भोजपुरी में मानकीकरण के जरूरत … कतना व्यवहारिक ?

साहित्य के साँच आ संवेदनसील मानके सिरजना के राहि डेग बढ़ावल सुखकर होला। मने एगो अइसन प्रेरक तत्व जवना के प्राण तत्व मान के सृजन के समाज खाति एगो आइना का रूप में परोसला के सुघर दीठि आ संकल्पना का संगे सोझा ले आवे खाति प्रतिबद्धता के एगो मानक मानल जाला। अइसन सृजन अपना भीतरि ऐतिहासिकता के बिम्ब जोगावत आगु बढ़त देखला। अझुरहट आ बीपत का बीच साहित्य एगो नीमन व्यवस्था देस आ समाज का सोझा राखेला। अगर व्यवस्था एकरूपता का संगे सोझा आवेले त ओकरा के बूझल आ बूझलका का अनुरूप आचरण जिनगी में उतारे के परयास मनई करेलें। एकरूपता मने पुरुब से पछिम आ उत्तर से दखिन सगरों एक लेखा। कुछ अइसने जरूरत भोजपुरी में होखल अब जरूरी बुझाये लागल बा। एह एकरूपता के मानकीकरण के नाँव से जानल जाला। भोजपुरी में अबले मानकीकरण के दिसाई काम नइखे भइल। मानकीकरण एगो लमहर चले वाली प्रक्रिया ह। बाकि पहिले ओह दिसाई भोजपुरी के पुरोधा लोगन में एगो सहमति,समन्वय आ सार्थक बतकही के बन्हा के बनला के पहिल जरूरत ह।मानकीकरण के प्रक्रिया के शुरू करे खाति एगो समरथ नेतृत्व के जरूरत सभे महसूस करेला, काहें से कि भोजपुरिया साहित्य जगत अपने समाजे लेखा गोल-गोलबंदी के कुइयाँ में पँवर रहल बा। क्षेत्र,जात,धरम, चुनरी आ पियरी क फेरा  का बहरा निकर के खुलल मन-मिजाज से भाषा के खाति कुछ करे क शुरुवात जरूरी बा। भोजपुरी में एह घरी हर विधा में साहित्य लिखा रहल बा, किताबो छप रहल बाड़ी सन। ढेर-थोर पत्र-पत्रिकों निकल रहल बाड़ी।

अगर हमनी के गियर्सन के आधार मान के देखल जाव त उनुका वर्गीकरण से असहमत होखल संभव नइखे। मुख्य भोजपुरी आ पश्चिमी भोजपुरी(काशिका) का भीतरों ढेर भिन्नता देखाई पड़ेले।सगरे भोजपुरिया क्षेत्र में एगो कहाउत सभे सुनावत भेंटा जाला- ‘कोस कोस पर बदले पानी, चार कोस पर बानी।’भोजपुरिया क्षेत्र के असल साँच इहे बा। एह बोली-बानी से अमरित लेत भोजपुरी लेखन खाति एगो सर्वमान्य पद्धति विकसित होखल जरूरी बुझा रहल बा। जवना से भोजपुरी साहित्य में एकरूपता के समावेस होखे। कई गो प्रकाशक लोगन आ अलगा-अलगा क्षेत्र के लोगन का बीच शब्दन का लेके विमर्श होत त देखला, बाकि निर्णय पर ना चहुंप पावेला । लोग ई कहि के किनारा क लेवेला कि ‘हो सकेला रउरा इहाँ बोलल जात होखी, बाकि हम सुनले नइखीं।’ कवनो भाषाई विमर्श के  खुला मन-मिजाज से होखल आ एगो निर्णय पर चहुंपल एकरूपता मने मानकीकरण के नियरा जाये के रहता बनाई।

अब सै बाति के एक बात, उ ई कि जब एकरा सभे मानत बा कि भोजपुरी में मानकीकरण होखे के चाही त फेर देर कवना बाति के बा? एकर अलखे जगावला भर से काम त ना चली, एह दिसाई कुछ सार्थक पहल शुरू होखे, ओहमें समरथ लोग आपन योगदान देवे शुरू करे। भोजपुरी में विद्वान लोगन के कमी नइखे,एगो प्रबुद्ध मण्डल बने आ उ एकर नेतृत्व अपना हाथ में लेवे  आ शुरुवात काइल जाय।  प्रबुद्ध मण्डल बनावे खाति जरूरी प्रतिनिधित्व के धियान में राखत एगो सार्थक विमर्श के शुरुवात पहिले जरूरी बा। भोजपुरी भाषा के कबों राजकीय संरक्षण नइखे मिलल, तबो ओकर गति आ बहाव चल रहल बा। एही से ई समझ के आगु चलल शुरू होखे कि मानकीकरण ला कबों राजकीय सहायता ना भेंटाई। इहो काज भोजपुरिया लोगन के अपनही दम पर करे के परी। एह दिसाई पत्र-पतरिकन के जवन जिमवारी बने, सभे सहज तइयार भेंटाई।भोजपुरी साहित्य सरिता अपने दायित्व बोध से एह जग में एक अंजुरी जल लेके तइयार बा। एह सोच का संगे हमनी के पतिरका के सितंबर अंक राउर सभे के सोझा लेके आ रहल बानी सन। एह पतिरका के सम्पादन खाति लेखक लोगन के सहयोग आ नेह-छोह पहिला दिन से मिल रहल बा, आगहूँ  मिलते रही, अइसन बिसवास बा। जय भोजपुरी।

 

  • जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

संपादक

भोजपुरी साहित्य सरिता

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