काम

एकबेरा फिर से सोच ल रामसिंगार, काहेकि तू हउअ बाबू साहब ..तोहार बेटा बैंक में पार्ट टाइम काम कर ना सकी ..

ग्राहक लोग के चाह- पानी पियावे के पड़ी ।

अउर भी छोट-मोट काम कुल करेके पड़ी साहब लोग से डाँट भी सुनेके पड़ी ।

बाबू बिनोदवा ई कुल काम करी ओकरा गांव से बाहर लिया जाईं डहेण्डल बनल फिरता ..हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाए लगले रामसिंगार .. साहब के आगा ।

साहब के मन पसीज गईल, नया-नया बैंक में नौकरी भईल रहे .

पार्ट टाइम ‘वाटर ब्वाय’ राखेके पावर मिलल रहे त साहब लिया गईनी साथे । डिगरी साटिफिकेट के जरूरत ना रहे पर आठ पास जरूरी रहल उमीर रहल सत्रह बरीस बाकी बढाके लिखावल गईल बालिग होखे के चाहीं ।

पढाई लिखाई में मन ना लागल त खेत-खरिहान, हेंगा-हेंगवाई करे । दोसरा -तीसरा के ट्रैक्टर पर काम करे त बाप के चिंता वाजिब रहे ।

“समय से पहीले अउर भाग से जियादा केहुके ना मिले ”

सायद ओकरे भागे साहब के नौकरी भईल बैंक में …चाहें ओकर समय आ गईल रहे भाग बदले वाला ।

पूरा होसीयार रहल दुनियादारी से पूरा अवगत । साहब के घर के भी भेद देवे लागल त साहब चुप करा दिहनी कि हमरा घर के मामला में कुछ मत बोलीह हमरा आपन घरवाला लोग पर पूरा बिस्वास बा ।

समय आगे बढ़ल साहब के बिआह भईल हम अर्द्धांगिनी बनकर उनका साथे जुड़ गईनी । सालभर बाद बेटी भी आ गईली हमरा गोदी में । ओबेरा उहे खाना बनावे अउर एगो दाई काम करे वाली । रोज ओकरा से झगड़ा करे अउर कभी-कभी हमरो से ।लड़कपन अउर बदमासी ओकरा रग-रग में रहे ।

समाज अउर पड़ोसी ओकर ‘जात’ जानत रहे लोग ‘गरीबी’ ना आ हमनी के ओकर सबकुछ से परिचित रहनी एहीसे ओकर रहना खाना-पीना सब हमनीये के लगे होखे ।

पड़ोस के लोग ओकर कान भरल सुरु कईल कि तू बाबूसाहब होकर उनका घरे नौकर बनल बाड़ अउर बैंक में सबलोग के पानी पियावतर । जात के नाम पर धब्बा बाड़ तू । अब कान के कच्चा बाबूसाहब के दिमाग सातवां आसमान पर चहड़ गईल और उनके आपन ऊँच जात के परवान चढ़े लागल।बात-बात पर झगड़ा करस अउर एक दिन कही के निकल गईल कि हम साथे ना रहब ।

हमनी के भी कोई फरक ना पड़ल बस अफसोस रहल कि अब उ अपना घरे पईसा ना भेज पाई । एकबार मकान अउर बाजार के भाव बुझाई त होस ठिकाने आई ।

साहब जौन बात के प्रतिज्ञा लेवेनी ओकरा पूरा करके रहेनी । ओकरा से कहनी कि कहीं भी रह पर ई काम मत छोड़िह । लगातार दु सौ चालीस दिन काम पूरा होते परमानेंट ..करेके अर्जी लगा देब ।

हम रामसिंगार से वादा कईले बानी ।

आपन वादा पूरा कईनी अउर बैंक में परमानेंट चपरासी में बहाली करवा दिहनी ।

एह बीचे बाबूसाहब के हालत पतला हो गईल । मकान के भाड़ा और रासन-पानी खरीदे में । घर में आना -जाना सुरु कर दिहले । अब आपन गलती के एहसास होखे लागल रहे । हमनी से लाख लड़ाई लड़े पर हमार बेटी अदिति के बहुत माने । कंधा पर बईठा के खूब घुमावे अउर ओकर सब बात माने कबो रोये ना देवे ।

नीचे बैंक रहे अउर ऊपर हमार घर , जब रोअस तब आकर खेलावे अउर घुमावे ले जाये । नौकरी परमानेंट भईल त उनहूँ के बिआह-सादी हो गईल । तब उनका चेत भईल कि नौकरी के का महत्व बा ।सबके बाद साहब भी हर तरह से ओकर मदद करीं ।

साहब के तबादला दूसर सहर में हो गईल त जहिया फेयरवेल रहल तहिया फूट-फूट के रोलस और गोड़ धर लिहलस ,

” भईया हम हमेसा तोहरा से पईले ही बानी अउर आज भी तोहरा से कुछ माँगतनी इनकार मत करीह ..

आपन बेटी के नाम अदिति राखे के चाहतनी कि जब ओकरा बुलाएब त लागी कि तू लोग से जुड़ल बानी ।साहब गला से लगा लिहनी ओकरा के कहनी कि जरूर राख ल उहे नाम हम कभी भी तोहरा के आपन बच्चा ले कम ना समझनी ।”

आज बाबूसाहब हेड कैशियर बानी बैंक में ।

अगर चोरी ना करे त काम कोई भी छोट ना होखे चाहें केतनो बड़ आदमी करे ।

 

  • समता सहाय

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