सुखेला नयनवाँ

कईसे के जिहं माई तोर ई ललनवाँ
सूखि जाले धरती सगरौ सुखेला नयनवाँ
कईसे के जिहं माई…….।

सुबहा के घाम लागे जेठ के दुपहरी
कउनो नखतवा देखालै नाहीं बदरी
तपते त बीत गईल ई अषाढ़, सवनवाँ
कईसे के जिहं माई……..।

झुरा अकाल साल सालै परि जाला
चईति अगहनी के बीज जरि जाला
छोड़ि गाँव चिरई,चुनमुन उड़ि गइलन बनवाँ
कईसे के जिहं माई…….।

कईसे के होई आगे पूतन के पढ़ाई
कईसे करब माई बेटी के  विदाई
कईदा तूँ माई मोर पूरा ई सपनवाँ
कईसे के जिहं माई……..।

बुधिया बीमार बनलि कपरा के बोझा
डॉक्टर दवाई बोलई भूत सोखा ओझा
कईली दवाई बेचि जेवरा  बसनवाँ
कईसे के जिहं माई…….।

तोहके श्रृंगार माई अब का पहिराईब
माला,फूल,मेवा,खीर कहाँ ले चढाईब
चढ़ल बाटे दाम सगरौ ऊँचे असमनवाँ

कईसे के जिहं माई तोर ई ललनवाँ
सूखि जाले धरती सगरौ सुखेला नयनवाँ

मनकामना शुक्ल ‘पथिक’
सोनभद्र, उत्तर प्रदेश।

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