हरिहरी काकी

भोरे भोरे फोन घरघड़ाइल त हरिहरी चाची कसमसात पलंग से उठ के ओकरे तरफ झटक के  बड़बड़ात चलली- कवना के भोरे भोरे आग लागल बा।आजकाल ई फोनवो आदमी के जान पर बनहुक नियन गोली दागता।आरे आवतानी रे।तनी थिर हो रे बाबा।तोरा नियन हमरा में जान थोड़े भरल बा, जे हमहु घनघना के पहुंच जाइब। उमिर भइल। कहत कहत झटकले फोन उठवली- परनाम अम्मा!  हम मनहरन। का भइल एतना भोरे भोरे तान कसले बाड़ऽ।  आरे अम्मा!  जरूरी बा।अबहीयें बम्बई जाये खातिर टरेन धरे के बा।एही से फोन कइनीहऽ। का भइल हो? घबरात अम्मा पूछली तऽ जबाब मिलल- खुशी के बात बा। बड़ी बढिया लइका बबुनी से बियाह करे खातिर तइयार भइल बा। ओकरे से बात करे खातिर जाये के बा।बाकिर ऊ लोग गाँवे बारात ले जाये खातिर तइयार नइखन।बाकिर एसे बढ़िया रिश्ता खोजलो पर बिरले मिली। का कहतारू ।जाईं कि ना कह दीं।

अम्मा के मन त दुखी भइल बाकिर उ बुझ गइली कि उनकर पतोहिया तऽ पहिलहीं से चाहत रहे कि गाँव से बियाह ना होखे। पोती भी गाँव अइला पर  दु चारे दिन में  कमी के गिनती से सभकर कान भर देव। इहे सब सोच के अम्मा  कहली जा पहिले बात करऽ।ना मनीहें तऽ आपना लइकी खातिर लइकी के बापे के झुके के पड़ेला। जा भगवान तहार मन जुकुर मकाम रचें।

हरिहरी चाची के तीन गो बेटा। तीनो बढिया सरकार के चाकरी करत शहरवे बस गईल रहलें।कबो कबो माई के मोह से सब बेटा गाँवे आवस लोग। हरिहर चाचा के मरला के बाद गोतिया-भयाद से लड़ के  चाची के आपन खेती के कमान अपना हाथे धइली आ लइकन के बाहर पढे खातिर भेज देहली।जब कबो लइका सब कहस कि तु अकेले हो जइबु तऽ कहस कि ई तऽ राम जी के  ही रचल लीला बा।हमरा भाग के भोग तऽ हमरा भोगही के पड़ी।तहार बाबूजी के मन रहे बेटा सभ अफसर बनें तऽ तू लोगन गाँव के बात पर धियान मत दऽ।पढऽ लोग।तहन लोग के नोकरिये बाबूजी के असल सराध होई।

सब लइका अपना माई के बल आ त्याग से खूब मेहनत कइलन आ बढ़िया नोकरी पाके बड़ी ठाट-बाट से अपना परिवार संगे रहत रहलन।

हरिहरी चाची बड़ी चोख सभाव के रहली।  दु पीढ़ी के सोच के खूब बढ़िया बुझ गईल रहली एह से नवकी पीढी के पतोह,पोती-पोता से बड़ा सोच समझ के बोलस।एहीसे पतोहियो सब उनकर इज्जत करत रहली।

उनका शहरी खानपान,  रहन सहन, इस्टाइल ई सब पसंद ना रहे ऐही से कबो कवनो बेटा के घरे ना जास। ओही लोग के मन करे तऽ ऊ लोग आके भेंट कर जात रहलन।जब बेटा पतोह आवसन तऽ पानी के डिब्बा, किसिम-किसिम के पकल-पकावल नस्ता आ साज बाज के समान लेके आवै। चाची खाली एके गो बात पर रोक लगवले रहली कि शहर वाला कवनो बेढंग कपड़ा होय तऽ ऊ सब ईहा कोई ना पहिरी।बाकी आउर कुछ कवनो रोक ना रहे। जीनीस आ पैंटवो के ठीक मानस जदि उ पेन्हला पर शरीर में ठीक दिखे बाकिर चाची ई बात जादा मानत रहली कि कपड़ा तन ढके के चीज ह तऽ ओकर ओइसहीं उपयोग होखे के चाहीं।

सांझी बेरा फेर फोन के घंटी बाजल- अम्मा!  ऊ लोग के’ हँ ‘कह देहनी। जेठ के चऊठ में बियाह तय भइल बा। तहरा गाँव के  सब काम छोड़ के जल्दी से आवे के पड़ी। हम टिकट भेज देब ,तू आ जा।तहरा बिना कइसे होई।बिना रूकले बड़का बेटा आपन फरमान सुना के फोन रख देहलन। हरिहरी चाची  अपना मन के जाये खातिर समझावे लगली बाकिर काहे जे मनवा खुश होखते ना रहे।

बियाह से बीस दिन पहिले के चाची के टिकट के संगे उनकर सेवकाई करेवाली भगमनियो के टिकट आ गईल।

हरिहरी चाची चले बेरिया भगमनिया के नसीहत देहली- रे भगमनिया! तोहर मुँह तऽ बड़ तेज चलेला बाकिर उहंवा जाके बंदे रखीहे। जे ठीक लागे आ चाहे जे ना ठीक लागे। भले उहां से लउटला पर जे मन में होई एहीजे आके पकपकइहे।बुझलिस की ना!

हँ-हँ बुझ गईनी। इ सब तऽ जब से पतोह लोग आइल बा बुझते बानी। रउरा काहे जे मना करीले।कबो कबो हमरा ओह लोग के पहिरावा ना भावेला। अब अइसन बेलाउज जेकर पीठिया उघाड़े रहे  तऽ पेन्हे के जरूरते का बा।बाकिर राउर कहल तऽ हमरा मानहीं के पड़ी। एके साँस में कह देहलस।

चाची कुछ ना कहली। जब रेलिया छुक छुक करके चले लागल तऽ चाची ओकरो से आगे आगे कल्पना में  उड़े लगली। इयाद पड़ल कि उनकर पोती आ पतोह दुनो उड़ेवाली बाड़ी सन। फैशन तऽ ओकनी पयदाइश के संगही मिलल रहे।जेतना भर उ सभन मुँहवा में  लाली आ पउडर चभोर सकस लगावेली। भलहीं उ शोभे आ चाहे ना शोभे।

सोचते-सोचते कब स्टेशन आ गईल पते ना चलल। पता तब चलल जब भगमनिया जोर से कहलस- परनाम मनहरन भइया! हमनी के इहाँ बानी। खिड़िकिये हाथ हिलावत मनहरना के बोलावत रहे।

हाली-हाली सामान सब आगे करत भगमनिया चिलाये लागल- उठीं ना! ना तऽ अगिला टेशन चहुँप जाइब।

टेशन से घरे पहुँच के नहा धो के जब चाय पिअनी आ पोती के गरवा लगइनी तऽ लागल कि सब थकान उतर गईल।

दुसरका दिन से देखावटी करत करत पइसा पानी नियन बहे। हरिहरी चाची के एतना बेखरची पसंद तऽ ना आवत रहे बाकिर चुपचाप रहली। बियाह तऽ बढ़िया से निपट गईल। बेरादरी में बियाह के तइयारी आ खरच पर खूब चरचा भइल।

जब चउठ पर बोलावे मनहरन गईलन तऽ दामाद कहलन कि पापाजी! हम जदि माई बाबूजी के संगे रहब तऽ कनिका के उनकरे हिसाब से रहे के पड़ी ना तऽ हमनी के रहे के वेवस्था कर देब तऽ हम कवनो बहाना से इनका के लेके चल जाइब।

मनहरन के मुँह  उतर गईल। ऊ घरे आके बात कइलन बाकिर बियाह में  एतना खरचले रहलन कि सब जमापूँजी खतम हो गईल रहे। चाह के भी कवनो उपाय ना बचल रहे।

एक महीना बीतऽते बेटी आ सास में  खटर पटर शुरू हो गईल। माई के घर के  सब बिगड़ल सभाव ससुरारी में जाके घाव भऽ गईल रहे बाकिर कनिका आ ओकर माई ई बात ना माने।मनहरन तऽ बुझ गईल रहलन बाकिर जानत रहलन कि इलोग के सुधारल तऽ  उनकरा मान के बातवे ना रहल।

एक दिन हरिहरी चाची बहुरिया के कहली कि तनी कनिका के सास से बात करावऽ।हम जाये से पहिले उनकरा से मिले चाहतानी ।बहुरिया फोन लगा देहलस तऽ चाची मिले खातिर भोलाबाबा के मंदिर में बोलवली। का बात भइल ई कोई ना जान पवलस।

एकदिन चाची कहली कि हम जाए से पहिले कनिका के घरे जाये चाहतानी  तनी कनिका से मिले चाहतानी।  हमरा के ओकरा घरे ले चलऽ।

कनिका के घरे पहुँच के चाची उनकरा सास के संगही बइठ के खूब बतिअवली आ चले घरी कनिका के बोलवली।जब कनिका के पता चलल कि ई सब नस्ता पानी उनकरा दादी खातिर गईल रहे तऽ तपाक से कहली का दादी! एतना देर से आइल बानी आ हमरा खबरे ना रहे।चाची कहली- ना! हमहीं तहरा सास से कहनी ह कि हमार पोती तऽ हमरा से पहिलहूं ओतना ना बतियावेले एह से जाये घड़ी बोला देब। एतना सुन के कनिका के मुँह उतर गईल।

ऊ सचहूं कबो दादी से ढेर ना बतियावे। एही तरह ससुरारी में  रह के भी ऊ केहु के  ना भइल रहे। कुछो भइला पर अपना माई के फोन करे तऽ ओकर माई अपना हिसाब से समुझा देस। माई बेटी के अलगे दुनिया रहे।एही कारण रहे कि बात बढ गईल रहे। कनिका के सास ठीके रहली बाकिर कनिका के अनदेखी उनकरा के दुखी कर देत रहे। ऊ तऽ हरिहरी चाची के सुझ बुझ से मामला ठंडा भइल।बाकिर आज दादी के ना बोलल ओकरा खूब  खटकल।

चले घड़ी कनिका के सास कहली कि इनका माई से कह देब कि चाहे तऽ इनका के आपन बेटी बना के राखस आ ना तऽ हमार बेटी-पतोह बने देस। आ चाहे तऽ ले जाईं।

हरिहरी चाची कहली – का हो! इहवां कवनो दुख बा? सास कुछ कहेली? दामाद कुछ कहलन ह? बोलऽ? तऽ तहरा बाप के कहब आके ले जइहें।

कनिका कहे लगली हमार अपना घरे जब जे करे के मन रहे करत रहीं मगर इहवां तऽ सबचीज के समय आ नियम बा ।बीचहीं में चाची बात काट के कहली तऽ का ई सब गलत नियम बा।तू तऽ पढल लिखल बारू ।बतावऽ। कनिका फेर कहली- अम्मा जी तऽ दिनभर अपना बेटी के साथे फोन पर रहेली तऽ हम का करब। बहरी जाके होटले में  खा आवेली आ हमनी के बना के खाये के पड़ेला।पहिले पहिल खुदहीं बना के बेटा हई खा, हई पिअ, आ सप्ताह बीतऽते सब बन्द।खुदे बाहर से खाके आ जायेली आ हमरा सोचे के पड़ेला कि का बनाईं। फेर चाची कहली- ओह घड़ी तू का करेलू? का करब? हमहूं अपना अम्मा से बात करेनी। कबहूं इनका फुरसत रहेला तऽ हमनीयो के बहरी जाइला नाऽ तऽ घरहीं कुछ  बनाइले।बियाह घड़ी तऽ ई छुट्टी लिहले रहलन तऽ हम जबरी बहरी घूमे खातिर जात रहनी आ उधरे से खाके आ जात रहनी बाकिर अब तऽ इनका आवते आवते साढे नौ हो जायेला तऽ कही जाये के समय ना होला।

चाची कनिका के समझावत कहली- देखऽ बेटा! कतहूं रहबू तऽ उहां के रहन-सहन सीखे के पड़ी। तहार सास रोज बहरी खाये ना जात रहली ऊ तऽ हमरा संगे रोजे मंदिरवे के भोग खा के दिन  कटले बाड़ी।

चाहे ससुराल होय आ चाहे कहीं अऊर। बाकी एगो बात जान लऽ- तहार सास अपना बेटी के फोन ना करत रहली ऊ हमरा से रोज बतियावत रहली ।तहरा के इहे बुझावे के रहे कि अपने लोग जब अपना के अनदेखी करेला तऽ केतना खराब लागेला। ई सब हमहीं तहरा सास के करे के कहले रहनी। एतना सुनतेऽ कनिका के आँखी से लोर घुड़क गईल। ऊ बुझ गईली कि हम ई घर में  आके भी जब एकहूं दिन इहां के ना भइनी तऽ जेकर घर रहे ऊ का करी।आपन गलती उनका बुझा गईल। ऊ दादी के धऽ के पूका फाड़ के रोवे लगली। दादी कहली- चुप रहऽ। जा जाके अपना माई के गोर धऽ के माफी मांगऽ।

कनिका जइसहीं सास के लगे पहुंचली सास कहली गोर काहे धरे के बा।बेटियो के माफी आ सजा होखेला का! आवऽ, गर पड़ऽ। कनिका अपना सास के अकवार धइली तऽ उनकर बेचैन मन शान्त हो गईल। सास अँचरा के कोर से पतोह के लोर पोछ के कहली- जा! जाके तीन कप बढिया चाय बना के जल्दी से लियावऽ। एकसाथे चाय पिअल जाव। देर मत करीहऽ।ना तऽ हम फेर खिसिया जाब। सास के मुँह से मीठ झिड़की सुन के कनिका मुसकुरा के रसोईघर गईली।

एने कनिका के सासहरिहरी चाची के अकवार धऽ के कहली- ऐ अम्मा जी! एही से कहल जाला।बुढ पुरनिया के बिना घर माहुर हो जाला।राउर उपकार हम कबो ना भुलाइब।चाची कहली – ना!ना! अइसन मत कहीं। रउरा हमार पोती के सही रस्ता देखा देनी।हम राउर सनेह हमेशा इयाद रखब। एही बीच चाय आ गईल।तीनो जन सथहीं चाय पिअलस।फेर चाची घरे आ गईली।

दुसरकि दिन  लऊटे खातिर टरेन रहे।टरेन पर बइठ के चाची खूब खुश रहली।आज पोती के जिनगी जिये सबक सिखा के खूब खुश रहली।

  • डॉ रजनी रंजन

झारखंड

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