सपना रोज सजाई ले

भौतिकता में डूबल
असलियत से उबल
आधुनिकता में अझुराई ले
आ अपना के खूब भरमाई ले
सपना रोज सजाई ले।

ज्ञानविहीन
दिशाविहीन
दुबिधा में
अपने के समझ ना पाई ले
सपना रोज सजाई ले।

कामकाज भले ना होखे
आमद-खर्च
नफा-नुकसान
अंगुरी पर निपटाई ले
सपना रोज सजाई ले।

लमहर-लमहर जम्हाई लेके
विकास-ह्रास के खाका
रोज बनाईले
आ मेटाई ले
सपना रोज सजाई ले।

दुनिया के चकाचौंध में
डूबी ले
उतराई ले
आ अपने से बतीआई ले
सपना रोज सजाई ले।

कबो छा जाई ले आकाशे में राकेश बन
कबो जमीने पर लोटाई ले
कबो कल्पना के अंतरिक्ष में छीप जाई ले
कबो अतल में जा समाई ले
सपना रोज सजाई ले।

अशोक मिश्र
प्राचार्य
डीएवी कैमोर
कटनी, म प्र

 

 

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