बड़ा बेआबरू भइनी ऐ गोरिया तोहरे खातिर

छठ के चार दिन पहिले इंदरासना के विदा करा के उनकरा भैया ले अइले, मय लइकिन के हुजूम रामचनर काका के घर में भीड़वाड़ कइ देली सन, केहू उनकर हाल पूछत बा, केहू मीठा पानी ले आवता त छोटकी भउजी परात में पानी भर के उनकर गोड़ धोवे लगली त केहू ससुरा से आइल  छोरा छापी, खुरमी लड्डू टिकरी  रामचरन काकी से पूछ पूछ के जगहा प  सरिहावे लागल। अजब रिवाज होला गांव गिरान के , कवनो भेद ना कि के केकरा घरे कब जाइ कब ना जाइ कवनो टाइम टेबल ना…बस रात के अपना अपना घरे रहे के बा ।

रामचनर काकी अपना सास के मूअला के बाद से बुला  बीसन बरिस से बिना नागा कइले छठ करत रहुइ, छठ के चार दिन अगते से बिआहल बेटी आ  ननद लोग अपना अपना ससुरा से आ जात रहे लोग। जबसे काकी के  दूनो पतोह लोग आइल तबसे ननद लोग त छठ दशहरा में आइल छोड़ दिहल लोग भा उनकरो गृहस्थी छितराइल रहे, से फुरसत ना मिलत होखी।

रामचनर काका के दू गो बेटा के भइला के दस बरिस बाद इंदरसना भइल रहली, एगो बेटी ओह प खूब सुन्नर आ पिसान लेखा ऊज्जर, त मान मनौव्वल खूब होखे। जब उ डगमग उमिर के डराढ़ पर रहली ओही बेरा बिसेन टोला के संतोख से आँख चार भइल, आ आठ दस बेर भइल ..बस्स अतने प त इ बात मय गांव में आग लेखा फइल गइल…बात कतना सांच कतना झूठ ह के परवाह ओह जमाना में ना होत रहे, बस काहें भइल! अब चल$ गाय गोरू लेखा बन्हा जा …. इंदरसना के आनन फानन में कुशीनगर के बहुत अमीर जमींदार परिवार में बिआह हो गइल । प्रेम परवान चढ़ला से पहिलही बिसुख गइल।

उड़त उड़त संतोख के भी पता चलल कि इंदरसना ससुरा से आइल बाड़ी, आ खरवास के पहिले चल जइहें । उ मय जुगत लगा गइले कि कइसे मिलल जाये।
छठ के तैयारी शुरू हो गइल रहे, घाट के लीपाई पोताई , संझवत के परसादी अऊर ठेकुआ बनावे खातिर गेहूं धोआ गइल रहे,  रामचनर काकी घामा में छत प बइठ के गंहू सूखववली, फेर जांता में पीसली।
झसवत के परसादी बन गइल रहे , आ परसादी खाये खातिर सभ केहू रामचनर काका के दुआरी प मजमा लगवले रहे, संतोख भी आइल रहुअन परसादी खाये खातिर। उ सबसे दूर ठाड़ रहुअन जे कसहू देर से खड़ा रहब त एक झलक इंदरसना के मिल जाइ। बाकिर इंदरसना अपना भौजाई लोग संगे काम में बाझल रहली से बहरी एक्को बेर ना अइली। मन मसोस के संतोख अपना घरे चल गइले।

अगला दिन दुपहरिया के खूब पीअर सिलिक के कुरता पायजामा पहिन के उ क बेर घाट प आगे पीछे घूम लीहलन बाकिर इंदरसना अपना माई भौजाई संगे पूजा पाठ में बाझल रह गइली , भोर के घाट प भी देखा दरसन ना भइल। फेर सब केहूं अपना अपना घर में ….

कातिक बीत गइल रहे, फतींगी कुल नापता हो गइल रहुइ सन, भोर भिनसहरे आ सांझ होत होत सीत भी गिरे लागल रहे, दुपहरिया में सभकरा छत प खटिया नेवार प साल, सुइटर भी सूखे लागल रहे, बूनी पड़ला से जाड़ा अपना परवान प रहे ।

बिसेन टोला में इंदरसना के समौरिया लइकी के बिआह तय भइल रहे त बोलहटा आइल जे गीत गावें खातिर जाए के बा, इंदरसना अपना सखी कुल्हीन के संगे ओह टोला में गीत गावें जास त उ लोग के संगही मैदा फुआ भी जात रहली,

मैदा फुआ के उमिर पचास साल होखी, उजर लूगा उजर केश आ मैदा लेखा गोराई उनकर पहिचान रहे बाकिर बहुत हसोड़ रहली उ, हर गंभीर बात के एक छन में हास्य बना देत रहली।
मैदा फुआ रामचनर काका के बड़का बाबा के बेटी रहली आ बाल विधवा रहली से शुरूए से नइहर में ही रह गइली, भाई भौजाई, भतीजा भतीजी के चार गो उरेब बात भी लाद में लुकवा के हरदम हँसत रहस। कबो केहूं के सोझा आपन दुख ना रोवस।
कुआर लइकीन भा नया नहुर पतोह लोगन के झुंड जब कतहूं जाये त मैदा फुआ गार्जियन के रूप में संगे जात रहली।

बिसेन टोला में बिआह के गीत , नाच गाना होखला के बाद सभ केहूं बहरी दुआर प बइठ के कउड़ा तापस लोग आ ढेर रात बीतला के बाद फेर घरे आवत रहे लोग।
रोज संतोख भी साल ओढ़ के ओही मेहरारूअन के झुंड में बइठ के कउड़ा तापस, अन्हेरिया में केहूं चीन्ह ना पावे कि कवनो मरदाना भी ओइसा बा । हेने संतोख अजोरियाा में इंदरसना के कत्थई साल देख लेस , आ इहे उनकरा से गफलत  हो गइल,  जे इंदरसना अउर मैदा फुआ दूनो लोग के साल एक्के रंग के रहे आ रात के खुला आकाश के नीचे उ दूनो जनी मूड़ी तोप के कउड़ा तापस लोग आ संतोख घूंघ में रहस।उनकर कान्फिडेंस हाई लेबल के रहे,  एह बार उ कवनो मौका गवावल ना चाहत रहुअन,

कउड़ा तापत तापत उ मैदा फुआ के इंदरसना समझ के मुठ्ठी में लमनचूस आ एगो रूक्का पकड़ा दिहलन, जब ओहे ने कवनो हरकत ना भइल त उ खुश भइले जे इंदरसना लमनचूस स्वीकार कर लेली..अब उनकर इ रोज के काम हो गइल रहे, चार पाँच दिन बाद संतोख के लागल जे इंदरसना के लमनचूस से कवनो एतराज त नइखे आ रूक्का भी पढ़ते होखिहे त ओह रात सभ केहूं गीत गा के कउड़ा तापे बइठल त फेर संतोख पलखत लगा के ओही मेहरारूअन के बीच में बइठ गइले आ दू तीन मिनट बाद धई के मैदा फुआ के इंदरसना बूझ चिउटी कटलन, एक बेर कटलन त उ हाथ खींच लेली, फेर तनि कस के चिउटी कटलन अब उनकर मन अउरी बढ़ गइल ऐह बार फेर चिउटी कटले अबकी मैदा फुआ उनकर साल खींच के उनकर मुंह आंग के अजोरिआ में कइली आ जब देखली कि संतोख हवन त उनकरा गाल प दू तीन थपर मरली आ कहली जे अरे नतिआ हमरा के चार दिन से लमनचूस देत रहल ह, हम सोची जे गीत गवला सन्तीर हमरा के घर के लोग लुकवा के फरका से लमनचूस देत बा, बाकिर आज त एक बेर फेर दूसरा बेर चीउटी कटला प हमार माथा ठनकल ह, जब इ तीसरा बेर चीउटी कटलस ह तब हमरा से रहल ना गइल ह….अरे मटीलगना भइल बाड़े हमरा के लमनचूस देबे आला,  भगबे कि ना…ऐह से पहिले कि मरदाना किता में पोल पट्टी खुलित संतोख ओहिजा से पनपना के भगले, आ फेर खरवास बीते से पहिले जबले इंदरसना अपना ससुरा ना चल गइली उ ओह टोला में कबो लउकल भी ना ।

  • बिम्मी कुँवर
    हिन्दी भोजपुरी लेखिका
    चेन्नई

 

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