भउजी

हमरा पूरा जवार में एके गो भउजी रहली । बिजे भउजी। गाँव में भउजी , चाची, दादी ई सबलोगन के उनकरा ‘भतार’ के नाम से ही बोलावल जाला। आ सब नाम के साथे ‘वा’ आ चाहे ‘ईया’ लगा के बोलला से अपना निअन जनावेलन लोग।
भईया हमरा सब गोतिया  के बड़ बेटा हउअन।
गाँव में बड़ लोग उनका के बिजइया आ छोट लोग बिजे भईया आ बिजे चाचा कहेलन।
बिजे भईया सगरी जवार के छोट लइकन के देखनहार रहलन। उहे सभ लइकन के पढाई लिखाई आ चाहे अउरो कवनो बात होय त बड़ बुजुर्गन के सलाह देस। बड़ लोग उनकरे बात सुनैं चाहे उ सही बोलैं भा गलत। एहीसे ऊ जवार भर के लइकन के दुसमन रहलन।
भईया हमनी के बड़ी हरकावत रहत रहलन।सिनेमा का, कुछुओ देखे के केकरो मजाल हो सकेला कि उनका रहला पर टीबी पर कोई अखियो फेर सके। खाली रामायण देखे खातिर उ हमनी के बोलावत रहलन। रामायण के घड़ी बड़की माई हाथ जोड़ के माथ पर अचरा लेके केतना बार राम जी के गोहरावस आ गाँव भर के भलाई खातिर निहोरा करस। तनी सा हॅसला पर बड़की माई ओकरा के बेसरम बना देत रहली।
अइसहीं बिजे भइया भी मानत रहलन। कहस- खूंटा खुलला से कोइयो बहक जाला एही से बाँध के रखे के चाहीं । एही  से अपना पुरा मोहल्ला के लइका-लइकिन के उपर आपन नजर रखस जे बड़ लोग पर उनकर मान बनल रहे। ई सब उनकरा पर बड़की माई  के असर रहे । बड़कियो माई अइसहीं ठेठ रहली। अपना बड़ भइला के रोब गोतिनी लोग पर भी चलावत रहनी। कवनो गोतिनी आपन भा भयाद में उनका आगे मुँह ना खोल पावैं। बाकिर पीछे में उहो लोग बड़की माई के रोब के दुःख उनका रामायण देखे के समय में  बोल बतिया के हल्का हो जात रहे लोग।एगो टीबी पर रामायण होय आ एगो चुल्हा घर में ।
बिजे भउजी के  त एको ना चलत रहे जब बड़की माई उनका आगे ठार हो जात रहली।
भउजी  जवानी में बड़ सुंदर रहली । अपना के अपने मीनाकुमारी  कहस। लंबा घुघटा कइले सब काम करीहें। गोतिया लोग पतोहिया के चालचलन के गुन गावते ना थकत रहे लोग।
लेकिन भउजी के असली गुन त उनकर छिनारिन ननदीया जानत रहली। चौबीसो घंटा भउजी के साथे रहत रहली।अपना घर के कामकाज से बचे खातिर  ओहिजे डेरा डाल  लेत रही। भोर होते ननदरानी के  मन भउजी के घरे जा के ही चैन पावत रहे। चारो भाई के  अंगना आ चुल्हा अलग रहे बाकिर पेरेम के संगे लड़ाईयो कभो कभो जीभ दबा के होइये जात रहे।
भउजी के भोर होत रहे एक मोटरी लेवा-गुदड़ी के धोये से। ए सब काम में उनकर साथ देत रहली उनकर उहे  ननद। भउजी आपन मनवा के दुःख कपड़ा के हे-हो के साथ ही कहे शुरू करीहें- जानतानी बबुनी! तनी अखिया गहीर लाग गइल ।आ एतने में सोनुआ हग देहलस आ मोनिया पेशाब कके हमरो के तर क देलस।जब ठंडा लागल त नींद खुलल। त देखनी कि इहाॅ त सब बिछौना लभेराइल रहे। का करतीं। भोरे धोअला से सुखीओ जाई आ अम्मा के दुगो दोहा सुने से भी बच जाइब।एने कलवा चलइला से  ननदिया के  हथवो दुखात होइ ई सब त उनकर सोच के बाहर के बात हो जात रहे।
भउजी के बात तबले खतम ना होत रहे जबले उनकर सब गुदड़ी धोआ के टंगा ना जात रहे। जेतना उ मन के साफ रहली ओतने तन के गंदा रहली। उनकर उ ननद बड़ कोशिश करैं कि भउजी नहा लेस लेकिन बोलते समुझावते तीन दिन हो जात रहे। चौथा दिन जब भउजी नहा के एसनो के ऊपर पाउडर लगा लेत रहली त उनकर चुना जइसन छापा दिहल मुँह पर बड़का बिन्दी आ मांगभर अंतिम छोर तक सेनुर के लाली में तेल से दो फाड़ फाड़ल मांग के दूरी मिट जात रहे।सजधज के जब उ अंगना में आके ठार होइहें त ओकरा बाद उ मुसकात गावे के सुरू करीहें- ‘ननदीया छिनार घर लुटन अइलीऽऽऽऽ , बजजवा इयार संगवा लेले अइली।’फिर बड़ी परेम से  कहीहें – ए बबुनी! बइठीं ना चाय बनावतानी।
चाय बना के बड़की अम्मा के लगे लेके जब भउजी जात रहली त पाउडर के गमक से बड़की अम्मा तनी मोम हो जात रहली। आज नहा लेलु का ? सुनितवा बीया का। ओही नहवइले होई!  भउजी तनी सकुचात बोलली- ना अम्मा!  हम त नहाये जाते रहनी तब ले बबुनी आ गईली । हमरा के कलवा के  नजदीक जात देखली त आके कलवा चला देली त हमहु नहा लेनी।
बड़की अम्मा बीचे में भउजी के बतिया पर छूरा चलइली- ऊ चला देलस आ तु नहाइयो लेलु।ननद जेठ होखेले।ओकरा से काम करावतारू।तु त जवार में हमार नाके कटा देबु।  भउजी तनी डेराइले बोलिहें – ए अम्मा!  हम सांचे कहतानी।उ खुदे जिद करे लगली त हम कुछ बोल ना पइनी।आ छोड़ीं ई सब । ई हमार ननद-भऊजाई के बात बा । हमनी के  अपने फरिया लेब।
एने भउजी के बडकी अम्मा से जब ले कहा सुनी होत रहे तबले ननदरानी चाय पीके आटा सान के रख देत रहली। भउजी भीतर आवते ओही रस घोलत बोले के शुरू करीहें- ए बबूनी! केतना पाप चढ़ावतानी। ओने अम्मा कहतानी कि हम काहे रऊरा से काम करावतानी। एतना कहते -कहते पीठिया पर जोर से थाप दे देत रहली आ फिर  ओही उनकर पिरिए गीत  शुरू हो जात रहे – ‘ननदीया छिनार घर लुटन अइलीऽऽऽऽ बजजवा इयार संगवा लेले अइली’। फेर जोर से ठहाका लागत रहे त बाहर से बड़की अम्मा चिचिअइहें- कारे ! तहनी के  दिमाग  ठीक  बा नु !

भईया आ जात रहलन तब सन्नाटा हो जात रहे। भउजी कहीहें – का जी! बहिन से हम का बतिआवतानी जाने खातिर  भीतरइनी ह कि हमरा पउडरवा के  गमकवा खींच के ले आइल ह। भइया मुसकुराके कहीहें – पगलाइल बारू का। आउर कौनो बात नइखे तहरा लगे।
उत्तर सुन के भउजी गदगद हो जात रहली।आ उनकर एगो आउर नया गीत भइया खातिर-  ‘हाय रे जोगी ! हम तो लुट गये तेरे प्यार में ‘। ई मेहरिया कहीयो ना सुधरी- कहते कहते भइया जाके बड़की अम्मा  लगे बइठ जात रहलन।
भउजी के इहे गुन जवार में  उनका के पहिलका इस्थान दिअवले रहे। चाहे सुख होय चाहे दुःख  भउजी कबो दुख परकट ना करत रहली या फिर  दुःखी शब्द उनका शब्दकोश रहबे ना करे। ई त भगवाने जानस।
गाँव छूटल त भउजी के  उ रस कबो ना मिलल। आपनो भउजाई आ गइली। छोटका चचा के भी दू गो पतोह आइल । लेकिन  भउजी जइसन पेरेम ना देखे के मिलल।
करीब बीस साल बाद भउजी से मिले के पटना  में  एगो बियाह में मौका  मिलल । जेकरा घर में  भउजी रहली उ त उनका गंदगी के खुबे रसायन सुनवलन। जब  बियाह में  भउजी के  देखनी त हम त हकबक हो गइनी। उनकर सब दांत झर गइल रहे। केश त एगो पतला तार निअन बाचल रहे। पाउडर आज भी ओइसहीं लगइले रहली जइसे पहीले लगावत रहली।
हमनी के  देखते कहे लगली- का हो छिनार! अब फुरसत  मिलल ह। राजा जी ना छोड़त रहनी ह का। आइल बानी कि ना। अभी हम बुढाइल नइखीं। आ गावे लगली- एक ऑख मारूं तो परदा हट जाए  ऽऽऽऽऽ।
‘बस-बस बस रउरा अब एसे जादा खुश मत होईं’ -हम कहनी। उ हाथ पकड़  लेली आ कहे लगली- सांचो हम रउरा लोग के बड़ी इयाद करीला।जब से रउरा लोग गाँव छोड़ दिहनी गाँव में अब उ रस नइखे।हमार सब लइका सब रउरा लोग बड़ करा देहनी।हमरा पते ना लागल कब उ सब बड़ भ गइलन। फेर ओही- ननदीया छिनार………… आपन प्रिय गीत गावे लगली।
हम त हमेशा मोनिया से रउरा लोग के किस्सा बतीआइला । मोनिया के नाम लेत का जाने कवना कोना से मोनिया उगरिन हो गइल ।हॅ बुआ! ममीया के खाइल पचबे ना करी जब ले उ रउरा लोग के बात ना कहेली।
ए फुआ! आज नु खुबे नाचल जाई। बरियात आइ त नाच के गरदा उड़ा दिहल जाई। ईहो लोग बुझी कि पाटी कमजोर नइखे।ओकरा के चुप करावत हम कहनी-  भाक्! चुप । बिजे भइया नइखन आइल का।
आइल बारन। पापा का करीहें। उनका के कह देले बानी कि रउरा रोकब मत। ई हमनी के घर के  अंतिम बियाह बा। एह से जे मरजी बा करे दीं। एतना धमाका वाला उत्तर सुन के त हम चकराये लगनी कि जेकरा डर से जवार में  कोई  सिनेमा के गीत ना गा सकत रहे ओकरे बेटी बरियात में  नाची।
बरियात अइला पर मोनिया,सोनिया आ सोनुआ के साथे खुब नचलस। भउजिओ  एनही ओट में  खड़ा हो के अपना ताकत भर हमरा के पकड़ के नचली । बरियतीयन के गारियो खुब गइली- काहे बरियतीया भरूआ भागी गयो बइठो-बइठो तोरा माई के सारी दियाई जरा बइठो- बइठो।
आज भउजी के ओइसहीं देख के मन खुब खुश भइल।
बिजे भइया के ऑख के सामने उनकर बेटी लोग भर जवार कै बीच में डीजे  पर नाच करत रहे आ ऊ मुसकुरात रहलन। इ देख के मने में उनका के गारीये देत रहनी कि अचानक उनकर नजर हमरा पर पड़ल ।उ बुझ गइलन। हमरा लगे आके कहे लगलन- तोहनी सब हमार जेतना मान रखलु सन ओतना त हमार बालबचवा भी हमार ना सुनेला। का करीं। समय बदल गइल बा।चुपचाप  देखे के पड़ेला।भइया के बात सुन के मन मे तसल्ली भइल ।
सब बदल गइल । लेकिन  भउजी ओइसही बारी।  दु दिन के  गंध के बाद तीसरका दिन नहइला पर के गमकउवा पउडरवा के आजो खुब गमकल।बड़ी खुशी भइल।भउजी के परेमो ओइसहीं आजो मीठ लागल। उनकर सब कमी उनकर मीठ बोली सबका के तर क देत रहे।आवत घड़ी हाथ ध के कहे लगली- ए बबुनी! बड़ी बढ़िया लागल ह । अब अगर जीयब त फेर कबहूं मेल होइबे करी। कहते-कहते उनकर आँख डबक गईल। हमरो मन करूआ गईल।
बाकिर भउजी फेर से आपन गमक मन में  भर देहली।।

 

  • डॉ रजनी रंजन

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