मति मारीं हमके

ओई दिन माई घर की पिछुवाड़े बइठि के मउसी से बार झरवावत रहे। तवलेकहिं बाबूजी आ गइने अउर माई से पूछने की का हो अबहिन तइयार ना भइलू का? केतना टाइम लगावतारू? माई कहलसि, “बस हो गइल, रउआँ चलिं हम आवतानी।” खैर हम समझि ना पवनी की कहाँ जाए के बाति होता। हम लगनी सोंचे की बिहाने-बिहाने बाबूजी माई के लिया के कहाँ जाए के तइयारी करताने। अरे इ का तवलेकहिं हमरा बुझाइल की मउसी त सुसुक-सुसुक के रोवतिया। हम तनि उदास हो गइनी काहें की हमरा लागल की मउसी के रोवल कवनो सुभ संकेत त नहिए बा। हम बहुत कोसिस कइनी की मउसी से ओकरी रोवे के कारन पूछीं पर आखिर कवनेगाँ। हमार आवाज के सुनी। अबहिन हम एही उधेड़बुन में रहनी तवलेकहीं माई मउसी से कहलसि की ते काँहे रोवे लगले। ए पर मउसी सुसुक-सुसुक के कहल सुरु कइलसि, “दीदी, तें पढ़ले-लिखले की बादो एतना गलत काम करे जा तारे। अरे लइकिनी त लछ्मी के रूप होले। अगर संसार में लइकिनी ना रहेंकुलि त संसारे ना चलि अउर ते बारे की बबुनिया के हत्या करवावे जा तारे, उ बबुनिया जवन अबहिन ए दुनिया में कदमों नइखे रखले। खैर ओकरा का मालूम बा की आज के मनई एतना क्रूर बा कि ओकरी आगे कंसवो फेल बा।”

खैर हमहुँ अभिमन्यु की तरे पेटवे में रहि के माई की साथे जब भी केहू के बाति होखे बड़ी धेयान से सुनी अउर कंस, रावन, राम, किस्न सबकी बारे में सुनले रहनीं। मउसी के बाति सुनि के हमरा रोवाई ना हँसी आ गइल। हम मन ही मन सोंचनी की माई अउर बाबूजी बराबर पूजा-पाठ करत रहेला लोग अउर किस्न के बड़ाई त कंस के कोसत रहेला लोग। इ ए लोगन के कवन रूप ह, बड़ाई करता लोग किस्न के अउर चलता लोग कंस की राह पर। हे भगवान तोहार माया अपरम्पार बा। ना ना तोहार ना ए मानव समाज के माया अपरम्पार बा।

खैर हो सकेला की हम गलत सोंचत होखीं। हो सकेला की माई अउर बाबूजी एगो समाजिक आदमी ह लोग। समाज, देस की बारे में बहुत सोंचेला लोग ए कारन से जनसंख्या वृद्धि से परेसान हो के इ कदम उठावे जात होखे लोग। आजु आपन देस जनसंख्या की हिसाब से चीन की बाद दूसरा नंबर पर बा। पर हमरा इयाद बा कि आजु से लगभग एक महीना पहिले एकदिन बाबूजी माई से कहत रहने की लइका रही तब त ठीक बा पर लइकिनी रही त कुछ सोंचे के परी। त का बाबूजी अउर माई के बबुनी ना बाबू चाहीं। हमार बाबूजी त इंटर कालेज में मास्टर हउअन पर इनकर इ सोंच। इनकरा इ काहें ना बुझाता की अगर एहींगा लइकिनी कुलि के हत्या होत रहल त एकदिन समाज के संतुलन बिगड़ि जाई अउर एगो एइसन समय आई की धरती पर से मानव जाति के अस्तित्वे मिट जाई। अरे भाई जब माइए ना रही त लइका कहाँ से आई।

आजु लोग हाथ-पैर धो के हमनीजान की पीछे परल बा। बार-बार चेकअप करावल जाता की लइकिनी ह की लइका अउर इ पता चलते की लइकिनी ह, माई-बाप नर-पिचास हो जाता अउर हमनीजान के हत्या कइले की बादे चैन के साँस लेता। माई-बाप के इ कृत देखि के भगवानो रोवत होइहें की हम मानव के बना के केतना बड़हन पाप कइले बानी।

ए में विग्यानो के दोस देहल ठीक नइखे। अरे भाई पहिले लोग हमनीजान के पयदा भइले की बाद मारत रहल ह अउर अब विग्यान की किरिपा से पेटवे में पहिलहीं हमनीजान के पहिचान के मारि देता।

एकदिन हमरा इयाद बा की बाबूजी माई के लिंगानुपात की बारे में बतावत रहने। बाबूजी कहत रहने की एक हजार आदमी पर केतना मेहरारू बानीकुलि ए ही के लिंगानुपात कहल जाला। 1901 में अपनी देस भारत में 1000 आदमियन पर मेहरारू कुलि के संख्या 972 रहे जवन 2001 में एतना घटल की 933 हो गइल। अब एही से अंदाजा लगावल जा सकेला की हमनी की हत्या के रफ्तार का बा। आदमी कहे खातिर जेतने सभ्य (अपनी भाषा में) होत जाता ओतने नर-पिचास। आज आदमी विवेक से काम लेहल बंद क देले बा अरे भाई ओकरी लगे देस, समाज अउर परकिर्ती की बारे में सोंचे के समय कहाँ बा। आज त उ भावहीन हो गइल बा। पत्थरदिल बा आज के मानव।

आजु एही के देन बा की कुछ लोग हमनीजान के खरीद-फरोक्त करता, अरे भाई केतने जाने लइका कुआँरे रहि जाता लोग। आजु चारु ओर महिलन के समान अधिकार देबे के चरचा जोर पर बा पर होता कुछ ना काँहे कि जबले आदमिन के सोंच ना बदली, जबले माई-बाप अपनी संकीर्ण मानसिकता से ऊपर ना उठी तवलेक ए तरह के जघन्य पाप समाज में होत रही अउर एकर दुस्परिनाम त समाज के भोगहीं के परी। आज अगर यूनीसेफ के सुनल जाव त अपनी देस भारत में रोजो सात हजार कन्यन के बलि चढ़ा देहल जाता। बाप रे एतना भारी पाप।

आज हर गली-गली में नकली डाक्टरन के भरमार हो गइल बा। उ कुछ नइखन कुल करत त खालि एगो अल्ट्रासाउंड के मसीन खरीद के बइठि जा तानेकुलि अउर खूब लुटहाई करताने कुलि पर हाँ एगो बाति बा, भ्रूनहत्या करेवाला दुकानन की बाहर साफ लिखि के लगा देहल जाता की भ्रूण हत्या की उद्देश्य से लिंग जाँच कानूनी अपराध बा, बाह भाई बाह, ए के कहल जाला सीना तानि के डाका डालल। हमरी खेयाल से भारत की अधिकत्तर अस्पतालन में कवनो बहुत जरूरी उपकरन, मसीन आदि होखो चाहें ना पर अल्ट्रासाउंड के सुबिधा जरूर बा अउर ए मसीनन के भारत में बेंचि के कईगो बिदेसी कंपनियाँ लाल हो गइल बानीकुलि।

हाय रे कथित पढ़ल-लिखल भारतीय समाज। लइका भइले पर मिठाई बँटाटा अउर लइकिनी भइले पर रोवाई छुटि जाता। अगर माई लइका दी त कपारे पर बइठावल जाई अउर कहीं हम आ गइनी त माई के लतिआवल जाई। हँसी की रोईं हमरा खुदे नइखे बुझात। हमरा त बुझाता की अब खाली उहू लइकिनी जनम ले पाइ जवन कवनो बेस्या माई की गोद से पयदा होई अउर ना त नाजायज।

ए माई, ए बाबूजी, ए काका, ए भइया! हमके मति मारS जा हो। हमहुँ के जिए द जा। हमहीं से मानव समाज के अस्तित्व बा, जइहा हमार समूल नास हो जाई ओहि दिने मानव समाज भी ए धरती से मिट जाई। समधी-समधिन, सार-बहनोई, जीजा-साली, पतोही, दुलहा-दुलहिन जइसन सब्द खाली सब्दकोसन में रहि जइहेंसन अउर पढ़ावत समय मास्ससाहब कइहें की कुछ समय पहिले ए लोगन के अस्तित्व रहे पर आज इ लुप्त हो गइल बाटे लोग। रउआँ काहें नइखीं सोंचत की सीता, सावित्री, अपाला, घोषा, लक्ष्मीबाई, कल्पना चावला, सायना नेहवाल इ सब लइकिनिए ह अउर हो सकेला की रउरी गरभ में पल रहल कवनो लइकिनी ए ही में से एगो होखे।

रचनाकार के निहोरा- भारत जहाँ औरत के देवी के संग्या देहल जाला, नौरात्रि में कुमारी कन्यावन के माँ दुर्गा के रूप मानि के आदर सहित खिआवल-पिआवल जाला। उहे भारत जहाँ एगो अकेले लक्ष्मीबाई अंगरेजन के दाँत खट्टा क देहलसि, उहे भारत जहाँ पीटी उषा, सायना नेहवाल के कृर्ति के लोहा विस्व मानल। आजु हमनी जान के का हो गइल बा। एगो महान धारमिक देस जवनन की धरम-ग्रंथन में नारी के महत्ता हर तरह से प्रतिपादित बा ओही देस में नारी के साथ एइसन व्यवहार? आखिर काँहे। ग्रंथन में पिता-रिन से पहिले माता-रिन के बात बतावल जाला। हम त इहे कहबि की लइकिनी कुल के भी उचित सिक्षा दीं, संस्कार दीं। कहल गइल बा की यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ति तत्र देवता’ त ए बात के समझीं अउर कन्या के सनमान दीं। शिवाजी के शिवाजी बनवले में माई जीजाबाई के ही हाथ रहल। डा. राधाकृष्णनन जी कहले रहने की अगर मातालोग अच्छा रही त देस अपनी आप ही अच्छा हो जाई। महिला वर्ग की परति समाज में जागरूकता लाईं अउर का सही बा अउर का गलत ए बात के समझाईं। जय भारत।।

पं. प्रभाकर गोपालपुरिया

 

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