मशीनीकरण बेरोजगारी

मंगला के मेहरी दुआरा पर बैठकर के गोबर के गोईठा बनावत रहे, तब ले गाँव के रिस्ता मे बुआ लगीहन उ ओकरा दुआरा पहुँचली। आउर मंगला के मेहरी के उदास चेहरा देख के बोलली।

“रे पतोहीया काहे मुहँ लटका के बईठल बारिश रे। ई अवाज गाँव के एगो बुआ के रहे”। पहीले त पतोहीया उल्टा जबाब देवे के मुंड मे रहे लेकिन थोड़ा-सा बुढ़ बुजुर्ग के लेहाजे चुप-चाप बैठ के रह गईल। फिर भी बुआ ओकर मुहँ मे अंगुली कईल ना बन्द कईली। “दुर-हो, बोल देवे त खिया जईबे का” बुआ बकत  जाके खटिया पर बईठ गईली। पतोहीया भी मुहँ अईठ के जबाब देलास “लि ना, त का करी बईठ के सोहर गाई का, मन के सुखे थोड़े मुहँ लटका के बईठल बानी, आज चार दिन बईठला हो गईल उनकरा कही काम नईखे मिलत, आउर अब घर परिवार कईसे चली ईहे नईखे बुझात।”

“रे हे त मंगला नाहर खोदाई मे काम करत रल नु, नाहर के खोदाई बन्द हो गईल का” बुआ कहली। पतोहीया चिंता भरल स्वर मे बोललस “ना बुआ काम नईखे बन्द भईल, ठिकदार खोदाई करे वाला आदमी के हटाके आउर खोदाई करे वाला कवनो जे•सी•बी मशीन लिया के खोदाई करावे लागल।”

बुआ भी चिंता भरल स्वर बोलली ” बाताव ना जाँहा टोला के दस गो लईका काम करत रलहन सन अब उहा एगो मशीनीये नु काम करी।”

पतोहीया ” मलिक जानस कईसे धर्म कर्म चली।

पतोहीया के चिपरी पथा गईल रहे उठ के चल देलस। आउर बुआ भी अब खटिया पर बईठ के बिड़ी सुलगावे लगली।

  जियाउल हक

जैतपुर सारण (बिहार)

 

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