हँसि हँसि अँजुरी भरे !

रतिया झरेले जलबुनियाँ,

फजीरे बनि झालर, झरे

फेरू उतरेले भुइयाँ किरिनियाँ

सरेहिया मे मोती चरे !

 

सिहरेला तन , मन बिहरे

बेयरिया से पात हिले

रात सितिया नहाइल कलियन क ,

रहि रहि ओठ खुले

पंखुरिन अँटकल पनिया

चुवत खानी दिप-दिप बरे !

 

चह-चह चहकत/ चिरइयन से

सगरों जवार जगे-

सुनि, अँगना से दुवरा ले तानल

मन के सितार बजे

छउंकत बोले बछरुआ

मुंडेरवा पर कागा ररे !

 

सुति-उठि धवरेले नन्हकी

उघारे गोड़े दादी धरे

बुला एही रे नेहे हरसिंगरवा

दुवरवा पर रोजे झरे

बुची, चुनि-चुनि बीनेले फूल

आ हँसि हँसि अँजुरी भरे !

  • डॉ अशोक द्विवेदी

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