साहित्यिक चोरी : समस्या आ समाधान

हाल ही में सोशल मीडिया प्लेटफार्म प एगो ममिला बहुत चरचा में रहे, जहंवा भोजपुरी के एगो साहित्यकार आ गीतकार प चंचरीक जी के लिखल प्रसिद्द गीत ‘चरखवा चालू रहे’ कॉपी कर के बहुत मामूली हेर-फेर के संगे एगो पत्रिका आ इन्टरनेट प आपन नांव से छपवावे के आरोप लागल. आरोप-प्रत्यारोप के लमहर दौर चलल, फेर बाद में उ साहित्यकार महोदय के वेबसाइट एडिट करवा के आपन नांव हटावे के परल. एह सब के बीच एगो जवन सबसे दुखद बात रहल उ ई कि कई गो भोजपुरिये समाज के लोग कवनो ना कवनो तरीका से या त ममिला दबावे के कोसिस कईल ना त उ ‘साहित्यिक चोरी’ के गलती सुधारे के बजाय गलती प आवाज़ उठावे वाला के ट्रोल कईल. हालाँकि, हरमेसा अंत में सचाई के जीत भईल बा आ इहो मुद्दा में भईल. भोजपुरी साहित्य संसार में साहित्यिक चोरी के ई कवनो नया भा पहिलका ममिला ना रहे. एकरा से पहिलहूं अईसन केस भईल बा आ आजुवो हो रहल बा आउर ना ई साहित्यिक चोरी खलिहा भोजपुरिये साहित्य में बा. सांच पूछीं त ‘साहित्यिक चोरी/ बौद्धिक चोरी/ प्रज्ञा चोरी/ मेधा चोरी’ हर अंतर्राष्ट्रीय भाषा के साहित्य के समस्या रहल बा. हम एह आलेख के २ भागन के जरिये पाठक लोगन के सोझा ‘साहित्यिक चोरी’ के मूल समस्या, कारन आ निदान प चरचा करे के चाहब. आलेख के उद्देश्य ई रही कि भोजपुरी साहित्य के सुधी पाठक लोग जागरूक होके साहित्यिक चोरी रोके में जोगदान देस भोजपुरी साहित्य के अकादमिक छात्र एकरा बारे में जानस.

‘साहित्यिक चोरी’ के अंग्रेजी में ‘Plagiarism’ कहल जाएला जवना के उत्पति लैटिन शब्द ‘Plagiarius’ से भईल बा जेकर मतलब ह ‘अपहर्ता या अपहरण करे वाला’. एकर क्रिया पद ह ‘Plagiare’ जेकर अर्थ ह ‘अपहरण कईल’. कुछ स्रोत से मिलल जानकारी के अनुसार ‘प्लैगियारिज्म’ शब्द के प्रचलन १७ वीं शताब्दी से भईल जब  एगो अँगरेज़ नाटककार आपन साहित्यिक कृति के चोरी के सन्दर्भ में एकर उपयोग कईले रहन.

परिभाषा के रूप में समझल जाव त दोसरा के मौलिक लेखन, विचार (idea), कलाकृति, शैली, आदि के गलत ढंग से आपन मौलिक कृति के रूप में प्रचारित- प्रसारित कईल ‘प्लैगियारिज्म’ भा ‘साहित्यिक चोरी’ कहल जाएला. साहित्यिक चोरी करे वाला मूल लेखक के श्रेय ना देवे आ ना मौलिक स्रोत के सही-सही उल्लेख करेला. कवनो मूल स्रोत से लिहल विचार में हेर-फेर करके नया रूप में परोसलो अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार साहित्यिक चोरी कहाई. एह परिभाषा के विस्तृत कर के देखल जाव साहित्यिक चोरी उ कहल जाई जवना में कवनो लेखक दोसरा के मौलिक कृति के आपन बता रहल बा, बिना क्रेडिट/सन्दर्भ दिहले लेखन/विचार/शैली के नकल करता, मूल स्रोत में अगर उद्धरण चिन्ह (quotatation mark) बा त ओकर विलोप करता, मूल स्रोत के गलत जानकारी दे रहल बा आ मूल वाक्य के नकल के दौरान शब्दन में हेर-फेर करता. अंतर्राष्ट्रीय अकादमिक स्तर प इ सब के साहित्यिक चोरी के श्रेणी में राखल गईल बा आ ई परिभाषा खलिहा साहित्यिक लेखन तक सीमित नईखे, बलुक फोटोग्राफ, विडियो, संगीत-नृत्य सभ के क्षेत्र में मान्य बा.

जाहिर बा कि साहित्यिक चोर के उद्देश्य के पाछे  बिना कवनो मूल शोध भा लेखन के आपन नांव, यश में बढ़नती, अकादमिक डिग्री प्राप्त कईल, आर्थिक लाभ लिहल, नोकरी में प्रमोशन  आ सम्मान आदि के चाह होखेला. साहित्यिक चोरी करे वाला सफलता के शार्ट कट राह खोजेला.

साहित्यिक चोरी क़ानूनी सन्दर्भ में दंडनीय अपराध तब तक ना ह जब तक उ कॉपीराइट उल्लंघन भा बौद्धिक सम्पदा कानून/ पेटेंट अधिनियम के उल्लंघन ना करत होखे. तबो अईसन किसिम के चोरी नैतिक आधार प कतहूं से समाज में सकारल ना जा सके. बौद्धिक चोरी दोसर केहू के बौद्धिक क्षमता के नीचा देखावे, मूल लेखक के काम के महत्त्वहीन करके ओकर साहित्यिक योगदान के मिटावे के प्रयास ह. जदी साहित्य समाज के आईना ह त साहित्यिक चोरी समाज के सबसे निचला स्तर के चोरी ह. बौद्धिक चोरी पकड़ा गईला प करे वाला चोर  के सामाजिक आ आर्थिक हानि उठावे खातिर तईयार रहे के चाहीं. साहित्यिक चोर से बढ़ के त उ गुनाहगार बा जे जानत-बुझत अईसन चोरी के प्रोमोट करता भा तोप के राखे के प्रयास करता. क़ानूनी स्तर प साहित्यिक चोरी के दंडनीय अपराध ना होखला के वजह से हाल-फिलहाल में अकादमिक क्षेत्र में एकर उपयोग पीएचडी आदि उपाधि खातिर जम के होखे लागल ह. संसार के लगभग हर देस के विश्वविद्यालय आ शोध संस्थानन में एकरा के रोके खातिर लगातार उपाय हो रहल बा. हमनी के देस भारत में यूजीसी प्लैगियारिज्म अधिनियम, २०१८ ई में प्रभाव में आईल. एह अधिनियम में साहित्यिक चोरी में चोरी कईल कंटेंट के प्रतिशतता के आधार प अलगा-अलगा दंड के बेवस्था कईल बा. आज देस के लगभग हर विश्वविद्यालय आ प्रतिष्ठित पत्रिका-जर्नल भीरी एकरा प रोक लगावे वाला सॉफ्टवेयर मौजूद बा. एकरा प चरचा आलेख के अगिला अंक में होई फ़िलहाल ई समझल जाव कि साहित्यिक चोरी कॉपीराइट उल्लंघन आ ट्रेडमार्क उल्लंघन से अलगा कईसे बा?

साहित्यिक चोरी बिना कवनो क्रेडिट दिहले कवनो मूल कृति के समूचा भा आंशिक कॉपी, मौलिक विचार/शैली के कॉपी, मूल स्रोत के गलत भा ना उल्लेख कईल ह. जबकि कॉपीराइट उल्लंघन में कवनो कॉपीराइट सामग्री जईसे आलेख, चित्र, विडियो, संगीत आदि के नकल कईल आवेला. कॉपीराइट सामग्री में एगो कॉपीराइट नोटिस रहेला जवन आम जन के सूचना देवेला कि एकर मूल अधिकार केकरा भीरी बा आ ओकरा से बिना अनुमति के सामग्री के उपयोग क़ानूनी रूप से दंडनीय बा. साहित्यिक चोरी जब कॉपीराइट सामग्री से कईल जा रहल बा त कॉपीराइट स्वामी साहित्यिक चोर प मुकदमा कर सकेला. प्रकाशन के दुनिया में कई बेर अईसन ममिला आवेला जब चोर बहुत सारा अईसन सामग्री जवना के कॉपीराइट कुछ समय के बाद खतम हो गईल होखे या सामग्री आउट ऑफ़ प्रिंट बा त ओकरा से नकल करेला. अईसन चोरी कॉपीराइट उल्लंघन में भले ना आवे बाकी नैतिक रूप से गलत काम ह. अईसन चोरी पकड़ा गईला प सामाजिक प्रतिष्ठा में हानि कर सकेला.

ट्रेडमार्क उल्लंघन तब होखेला जब कवनो व्यावसायिक ब्रांड के टाइटल, स्लोगन, प्रचार सामग्री, सामान बनावे वाला फार्मूला/ सामग्री आदि के नकल होखे लागेला. इहो दंडनीय अपराध ह.

साहित्यिक चोरी कई तरीका के हो सकेला. ग्लोबली देखल जाव त बौद्धिक चोरी के कुछ महत्त्वपूर्ण किसिम के चरचा बहुत साधारन शब्दन में करे के कोसिस हो रहल बा—

कॉपी-पेस्ट / डायरेक्ट प्लैगियारिज्म :- ई अईसन तरीका के साहित्यिक चोरी ह जेकरा में कवनो मूल कृति के यथारूप बिना कवनो हेर-फेर कईले नकल कईल गईल होखे आ ओह मूल कृति के कवनो सन्दर्भ भा क्रेडिट ना दिहल गईल होखे.

सांकेतिक रूप से शब्दन में बदलाव (Paraphrasing):- एह तरीका के साहित्यिक चोरी में मूल पैराग्राफ के कुछ वाक्य के क्रम भा कुछ शब्दन के क्रम में हेर-फेर कईल होखे. जदी मूल स्रोत से नकल करे घरी कुछ शब्दन में सांकेतिक रूप से माने मामूली हेर-फेर करके नया रूप में परोसल जाए त उहो एही किसिम के साहित्यिक चोरी कहाई.

मोज़ेक प्लैगियारिज्म :- कई बेर साहित्यिक चोर ‘पैचवर्क’ भा ‘मोज़ेक लेखन’ करेला जब उ कई गो अलगा-अलगा स्रोत से नकल करेला आ सभके मिला के एगो लेख तईयार करेला हालाँकि मूल idea में कवनो बदलाव ना होखे.

आत्म साहित्यिक चोरी (self-plagiarism / auto plagiarism) :- अईसनो देखे में आवेला कि कोई लेखक आपने मूल कृति / आलेख के एक से अधिका जगह कबो तनिकी सा बदलाव करके त कबो बिना बदलावे के छपवा भा उपयोग में ले आ रहल बा. अकादमिक क्षेत्र खास क के शोध आदि में एह तरीका के चोरी  प्रचलित बा.

साहित्यिक चोरी से बांचे के उपाय, एकर समाधान, भोजपुरी साहित्य जगत में बौद्धिक चोरी प एगो छोटहन चरचा आलेख के अगिला भाग में …..

 

 

लेखक परिचय:-

रवि प्रकाश सूरज

सदस्य (शासी निकाय), मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली सरकार. शोधछात्र, स्नातकोत्तर भोजपुरी विभाग, वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा. सम्पादक मंडल सदस्य, प्रकाशन समिति, बिहार समाज विज्ञान अकादमी, पटना.

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