अट्ठारह ले बरिस जाई बदरा, मनवा हो तनी धीर धरा…

“ये गुरु !बड़ा न उमस ह हो।चुरकी क आग अब दिमाग ले चढ़ आइल ह ।जनात ह परान चल जाई ।” टप-टप चुयत पसेना पोछत चेला के मय गमछी भींज के बोथा हो गइल।
” अट्ठारह ले कुल ठीक हो जाई।परेशान मत होखा हो लाल।” मुस्कियात -पान चबात गुरु चेला के निसफिकिर रहे क सलाह दिहलन।
“अबही आधा घंटा ले एहि गरमी में जाम में फंसल रहलीं ह गुरदेव।लागत रहल ह कि पियासन परान चल जाई।अबहिं चार महीना पहिलही सड़क बनवले रहलन ह सं।छन भर के टिपिर-टिपिर में कुल सिरमिट-गिट्टी धोआय गइल। सज्जे सड़क गडहा हो गइल ओही के पाटे खातिर फिरो सड़किया खोदे लगलन स ससुरा।इक्के कमवा क बेरी करिहन स और केतना लाभ कमइहन स। बतावा भला केतना लुटेरा जनम ले लेले बाड़न हमरा देस में।”
चेला सुर धइले रहलन बाकिर गुरु जबाब देवे के बदले मुस्कियाय भर दें।
“गुरु! एहु साल सूखा पड़ि गइल जनात ह।एक्को बून्द नईखे टपकावत भगवान जी।कुल पूजा -पाठ डांड़ गइल।”चेला बोलत -बोलत हफरी छोड़े लगलन।
” अट्ठारह ले धारासर धड़धड़इले बरसिहें दई ….तनी धीरज धर पट्ठे।”गुरु निसचिन्त भाव से पान कचरत कहलन।
“अट्ठारह के का ह गुरु?”
“दीन-दुनिया क खबर रखल कर रे।अख़बार पढ़ -अख़बार।”रहस्य क अवतार बनल जात रहलन गुरु अउर चेला महामूढ़ जस उनके निरखत ,चाह सुडूकत सोच -सोच हार गइलन कि आखिर अट्ठारह के कवन चमत्कार हो जाई।कइसे सबकर सूखा-दूखा हरियर होई जाय।रेक्सा-ठेला,गल्ली-सड़क ,पोखरी -नाला,गाय-गोरू,खेत-जवार सब ओरी से चेला के इहे सुने के मिलत ह कि अट्ठारह ले बनारस में रस बरिसी रस…।

  • डॉ सुमन सिंह

वाराणसी

 

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