कुकर्मनासा

आपन गाँव आउर आपन माटी के सोन्ह महक सभके भाव- विभोर क देवेले | पीढ़ी दर पीढ़ी के संजोवल इयादन के मंजर अपना के ओहमे रससिक्त करे लागेलन | आउर अगर अपना गाँव के नीयरे कवनो नैसर्गिक बनस्थली होखे , त उ मनई  के मन मोर लेखा नाचहूँ लागेला  | टकटकी बान्ह के निहारल आउर निहारत – निहारत रोंआ जब भरभराए लागेला ,तब अंखियो ओह सुन्दरता के रसपान करत ना अघाले | भोरे – भोरे चिरई चुरमुन के चंह – चहाँइल जब कान में परेला , त उ कवनो बड़ संगीतकार के वाद्ययंत्र से निकसल मधुर संगीत पर भारी परेला | एगो अलगे आनंद के अनुभूति हिया मे उमड़े लागेला | मन आउर मनई दुनो ओकरे अंचरा में लवटि जाए खातिर विवश होखे लागेला | कुछ – कुछ अइसने बन प्रदेश के अंचल में बा आपन गाँव , जवना के अंचरा के छाँव में जाए खातिर मन तलफत रहेला |

उ गाँव जवने के गर में विंध्य पर्वत माला हार के अहसास देत होखो आउर सिंगार बन प्रदेश करत होखो , अइसन जनम भूमि पर केहू के नाज होला ,  हमरो बा | अपना गाँव से जुडल एगो एतिहासिक घटना के जिकिर इहवां जरुरी लागत बा | कबों काशी  राज के अधीन रहल इ गाँव औरंगजेब के समय में राजस्थान से पलायित राज परिवार के पुरोहितन के दान में  मिलल रहे | गउवाँ के नियरे बहे वाली , ओह क्षेत्र के अपने जल से सिंचित करे वाली , इंद्र देव से अभिशापित त्रिशंकु के मुँह के लार से निकसल  करमनासा नदी  बाटीं | बाकि समय के संगे करमनासा नदी पर बन्हन (बाँध) के कड़ी बन चुकल बा | जवना से नहर निकसल बाड़ी सन | ओही करमनासा नदी के पानी से सगरी इलाका सिंचित हो रहल बा | कहे के मतलब ई बा कि करमनासा ओह इलाका के धन धान्य से भरे में कवनो कमी ना रखले बाड़ी |

करमनासा नदी के बारे में एगो पौराणिक कथा बा , कि राजा त्रिशंकु के जब अपने तपोबल से विश्वामित्र जी सदेह सरग भेज दीहलें , त इंद्र के एहमे उनके अधिकार के हनन लउकल | उ राजा के सरग से धाका दे दीहलें , तब इ महर्षि के बाउर लागल , आउर उ उहाँ के नीचे आवे से रोक दीहलें | महराज त्रिशंकु अन्तरिक्ष में लटक गइलन | फेरु उनका मुँह से जवन लार  गिरल ओही से करमनासा के जनम मानल जाला | एगो आउर किंवदंती इहो बा कि जे करमनासा के पानी में एको बेरी नहा लीही , ओकरे कुल्हि अर्जित पुण्य के क्षय हो जाई | एही से ए नदी के नाँव करमनासा पड़ गइल | बाकि आजु उनुकर स्थिति अइसन नइखे, उनुका विशाल जलराशि के रोक के बनल बन्हन से जीव – जंतु , चिरई – चुरमुन आउर मनई भी फयदा ले रहल बाड़ें | फेरु त आज उनुके कुकरमनासा कहल बेसी नीमन लागेला |

राउर सभे इ नाँव दीहल हमार ढिठाई मत बुझब , इ नाँव त ए नदी के ढेर पहिले दिहल जा चुकल बा | जब  करमनासा के पानी के रोक रोक के जलाशय (बंहा) बनावल गइल , तब ओकरे उद्घाटन के बेरा “ महामहिम काशीराज” अपना स्वागत भाषण में पहिला बेरी “कुकर्मनासा” नाँव दीहले रहलन | अजुवो गाँवन के बड़-बूढ़ एह बात के तसदीक करेलन |

अपने गाँव के नीयरे स्कूल आउर कालेजो बाड़े , जवना से पढ़वइया लइका लोग के कवनो दिक्कत ना होखस  | एही कारन से हमरा गाँव में  एको घर अइसन नइखे , जेकरे घरे  के लइका भा लइकी पढ़ल – लिखल ना होई | मने शिक्षा के ममिला में आपन गाँव नीके बा |

गाँव के नीयरे जवन बन संपदा बा , ओसे किसान लोग त लाभ लेबे करेला , संगे संगे इ क्षेत्र देशो खाति कीमती लकड़ी के उत्पादनों में आगे बा | गाँव के विषय में बतावत बतावत  हम इ भुलाइये गइनी हमरे गाँव के का नाँव ह | लीहल जाव अब बता देत बानी, हमार गाँव जवन  उत्तर प्रदेश के चंदौली जिला के तहसील चकिया में स्थित ह ओकर नांव  बरहुआ बा | गाँव आउर तहसील के बीचे एगो मुख्य बन्हा “ लतीफ़शाह बाँध “ बा , जवना से निकसल नहरन के जाल बिछल बा आउर बहुत बड़हन भूभाग सिंचित हो रहल बा |

अपना गाँव से १०-१२ कोस दूर दू गो प्राकृतिक झरना बाटे , जवने के राजदरी आउर देवदरी के नाँव से जानल जाला | ई दूनो झरना पर्यटन के केंद्र  बा | बहुत दूर दूर से घुमे वाला लोग इहवाँ पहुंचेलन | उहवाँ पहुँचले के बाद केहुवो के मन लवटि आवे के ना करे | बन क्षेत्र से घिरल झरना के दुधिया पानी सभके मन के हर लेवेला | उहाँ के छटा एतना मनोहारी होला कि केहू के अनुराग हो जाय |

भौगोलिकता आउर आवागमन के संगे तकनीकि में भी गाँव नीमन ढंग से आगे बढ़ रहल बा | इहाँ के रहे वाला लोग इहवाँ के हउवन एह पर गर्व करेला | काहें कि भोले बाबा के किरपा बरसत रहेला | विकास के संगे संगे कुल्हि ढंग से गाँव में प्रगति दिखाई दे रहल बा | गाँव पहुँच के उहाँ के माटी माथा से लगवते मन खुस हो जाला , शायद एही के कहल जाला आपन माटी के नेह छोह |

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

 

Related posts

Leave a Comment