भोजपुरी में बाल साहित्य

प्राचीन काल में भोजपुरी बिहार प्रांत के भोजपुर, आरा ,बलिया, छपरा, सीवान, गोपालगंज आ यूपी के कुशीनगर, देवरिया गोरखपुर, महराज गंज ,सिद्धार्थ नगर, मऊ , आजमगढ़, गाजीपुर आ बनारस के भाषा रहे बाकिर अब्ब आपन भोजपुरी एगो अंतर्राष्ट्रीय भाषा हो गइल बाटे । भोजपुरी खाली भारत के बिहारे यूपी  के भाषा ना रहिके नेपाल , मॉरीशस, फीजी, गुआना, सूरीनाम जइसन देशन में भी बोलचाल के भाषा के रूप में फइल गइल बा । भोजपुरी भाषा में सभ तरह के साहित्य रचल जा रहल बा बाकिर बाल साहित्य के नाम पर अबले कवनो अइसन काम नइखे भइल जवन गिनावे जोग होखे ।

छोट लइकन के धियान में ध के लिखल शिक्षाप्रद साहित्य के बाल साहित्य कहल जाला । बाल कविता, बाल गीत, बाल कथा-कहानी सभ एहिमें समाइल बा ।

बाल साहित्य लिखला के परम्परा बहुते पुरान बा । इ त सभे जानेला कि लइकन के कथा कहानी भा गीत सुनल बहुते नीक लागेला ओहिसे ’महान विद्वान नारायन पंडित’एगो राजा के लइकन के ग्यान देवे के खातिर चिरई – चुरुंग आ जनावरन के माध्यम बनाके कहानी लिखल शुरू कइले , जवना से ’ष्पंचतंत्रष्’ जइसन ग्रंथ के जनम भइल । दादी – नानी आ परिअन के कहानी त कम-बेस सभे सुनले होई । लइकन खातिर लिखल कहानी खाली कहानिये ना होला बाकिर पूरा ग्यान के भंडार होला । सयान लोग के कहानी अउरि लइकन के कथा कहानी में सबसे खास अंतर इ होला कि लइकन के कहानी में मनरंजन के सथवे कहानी के माध्यम से शिक्षा देहला के पुरहर कोशिश होला ।

बाल साहित्य के संरक्षण देवे खातिर सन् उनइस सौ संतावन में श्री के. शंकर पिल्लई जी के सहयोग से ’ष्चिल्ड्रेन बुक ट्रस्टष्’ के स्थापना भइल । एह संस्था के उद्देश्य रहे पाँच से सोरह बरिस के लइकन खातिर नीमन बाल साहित्य उपलब्ध करावल । हिंदी अउरि दोसरा भषन खातिर त इ संस्था में बहुते काम भइल बाकिर  भोजपुरी भाषा खातिर एकर काम शूना के बराबर रहल । ’नेशनल बुक ट्रस्ट’ जइसन संस्था भी बाल साहित्य खातिर बहुते काम कइलस बाकिर भोजपुरी में गिनावे जोग कवनो काम ना भइल । अगर देखल जाव त बाल साहित्य खातिर भोजपुरी पत्रिका ’ष्पातीष्’के काम कुछ रेघरियावे जोग डेग रहे । ’पाती’ भोजपुरी में बाल साहित्य के विशेषांक निकाल के बाल साहित्य के एक जगे सहेज के परोसबे ना कइलस बलुक अउर पत्रिकन में एह तरह के शुरुआत करे खातिर प्रेरित कइलस ।

 

हिंदी आ दोसरा भाषा में त बड़-बड़ बिदवान लोग बाल साहित्य पर काम कइल बाकिर  भोजपुरी में कुछ छिटपुट कार छोड़िके कवनो गिनावे जोग काम ना भइल । बलिया जिला के कुछ कवि लोग लइकन खातिर कुछ-काछ लिखल बाकिर उ लइकन तकले ना पहुच पवलस । तब्बो उँहालोग आपन प्रयास लगातारे कर तानि । बलिया के श्री अनंत श्रीवास्तव श्रामभरोसेश् अउरि डॉ. शोभनाथ लाल जी के बाल कविता आ बालगीत अउरि बाल कहानीकार भगवती प्रसाद द्विवेदी जी के बाल कहानी धीरे धीरे ही सही बाकिर पाठकन के लग्गे पहुंचल शुरु हो गइल बा ।

’कविता’ पत्रिका के अक्टूबर 2008 के  बाल कविता विशेषांक में कइ गो बाल कविता आ गीत  छपल । ’कथा दादी-नानी के’ जवना के संग्रह डॉ.  परमेश्वर दूबे श् शाहाबादी आ डॉ. रसिक बिहारी ओझा श् निर्भीक श् कइले रहले, में भी लोक कथा के साथे -साथे दू चार गो बाल कथा भी छपल रहे । नवका कविलोगन में श्री जे. पी द्विवेदी जी आ सेवरही, कुशीनगर के लाल केशव मोहन पांडेय जी,  जे आजकल दिल्ली रहतारे, बाल साहित्य खातिर टिटिहरी प्रयास क रहल बाड़े । केशव मोहन पांडेय जी के आउर जे पी द्विवेदी जी के  कुछ कविता देखे जोग बा ।

 

1-

एगो रहे गुद्दी

गाँठ भर बुद्धि

रहे मतवाला

घाम चाहे पाला

घूमे दिन रात ऊ

खाये दूध-भात ऊ

देखल शिकारी

डीबा लाग के निहारी

धइलस दबोच के

कथा बनल रोज के

गइल नून-तेल-लकड़ी

गइल साग-भात ककड़ी

ना घरवा-दुआर

ना ओढ़ना-बिछवाना

चिरई के जान जाव

लइका खेलवना।

 

2-

दउरा-दउरी ढेर बा

कवना बात के फेर बा

फिकिर बान्हें गाँती में

माई-बाप के थाती में

बबुआ घूमे बहरा

बबुनी पर पहरा

राजा बेटा हीरो

काम करेला जीरो

सुगीया बेटी रानी

भर के देले पानी।

 

3-

हमार नन्हकी

——-

 

बेर बेर हँसावेले , बेर बेर रोवावेले

हमार नन्हकी ॥

हमके घूमरी घुमावेले , हमार नन्हकी ॥

खात के बेरा हाथ थरिया मे मारे

तोतली बोलिया से बाबूजी पुकारे

भर घर के भर दिन ,मन हरसावेले

हमार नन्हकी ॥ हमके घूमरी—–

बइठल देखे त , खूँट धई खींचेले

अचके कोंहाले, आँखि दूनों मीचेले

पीट पीट थपरी , सभके बोलावेले

हमार नन्हकी ॥ हमके घूमरी—

अचके मे रीझेले अचके मे खीझेले

कबों कंचा खेले खाति हमरा भींचेले

कबों आगे कबों पीछे , सभे धउरावेले

हमार नन्हकी ॥ हमके घूमरी—

संसार बहुते तेजी से बदल रहल बा आ लइको बदल रहल बाड़े। लइका कवनो भी समाज के थाती होले । एहसे समाज के नीक- नीम्मन बनावे खातिर लइकन के नीक बनावे के पड़ी । अपना भोजपुरिया समाज के लइकन खातिर अइसन कविता , गीत आ कहानी सिरजे के पड़ी जवन लइकन में नीक संस्कार भर सके आ जिनगी में नीक काम करे खातिर प्रेरित कर सके ।

————

प्रेम नाथ मिश्र

बख्शीपुर

गोरखपुर

Related posts

Leave a Comment