नदी आ बेटी

नदी आ बेटी के सिरजन भगवान धरती के सुनरी सरूप बदे बनवलन। धरती पर मनई के बसे आ जीये बदे ई दुनो जन  के अपना जीवन नेछावर करेके भेजलन। बेटी धरती पर मनई बसईली त नदी ओही मनई के जीवन दान दिहली ।खेती आ पानी के जुगाड़ के जिम्मा ई लिहली। ऐसही धरती फलत-फूलत आज एतना बड़ आपन संसार बना लिहली। खूब खूश होखे ई दुनो जन आपन एतना सुंदर सिरजन देख के।

आज नदी बेकल बारी। उनका के सब लोग गंदा कर देत बा। उ आपन दुख केकरा से कहैं। नदी आ बेटी के हाल एके जईसन बा। बेटी के त खाली पुरूषवादी मानसिकता से डर बा बाकिर नदी के गंदा करे में त पूरा गाँव, शहर ,विश्व के स्त्री,पुरुष,बच्चा,बूढ़ा,हरवर्ग शामिल बा।

कल-कल छल-छल बहेवाली नदियन में केतना त बिला गईली।कुछ मरे के कगार पर बारी।आ कुछ एतना गंदा हो गईल बारी कि अब उनकर कल-कल छल-छल बहावे रूक गईल बा।

जइसे कहल गईल बा कि” बेटी ना त बेटा का” ओइसही “नदी ना त जिनगी का” । आज एकरा के जाने के आ बुझे के जरूरत बा। काहे कि जे देवै जानेला उ लेवहूं जानी। बस आपन बारी के इंतजार करीं सभे।

जलसंकट से दुनिया आज जूझ रहल बा आ बुझियो रहल बा । कवन कारण ई संकट जनमल बा, आ कइसे एकरा के रोकल जा सकेला।बाकिर सवारथ के आगे लोगन के सोच भी दही नियन जम गईल बा।

भगीरथ के कारण शिव जी के माथा के शोभा बने के नदी के अवसर मिलल। ‘दुनिया देखे’ आ ‘दुनिया बनल रहे’ एही खातिर  शिव जी इनका के धरती पर भेज दिहनी।

उहे नदी आज कलपत बारी-हम बंजर जमीन के हरियर कइनी। लोग के शुद्ध हवा मिले एही से गाछ बिरिछ भी हमर साथ दिहलें।

बाकिर बड़ दुःख से कहतबानी कि हमरा के त धीरे धीरे खतमे करताऽ लोग । गाछ-बिरिछ के भी नइखे छोड़त। बड़का महल, बड़ बड़ रस्ता आ पूल के नीचे हरियरी बनल रहे, इ भावे दब गईल। हमहुं त कय जगह से टूट टाट गईल बानी। कहीं लोग बाँध बना के हमार रस्ता रोकताऽ त कहीं अऊर कवनो जुगत लाग जात बा। हमार रस्तवे बंद कर दिहलें ई स्वार्थी मनई।

हम आ गाछ-बिरिछ आज कलपत बानी। का करीं आ केकरा से कहीं । के सुनी हमार पुकार । कबो-कबो लागता कि धरती पर बिटियन के दशा हमनीये नियन बा। ओकनियो के लोग एतना डरवले बा कि ऊहो कलपत बाड़ी स। आज बिटिया भी सुरक्षित नइखी। उनहूं के इज्जत पर आज साँप आपन फन फइलइले बारन स।  एगो त बेटा के लोभ में लोग गरभे में मारत रहन अब ओकरो से मन ना भरल त बिना उमिर के आ रिश्ता के खयाल कइले बिना रउंदत बा लोग।

दहेज के लोभ में जारत बारन। हबस खातिर उमर आ नाता कुछ ना बुझाता।जइसे अपना घर ,सड़क,आ सुख सुविधा के लोभ में हमनी के काटत रोकत बारन।

आज ई संसार के हाल बड़ खराब भ गईल बा। कोई केकरो इज्जत नइखे करत। ना नदी आज महतारी बारी आ ना बेटी आज इज्जत  बारी।

ई कवन समाज बनऽता जकि देता उहे मराता।जागऽ! जागऽ! लोग। नाहीं त पछिताये के पड़ी। नारी आ पानी बिनु धरतीये सुन हो जाई तब बिना सजा दिहले लोग तड़प तड़प के मरीहें।

अच्छा! त ई नदी के बिनती बुझीं भा चेतावनी, नाहीं त फेर आपन विनाश बदे अपन खेल रचीं आ फेर देखीं नयका खेल!

 

  • डॉ रजनी रंजन

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