करियवा कोट

कचहरी में वोकील मिलेलन

टरेन में टी टी चलेलन

बरहों महीना कोट काहें पहिरेलन ?

अगर नइखी जानत राज

त जान जाईं आज।

कोट पहिरला से

खलित्तन के संख्या हो जाले जियादा

राउर सुरक्षा अउर संरक्षा के पक्का वादा।

जे केहु थाकल-हारल, मजबूरी के मारल

धाकड़ भा बेचारा

इनका भीरी आ जाला

मुँह मांगल रकम थमा जाला

समन्दर लेखा करियवा कोट में

सभे कुछ … समा जाला।

 

 

मूल रचना- काली कोट

मूल रचनाकार- मोहन द्विवेदी

भोजपुरी भावानुवाद- जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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