गीत

लाले ओठवा ए नन्हकु सूरूज देव ,लाले  तोहरे गालवा ..

खेलत कूदत तुहो रहल बाबू सगरी अकासवा ..

नील रंग आकासवा  से झांके ल  अजगुत बाड़े तोहर रुपवा ..

कबहुँ  झांकेल केरवा के पतवा ,कबहूँ झाकेल नरियरवा .

कबहुँ खेलल बबुआ सरोवरवा  कूदि -कूदि देखावेल रूपवा ..

जब हम पकरिना तोहरा ए बचवा  भागल  हमरा से दूरवा ..

तोहरे रूपवा से भइनी अभिभूतवा ठानेनी छठ वरतिया ..

आपन बाल रूप के दिह दरसनवा खोलेनी मन के केवरिया ..

खेलल पनिया में दौरेनी हम नाही तू आवेले पकड़वा

बरष भर से जोहिने तहार बटिया जागेनी सारी रतिया ..

मील भर से करेनी भुईपरिया  कुछु नाही हमरा चाही ए बबुआ ..

तोहर दिहल हमरा सबकुछ बाटे नाही समाला अँचरवा ..

लाले ओठवा देखि   मनवो ना अघाला छन-छन चाही दरसनवा ..

हमरा के देदे बचवा इहे बरदानवा देखत रहीं तोहर लाल रूपवा ..

तू त खेलेल बचवा हमर मुड़ेरवा ,झांकेली हमार खिड़िकिया ..

जब हम दौड़ेनी तहरा के पकड़े  बाबूजी के बोलावेल सथवा ..

साँझी बेरिया तू देल किरनिया तबो तू धरेले लाली रूपवा ..

तहार रूपवा अजगुत बाटे उगत -डूबत  में नाही कवनो दुखवा ..

इहे रूपवा के दान हम चाहिने  नाही चाही कोठा अमरिया ..

तहर देखिके चनरमा उतरेले पनिया में संगे नखतवा ..

माटी के दियवा के देनी दीपदानवा जगमग भइल पोखरवा ..

आजु पोखरवा में चाँद सुरूजवा संगे संगे खेलेला दीपवा ..!

——-डॉ सुशीला ओझा

बेतिया ,प.चम्पारण

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