त्री जी उहाँ के अवरू पसन्न से जाने-माने लगनी।हीरा जी के पढ़ाई के समय जवन दिक्कत आ ठोकर अइली सs ओकरा के कहे मे कलाम लजा जा तिया आ लाजो के लाज लागsता…।

गाँव के कुछ लोग उहाँ के बाबूजी से कहसु, “का हो नन्हकू राजा! बेटा के संस्कृत काहे खातिर पढ़ावत तारा …? नाऊ से बाभन बने के मन बा का?

बाक़िर उहाँ के बाबूजी मुड़ी लोगन के मुसुकाट जबाब देत रहीं, “हमरा केतनों दाढ़ी-बार काटे के परो,चाहे कतनों चिट्ठी-पतरी नेवते के परो,बाक़िर कवनो तरे हीरा के पढ़ा देबे के बा…. ।“

खाना के अभाव मे कबों-कबों उहाँ के माई भगवानों देवी टोल-परोस से “भात-रोटी” माँगि के ले आवत रहीं, तब हीरा जी खा के इस्कूल जात रहीं। हीरा जी जब उत्तर मध्यमा मे पढ़त रहीं तबे उहाँ के बिआह हो गइल। उहाँ के घरनी धनेश्वरी देवी उहाँ के पढ़ावे खातिर अपना चढ़ाव पs के सभ गहना-गुरिया बेंची देली आ प्रतिज्ञा कइली, “हम अपना सवांग के पढ़ावे खातिर अपना देंहिं के रोइयाँ-रोइयाँ बेंचि देबि। बाक़िर कसहूं पढ़ा के मानबि…. ।“

आ ठीक उहे भइल। “होनहार बीरवान के होत चीकने पात”, पूत क पाँव पलने मे चिन्हा जाला कि ई कवना टोपरा के होरहा होइहें। हीरा जी के व्यक्तित्व लइकाइयेँ से उजिआइल रहल। पुरनियाँ लोग क़हत रहीं, “पंछी मे कउवा, आदमी मे नउवा, घासि मे मोथा आ खाये मे चोथा।“ – साँचहुं एह चारो के जोड़ एह धरती पर नइखे। भिखारी ठाकुर के बाद बिहार से एगो दोसर भिखारी ‘हीरा प्रसाद ठाकुर’। विद्या के प्रभाव आ चमत्कार आदमी के जाति-पाँति के भेद-भाव से मुक्त क देला, जइसे हरदी मे चूना डालते टह-टह लाल रंग आ जाला। जब उहाँ के पढ़त रहीं पचरुखिया, ओही घरी से गाँव के बाभन लोग जजमनिका कमाये के उद्देश्य से अपना बाल-बच्चन के संस्कृत सिखावे खातिर हीरा जी के अपना घरे बोलावत रहीं। अपना खेवा-खरचा आ गरीबी के चलते उहाँ सभे के घरे जात रहीं। पर-पवनी होखे के चलते उहाँ सभे के मुंहजोरी ना करत रहीं। बाक़िर मने-मन क़हत रहीं, “ई उखी मुंहे राह लगावल भइल। ई तनिकों उचित नइखे। कहल गइल बा, “गुरु गृह पढ़न गए रघुराई,अल्प काल विद्या सब पाई…!”

तब गाँव के लोगन के बोलबाजी गवें-गवें थिराये लागल। बरात मे अंगेया मांगे के बेरा बेटिहा के सवाल के जबाब देबे खातिर हीरा जी के लोग हाथी प बइठा के शौक से बराती ले जाये लगलें। बाह रे विद्या—! बेटा के बिआह ठीक होते लोग हीरा जी के सबसे पहिले बुक क लेत रहन।  अपना गाँव खातिर हीरा जी साँचहूं के हीरा हो गइनी। हीरा जी के तेज होखे के चलते कबों-कबों शास्त्री जी से डांट भी सुने के परत रहे, “हीरा ! जतना तू पढ़े मे तेज बाड़s,ओतने गेंदा खेले में। हमार माथा काहे खउफ कइले बाड़s। अहथिर  से चुपचाप होके अपना जगह पर बइठs….।“

आचार्य के परीक्षा पास कइला के बाद उहाँ के रेल डाक सेवा मे सहायक के रूप मे रंगिया (आसाम) मे नौकरी मिल गइल। नव साल ओहिजा रहि के हीरा जी किउल आ गइनी। ओइजो चार बरिस बितवनी। एकरा बाद उहाँ के भोजपुर जिला के आरा मे आ गइनी। आ एहिजे से अवकाश प्राप्त कइनी। एहि बीचे मुंह-पेट जांति के आरा के अनाइठ मिल्की मोहल्ला मे एगो छोटहन घर बनवनी  आ तब से रोहतास के ना बलुक आरा के हीरा हो गइनी।

समाज के बदलत देरी ना लागे। कवनो काम के होखे के खातिर कारण के होखल बहुते जरूरी मानल जाला। कारण के बिना कवनो काम क्के सिद्धि ना केहु के भइल बा, ना होला,ना होई। ठीक उही बात उहाँ के साथे भइल। बीतत समय के साथे नोकरियो मे हीरा जी बेमार हो गइनी। देहिं से एकदमे लाचार। चलल-फिरल एकदम मोसकिल हो गइल। नोकरी सालों छूटि गइल। नोकरी बचावे खातिर कसहूं बेटा हाथ पकड़ि के आर एस एस कार्यालय आरा ले जात रहन। हीरा जी स्थिति-परिस्थिति देखि उहाँ के घरनी सोरहों घरी लोर टपकावत रहीं। लाखों रोपेया के दवाई फेल हो चुकल रहे। तब हीरा जी ब्लड प्रेसर,हार्ट डिजिज़ आ शुगर से अतना लाचार हो गइनी कि अब उहाँ के भगवान लगे जाये के दिन गिने लगनी। ओह बिकट हालत मे ना जाने कइसे उहाँ के घरनी धनेश्वरी देवी के हिरदया मे द्रौपती लेखा लहर आइल, कइसे प्रेरित भइनी,के उनका के बतावल कि अपने आप एक दिन होत-पराते कहे लगली, “हमनिन के पाँच पूरनवासी के भलुनी धाम (रोहतास) मे कथा कहवाई जा। इहाँ के एकदमे ठीक हो जाइबि…..।“

तब माई भुलनी किहाँ जाये खातिर बाल बच्चा समेत सभ लोग हाफन धुने लागल। पूरनवासी आइल। हीरा जी के बड़ बेटा अनिल जी आ घरनी धनेश्वरी देवी उहाँ के टाँगि-टूँगी  के भुलनी धाम ले गइलें। पूरा सरधा से कथा भइल। दवाई से कवनो फइदा ना रहे एह से ऊ गवें-गवें घुटत गइल। माई के किरपा से हीरा जी उजिआये लगनी। पाँचवाँ पुरनमासी के कथा भइला के बाद उहाँ के घरनी देवल के चारों ओर परिक्रमा कइला के बाद भुलनी माई के चरण पकड़ि लेलीं आ साफ-साफ कहलीं, “हमार सवांग बहुते दुख सहs तारें। ले जाये के होखे त इनका के ले जाईं ना त सोरहो आना चंगा कs दीं। बड़ा मझधार मे पड़ल बानी। रउरा छोड़ि केहु अलम नइखे। राउर महिमा अपरंपार बा….।“

ओह समय हीरा जी के माई दुआरी प खड़ा होके घरनी के बतकही सुनत रहीं। हीरा जी के रोंआ-रोंआ कांपि गइल। तब उहाँ के कहनी, “चलs लोग बाहर आ कम्बल बिछावs लोग। हम गीत बनाइबि, सुनाइबि, तबे खाइल जाई …!”

आ साँचो ठीक बीस मिनट मे एगो गीत माई भलुनी भवानी के प्रति बनि गइल। जब अपना सुरीला कंठ से हीरा जी माई के गीत अलपनी,ओइजा सोना झरे लागल। हलफ़ा कबरि गइल। परिवार के साथे अगल-बगल के लोग उहाँ के गीत सुनि के झूमि उठलें। उहे गीत जे बने के शुरू भइल कि प्रबंध काब्य,महाकाब्य,चम्पू काव्य, नाटक, गीत, उपन्यास, कहानी,गीता आ वेद तक उहाँ के भोजपुरी मे लिखी देनी।

कवि रसूल हमजांतोव अपना उपन्यास ‘मेरा दगिस्तान’ मे लिखले बानी, “एक वृक्ष राह देखता है कि कब उस पर पक्षी घोंसला बनाएगा,एक घर प्रतीक्षा करता है कि कब दरवाजे पर दस्तक होगी और गद्य लगातार इन्तजार करता है कि कवि कब उसके पास आयेगा …।“ – अपना कठोर रंग रूप के मोलायम बनावे के इच्छा से गद्य हरदम कवि के खोज करेला। गद्य मे कवित्त के गुण आ गइला प सोना मे सोहागा लेखा ओकर सार्थकता पूरा हो जाला। संस्कृत के एगो वाक्य हs, “गद्यम कविनां निकषं वदन्ति।“ विद्वनन के मति-सम्मति से गद्ये कवि लोग के असली कसौटी हs। पद्य लिखे खातिर एगो अनुशासन के दायरा मे घेराइल रहे के परेला। टूक आ छन्द के रस्सी मे बन्हाइल रहल के चलते ऊ अपना मन के बात पसन से ना कहि पावेंलें। बाकि गद्य के मैदान मे अइला के बाद उनका एगो खुला आसमान आ फैलगर जमीन मिलि जाला। ओसहिं हीरा जी भोजपुरी साहित्य के मैदान मे आपण पहिला गीत संग्रह ‘रसमंजरी’ के साथे उन्नीस सौ चउरानबे में लांच कइनी। नव गो काव्य संग्रहन के प्रकाशित भइला के बाद उहाँ के गद्य के मैदान मे उतरनी। पहिले चारि गो नाटक के किताब ‘उभ-चुभ’, ‘कोरा-कागज’, ‘दुआर-दुआरे’ आ ‘बेटा बेचवा’ प्रकाशित भइल। ओकरा बादि पाँच गो उपन्यास ‘लाल चुनरी’, ‘खूबसूरत’, ‘चकाचक’, ‘बात-बात मे’, आ ‘दुनिया तोहे प्रणाम’ प्रकाशित भइल। फेरु उहाँ के कविता ओरी डेग बढ़वनी। उहाँ के आखिरी एह सई छब्बीसवाँ  कविता के किताब ‘लव-कुश’ जनवरी दू हजार चउदह मे प्रकाशित भइल रहे। हीरा जी एह बात के पसन से गुनले रहीं कि भोजपुरी मे बच्चन खातिर बहुत कम लिखाइल बा। एह से उहाँ के बाल-साहित्य ढेर बाल-साहित्य ही लिखनी। उहाँ के गीतन मे बुद्धि आ राग के मणिकांचन संजोग बा। अनुभूति के अनुसार टटका  अर्थवान बिम्ब, सटीक प्रतीक आ नया छंद उहाँ के गीतन के विशेषता बा। फिलवक्त के चिंता,प्रेम,प्रकृति  आ लोक जीवन के प्रति गहिराह आस्था से उहाँ के गीत लबरेज बडुवे….।

भारतीय रेल डाक सेवा के एगो छोटहन कर्मचारी भइला के बादोआपण सारा कमाई भोजपुरी के किताब छपवावे मे फूंकि देनी। उहाँ के परिवार के लोग किताब छपववला खातिर कतनों अनसासु,कुनमुनास भा टुनटान करसु, हीरा जी ओह लोग के थोरियो भ ना सुनत रहीं,सफा निझाट देत रहीं, “तोहरा लोग के रोपया से किताब नइखी छपवावत कि तोहनी लोग के आँखि लागsता। हमारा कमाई के रोपया लागsता आ तोहनी लोग के पेट बथsता।  हई देखा एहनिन के अनेति। गाई बियात रहे आ बैल के कादो फाटत रहे। अपना कमाए-खाये के उपाय सोचs लोग। पोसि-पालि के तोहनी लोग के जवान कs देले बानी। भेंड़ि का जानि पुवरा के मरम। दारू-ताड़ी नइखी पियत। किताब, किताब हs। उहे हमरा के जिअवलसि आ आगे अमर राखी….।“ हीरा जि एके सांस मे सभ जाना के तड़िया देत रहीं।

हीरा जी अपना आखिरी किताब ‘लव-कुश’ के समर्पण मे लिखले बानी, “हमरा राह नइखे खोजे के। होत पराते घर से निकल जाइला आ राति भइला पs आइला। कहीं प्रोग्राम देके,कहीं अनुदान मे किताब देके,लेखक-कवि लोग के इहाँ बइठि के अपना मन के शांत करीला।” आ साँचो अपना रचना के प्लाट के फिराक मे उहाँ के दिन भर शहर मे फेरी लगावतरहीं आ राति मे लिखत रहीं। ओइसने कवनो करमजरू दिन होई कि उहाँ से हमरा भेंट ना होत होई ना तs अक्सर मुलाक़ात होइए जात रहे। बाक़िर उहाँ से आखिरी पसनगर सबक हमरा अपना नोकरी से अवकाश प्राप्त कइला के बाद अपना सम्मान सह विदाई समारोह एकतीस अक्टूबर दू हजार तेरह के शोभी डुमरा स्कूल प भइल रहे। मंच प बइठल हीरा जी के देखि के हमरा से ना ठठाइल। पूछि देनी, “रउवा कइसे….?” एह से कि हम उहाँ के अपना बिदाइ समारोह मे आवे के नेवतले ना रहीं। ई सभ काम हमरा स्कूल के विज्ञान शिक्षक श्रीराम प्रसाद जी कइलें रहीं। जबाब मे हीरा जी खुलि गइनी, “जवना समारोह मे प्रख्यात कथाकार मिथिलेश्वर जी,वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय के भोजपुरी आ हिन्दी के हेड डॉ अयोध्या प्रसाद उपाध्याय, जैन कालेज के हिन्दी के हेड डॉ रणविजय कुमार जी पधारले बानी,ओइजा हम कइसे पिछुआईं….? भुला के काहे बतिआवs तानी। नाऊ,बाभन आ घोड़ा के घुमले के मोल हs….।“

बड़ा भींजा के जूता मरले रहीं हीरा जी। हम लजा गइनी। बाक़िर हमरा अजुवों इयाद बा, हमरा विदाई समारोह के विषय प्रवर्तन उहें के मुंहे भइल रहे आ आपण पांचि गो नया किताब ओह मोका प हमरा के देले रहीं।

हीरा जी के किताबन के चरचा करे वाला, ओह तमाम समीक्षक, लेखक,कवि लोग के, उहाँ के पुरस्कृत करे वाला संस्थानन के, खास कs के डॉ अर्जुन तिवारी जी के हम तहे दिल से आभारी बानी,जे विश्वविद्यालय प्रकाशन, वाराणसी से प्रकाशित महाग्रंथ मे ‘भोजपुरी साहित्य के इतिहास’ मे हीरा प्रसाद ठाकुर के ‘कुँवर सिंह’ प्रबंध काव्यके चरचा कइले बानी।

आखिर मे नियति से हीरा ठाकुर जी के बढ़न्ति ना देखल गइल आ तीन जनवरी दू हजार पनरह के साँझी के बेला मे गधबेर  होते हीरा जी के अपना निठोर पंजा दबोचि के पंचतत्व  मे विलीन कs देलसि। घुमत-फिरत एह दुनिया से उहाँ के चलि गइनी,लागsता  कि भोजपुरी साहित्य खातिर मौलश्री के सुगंध चलि गइल। एगो व्यक्तित्व कवनो दूर क्षितिज के लालिमा मे विलीन हो गइल।

भारतीय रेल डाक से अवकाश पवला के बाद कड़कड़ात घाम, झमाइल बरखा आ हाड़ कंपावत जाड़ से बेपरवाह होके स्कूल-कालेजन मे गांवे-गांवे जा के अपना गीतन से भोजपुरी के अलख जगावत रहीं  आ छात्र-छात्रा  के प्रोत्साहित करत रहीं। कतहिं ना जाईं त सांझि के बेरा आरा रेलवे स्टेशन के एक नंबर प्लेटफार्म पs आपन गीत सुना के जातरिन के मनोरंजन बिना पइसा के करत रहीं। उहाँ के गीतन के दू-चार पंक्ति रउवा अवलोकन खातिर एइजा लिखल हमरा जरूरी बुझता। देश प्रेम के अलख जगावत उहाँ के गावत रहीं-

“आवs डेगे-डेग चलीं,आग-पाछ ना करीं।

मति भुलाईं, अपना देशवा के फिर से जगाईं…।“

झूठ आ लूट के बिना पूंजीवाद चलि नइखे सकत …! आ जेवना लोकतन्त्र के आधार पूंजीवाद होई ऊ लोकतन्त्र झूठ आ लूट से कबों मुक्त नइखे हो सकत। हीरा जी एकरो प कलम दउरवले बानी-

“लूटs-लूटs भइया, आइल घोटाला के बहार।

लूटs-लूटs भइया……!

देशवा के लूट भइया, प्रांतवा के लूट हो

लूट लिह गंउवा आ जवार।

लूटs-लूटs भइया…!

कोटवा मे लूटs भइया, वोटवा मे लूटs हो।

लूटि लिह दुखियन के बहार।

लूटs-लूटs भइया…..!”

उहाँ के गीत, कविता, कहानी, उपन्यास,महाकाव्य के बारे में जवन कुछ कहल जाऊ ऊ, ऊ सभ ऊँट के मुँह मे जीरा कहाई। उहाँ के किताब देश-विदेश के अंदाजन तीन सई पुस्तकालयन मे सुरक्षित रखाइल बा। देश भर के विभिन्न भोजपुरी संस्थानन से करीब बीसहन पुरस्कारन से उहाँ के सम्मानित कइल गइल बानी। हीरा जी ई साबित कs देले बानी किउड़ान खातिर पांखि के कवनो जरूरत नइखे, सिर्फ बरियार हौसला होखे  तs शिखर भेंटाए मे देरी ना लागे। वास्तव मे ई दास्तान सिर्फ हीरा जी के कामयाबी के कहानी नइखे,ई जिनिगी के कठिन-कठोर इम्तहान से गुजरी के एगो लेखक कवि के भोजपुरी साहित्य खातिर बिनल सपना के साकार होखे के दस्तावेज़ बा, जवन उहाँ के असाधारण संघर्ष से तनिको बिखरे ना देनी।

हीरा जी के व्यक्तित्व आ कृतित्व के एह आलेख के लिखवावे मे हमार सहयोग करे वाला उहाँ के छोटका बेटा कलाकार आ शिक्षक राजकुमार आ अनिल कुमार के खांचिन बधाई देत आ पाठक लोग के बेबाक प्रतिक्रिया के बाट निहारत एह आलेख के इतिश्री करs तानी…..।

हीरा जी वीर रस के रहीं, श्रंगार रस के रहीं,करुण रस के रहीं,भक्ति रस के रहीं आ कि कवनो रस के ना रहीं, ई एगो यक्ष प्रश्न बनि के विद्वान लोग के सोझा खाड़ बा…!

  • कृष्ण कुमार

महाबीर स्थान के निकट

करमन टोला,आरा -802301

(बिहार)

 

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