भोजपुरी क नागार्जुन पंडित धरीक्षण मिश्र

भोजपुरी साहित्य के आचार्य कवि धरीक्षण मिश्र साधारण जन समुदाय क असाधारण कवि बाड़न । इनकर व्यक्तित्व जेतने साधारण लेखनी ओतने असाधारण अउर विलक्षण । मिश्र जी अपना समय क यथार्थ दृष्टि राखे वाला अइसन सजग रचनाकार हउवन , जे जनता के दुख दर्द आपन लेखनी क विषय बनवलन । इनकर रचना साहित्य पढ़ के अइसन लगेला जइसे ई राजनीति अउर सामाजिक जीवन क कोना – कोना झांक लेले रहलन ।

हिन्दी क परसिद्ध व्यंगकार कवि नागार्जुन अउर धरीक्षण मिश्र एक ही समय क रचनाकार हउवन। आपन मातृभाषा मैथिली खाति जवान नेह छोह नागार्जुन मे बा वइसने नेह छोह भोजपुरी खाति धरीक्षण मिश्र मे देखाला । नागार्जुन अउर धरीक्षण मिश्र दूनों जन क कविता  एक ही प्रश्न से टकराली । बाकि नागार्जुन के कविता मे जवान प्रश्न हिन्दी मे मुखरित रहे , ठीक उहे प्रश्न धरीक्षण मिश्र भोजपुरी मे उठवलन । हिन्दी मे नागार्जुन आपन व्यंगपरक रचना से जवान स्थान बनवलें बाड़न वइसही स्थान भोजपुरी मे धरीक्षण मिश्र के बा । मिश्र जी अपने कविता मे प्रमुखतः जीवन क तीन क्षेत्र के अपने व्यंग के विषय बनवले बाड़न – राजनीति , समाज अउर खुद अपने आप के । इनकर राजनीतिक कविता साम्राज्यवाद ,सामंतवाद क विरोध करेली । “कैसे तुम्हें बताऊँ किसको कैसा कारोबार चाहिए” , ‘ईमानदार देश’ , ‘ अरे नोट से वोट बेचने वाले बुद्धू बोलो तो’ , द्वापर ,’राजनीतिक’ , ‘गरीबी हटाओ’ , अउर ‘नेता’ जइसन कविता मे  राजनीतिक भ्रष्टाचार अउर पाखंड पे कवि आपन व्यंग वाण चलवलन । एतने नाही कवि मिश्र जी जब अपना ऊपर व्यंग करेलन त नागार्जुन से होड लेत प्रतीत होलें । मिश्र जी के निशाना सबसे ज्यादा राजनीति पर रहल ।

 

आजादी के बाद क व्यवस्था परिवर्तन , अनुशासनहीनता, झूठ क नारेबाजी , पश्चिमी सभ्यता क अंधानुकरण अउर ओकर कुप्रभाव सबकर चित्रण मिश्र जी के कविता मे बा । नेता लोग के चरित्र से त रउवा लोग परिचिते होखब जा ,मिश्र जी अपने कविता मे नेता लोगन क जवन चरित्र चित्रण कइले बाड़न , उ आज के नेता लोगन पर एकदम सटीक बइठत बा –

 

जनता  सभी  है कैकयी  का प्रतिरूप बनी

नेता सब लोग मंथरा के अनुकारी हैं ।

जागृति न लाते सही बात न बताते कभी

फेरियाँ लगाते सभी वोट के भिखारी हैं ॥

 

धरीक्षण मिश्र क ढेर काव्य आम जनता , गरीब-दुखिया क अभाव उनकर दुख – दर्द अउर अभिलासा से जुड़ल बा । इनके कविता मे जगह जमीन , बाग बगईचा , खेत – खलिहान क स्वरूप आपन अनुपम छवि के साथ देखाला ।  नागार्जुन के भांति मिश्र जी अपना के हरिजन और नीच जाति के लोगन क हिमायती बतावेलन । ई अपना साठे हरिजन के लइकन के राखत रहलें। गाँव के निम्न श्रेणी क लोग आपन लइका लोग के इनका कुटिया पर इनसे पढे खातिर भेजत रहें । खुद पंडित होके मिश्र जी अपना के पंडिताई से बहुत दूर रखले रहलन ।

 

धरीक्षण मिश्र के साहित्य रचना क आधार व्यंग ह । इनके कविता मे व्यंग क अनुगूँज बहुत गहिरा बा । इंकार कविता पढ़के समाज के अइसन सच्चाई से सामना होखेला जवन हमनी के आँख से बहुत दूर बा । धारीक्षण मिश्र अइसन समाज , संस्कृति अउर राजनीतिक परिवेश क कवि हवन जेमा सांस्कृतिक कुरीति ,सामाजिक असमानता अउर राजनीतिक भ्रष्टाचार भरल पड़ल

रहे । ई सब पर अपना लेखनी से लाठी चलावल बहुत बड़ काम रहे । तबों धारीक्षण मिश्र इ संकल्प उठवलन अउर अपना लेखनी क माध्यम से सामाजिक विसंगतियों ,भ्रष्टाचार  अउर कुरीति क एगो प्रतिपक्ष बनवलें ।

आज क समाज आपन पारंपरिक मूल्य से कट गइल बा ओमा कुरीति , अत्याचार आपन जगह सुरक्षित कर लेले बा त अइसन समय मे धारीक्षण मिश्र क कविता इ कुरीति , सामाजिक भेदभाव ,असमानता शोषण जइसन अमानवीय मूल्यन से कहीं न कहीं हमनी क सहायता कर रहल बा । आज के आधुनिक समाज मे भारतीय किसान सबसे हीन अउर दीन – दुखी बा । धारीक्षण मिश्र क “किसान” कविता पढ़ के किसनन क स्थिति , उनकर गौरवबोध अउर उनकर पीड़ा क एहसास होला । आधुनिक शिक्षा त किसानन के अउर हीनता से ग्रसित कइले बा , एकरा बारे मे धारीक्षण मिश्र लिखले बाड़ें –

“अब त नवकी पीढ़ी क अइसन बनी गयल समाज हवे

कि काम करत मे खेतन मे पढ़वा कालागत लाज हवे ॥“

एतने नाही खेत मे काम करे वाला लोगन के छोट नोकरी करे वाला लोग हेय दृष्टि से देखेलें। मिश्र जी कहेलें –

“खेती मे काम करत युवकन के देखि ओकाई आव ता”

आज जब वर्तमान समय मे किसान आत्महत्या दिन –ब –दिन बढ़ल जाता त एकर केंद्रीय समस्या समझे जाने खातिर लोक भाषा के कवि अउर उनकर कविता क पुनर्पाठ जरूरी हो गइल बा । धारीक्षण मिश्र इ अर्थ मे भोजपुरी क अत्यंत महत्वपूर्ण कवि हवन । वर्तमान परिदृश्य मे राजनीतिक पतन के देख के मन क्षुब्ध अउर व्याकुल हो जाला । नागार्जुन “तीन बंदर बापू के”, “इंदुजी क्या हुआ आपको” , “बाकी बच गया अंडा” जइसन व्यंगात्मक कविता लिख के आपन समय के नेता लोगन के फटकार लगवलें त उहें मिश्र जी क लिखल “गांधी टोपी”, “तीन बानर” , “अपना देश क संविधान” जइसन राजनीतिक कविता आज फिर प्रासंगिक हो गइल बा । आपन कविता “चुनाव क तैयारी” मे धारीक्षण मिश्र जी लिखेलें –

“बोले के बहुत जियादा बा

देवे के सिर्फ नवादा बा

खोवे के नगद जमानत बा

और आपन मर्जादा बा” ।

 

आज क चुनावी प्रचार अउर नेता लोग क झूठ वादा एह पंक्तियन के प्रासंगिकता के सार्थक बना रहल बा । जइसन कि कविता मे मिश्र जी लिखले बालें नेता लोग खाली झूठ क वादा करके आपन मर्यादा खो रहल बाड़न । नागार्जुन जइसन धारीक्षण मिश्र जी “तीन बानर” कविता लिखलें अउर बतावत बानी कि कइसे इ नेता लोग गाँधी के , खादी के आदर्श के आपन चुनावी भाषण अउर जुमलाबंदी मे प्रयोग करके उ चुनाव त जीत जालें बाकि गद्दी मिलला के बाद गाँधी के भुला देले । उनकर आदर्श ,उनकर अहिंसा नेता लोग के चुनाव बाद कबों याद ना आवेला । मिश्र जी बहुत बढ़िया ढंग से इ बात बतवले बालें –

“कि जनता के दुख सुने बदे जे कबों न कान उघारी

आ कुरसी पवला पर जनता का ओर न कबों निहारी”

भारतीय साम्यवादी दल क राजनीति ही मिश्र जी के राजनीतिक कविता रचना क आधार रहे । मिश्र जी व्यंगपरक कविता क माध्यम से राजनीति अउर राजनेता क असली रूप देखवलें । मंदिर मे सोना – चाँदी क बहुलता , देवी – देवता अउर धर्म के नाम पर फइलल अधर्म देख के मिश्र जी व्यंगात्मक लहजा मे कहेलें –

“कपड़ा नहीं जो पहनता जिसका दिगम्बर नाम है

उस देवता को स्वर्ण से बतलाइये क्या काम है ?

सोना तथा चाँदी अगर उस देवता के पास है

इससे बड़ा उस देवता का और क्या उपहास है ?”

 

एतना ही नाही मिश्र जी के कविता मे भोजपुरी अंचल के परिवार मे मेहरारू जीवन क दुख अउर कष्ट क बहुत करुन अभिव्यक्ति “कौना दुखे डोली मे रोवति जाति कनिया” जइसन कविता मे देखे के मिलेला –

चौदहे बरीस घर राम छोड़ि दिहले तS

पोथी के पोथी लोग लिखले बा कहानियाँ।

जन्म भूमि छोड़ि देत बानी आजीवन हम

माथ पै चढ़ा के माई बाप के बचनियाँ ।

हमरी बेर बाकी तS दुकाहें दो सूखि गैल

बालमिकी व्यास कालीदास के कलमियाँ ।

हमरा ए त्याग पर लिखाइल ना ग्रंथ एको

एही दुखे डोली मे रोवत जात कनियाँ ॥

ए तरह से डुनों कवि क देश – काल – सीमा , लोकरुचि अउर लेखन क विधा मे समानता देखे के मिलेला । एक प्रकार से धारीक्षण मिश्र के भोजपुरी क नागार्जुन काहल जाय त कवनों हर्ज ना होई । नागार्जुन के जइसे मिश्र जी भारतीय काव्य परम्परा लोकजीवन से गहिरे जुड़ल कवि हवन । इनकर लिखे क भाषा अलग बा बाकि लेखनी क प्रश्न उहे बा , जवन नागार्जुन के इहाँ बा । दुर्भाग्य क बात इ बा कि अइसन यथार्थवादी कवि क भोजपुरी क्षेत्र तक ही सीमित रह गइल बा । नागार्जुन क जनकवि के रूप मे एगो मुकम्मल पहचान हिन्दी प्रदेश मे बा । धारीक्षण मिश्र ओहि तेवर क कवि हवन । हिन्दी साहित्य मे धारीक्षण मिश्र क पहचान शेष रह गइल बा बाकि उनकर लेखनी के ताकत से इ उम्मीद बा कि इ पहचान जरूर पूरा होई ।

 

  • डॉ समृता यादव

 

 

 

 

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