बउरहिया

” ए अम्मा जी उर्दी छुआए जात ह गांई जा लोग।” लइका क माई अम्मा लोगन के होस धरवलीं कि उ लोग काहें खातिर बोलावल गईल हईं जा।अम्मा लोग कढ़वलीं –

‘ जौं मैं जनतीं गनेस बाबा अइहन,
लीपि डरतीं अंगना दुआर
चनन छिड़कतीं ओही देव घरवा
चनन क सुन्नर सुबास
जौं मैं जनतीं सीतला मइया अइहन
लीपि डरतीं अँगना दुआर।’

गीत कढ़ावे वाली बड़की आजी ढ़ेर बूढ़ा गइल रहलीं।चारे-पाँच लाइन गावे में हफरी छोड़े लगलीं।एक जानी क सांस फूले लागल अउर दम्मा के मरीज नियन खांसे लगलीं।
“अरे काहें जान देले हईं ए जीजी।तनी सुस्ता लेहीं।केहू पनियों के त नइखे पूछत।” फ़ौजदार बो भऊजाई से चिकारी कइलीं।
“तू त एक ले आग लगउनी हई रे ।अबहियें इँहा से जइबी अउर मनोजवा के माई के पट्टी पढ़ा अइबी कि ओकरे लइका के बिआह में केहू गनवो ना गावे वाला ह। अउरी…।” एतने में जीजी क दम्मा उखड़ गईल ऊ पसली धई-धई खांसे लगलीं।फ़ौजदार बो उनके सरापे लगलीं-
” जे हम के देख के जरी ओके भगवान देखिहन।अबहीं त सबके दम्मा उखड़ल ह।अबहीं देखा का होला।” फ़ौजदार बो हाथ नचावत जीजी के सरापत रहलीं कि लइका क माई चिचिआये लगलीं-
“का जी रउवा सभे बुढ़ौतियो में लइकन नियन लड़ब जा।बिआह -सादी क घर में अब हमके झगरो फरिआवे के पड़ी,आंय?”         लइका के माई ओरी ले फटकार खा के बूढ़ा लोग फिर होस धइलीं जा कि ऊ लोग काहें के बोलावल गईल हईं जा। बिआह ले दू दिन पहिले ऊ लोगन के जीप में ठूंस के गाँव से मंगावल गईल रहे ।लइका के माई सहर में जा के बस गईल रहलीं बाकिर चाहत रहलीं कि बिधि-बिधान से बिआह होखे।पहिली बार उनके घर में बिआह होत रहे।घर में बड़-बूढ़ ना रहिहन त के बताई कि का कइसे होई एहि से  कुल दयादी-पटिदारी क बूढ़ -पुरनिया बटोर लेवल गईल रहलीं जा।
फ़ौजदार बो तनी हाथ-पैर से पोढ़ रहलीं एहि से बूढ़ा लोगन के सम्हारे खातिर बोला लेवल गईल रहलीं बाकिर उनके अउर लइका क माई में छतीस क आँकड़ा रहल।बूढ़ा लोग के गोड़धरिया कइके बोलावल गईल रहे बाकिर जब कवनो काम पड़े तबे इ लोग पूछल जायँ नाही त बरात -घर के एगो कोठरी में बसात ओढ़ना-बिछउना में दुबकल रहें लोग।
“ए बचिया तनी पानी लिया देतू हो।पीआसन परान जात ह।” एगो लइकी से बूढ़ा निहोरा कइलीं।
“बरात जाने वाली है हमें तैयार होना है,किसी और से मंगा लीजिये।” कहके लइकिया बहरे भाग गईल। बूढ़ा छटपटात रह गइलीं।
“कहत रहलीं न कि हमहन के ,के पूछी। लेकिन रउआ ना मनलीं बाकिर बिआह देखे क साध बुढ़ौतियो ले राउर ना बुतायल।” थर्मोकोल क गिलास में पानी थमावत फ़ौजदार बो फिरो जीजी से अझुराये लगलीं।
“इ पलासटिक के गिलास में हम पानी ना पियब।” बूढ़ा पानी क गिलास थाम लेहलीं बाकिर पानी पिए में हिचकिचाये लगलीं।
“पी लिहिं हेतना भीड़-भाड़ में कंहवा से ईस्टील क गिलास आई ?”बूढ़ा केहुतरे पानी से परान जुड़वलीं।
“ए फ़ौजदार बो तनी कुछ खाये के ले अवतू हो बड़ा भूख लागल ह।” बूढ़ा कई दिन क भूखायल कवनो नान्ह लईका नियन छछनत रहलीं।
“ए जीजी रउओ न अइसन बात बोलिला की पूछे के नइखे।इँहा कवनो हमरे हाथ में ह।चारो ओर घूम भइलीं।दू गो लडुओ नइखे भेटात कि ले आयीं।” फ़ौजदार बो खुदे भुखायल रहलीं।होटल क कुल्ही कमरा में ताक-झाँक अईली।सब अपने -अपने में बाझल रहे।केहू तैयार होत रहे,केहू दूसरे के तैयार करत रहे।लड़िका क माई अउर बहिन  तैयार होखे ब्यूटीपार्लर गईल रहलीं जा।केहू-केहू के ओ घरी चिन्हत ना रहे सब अपने सजे-सँवरे में लागल रहे।
बरात क जायेके बेर हो गईल रहे। लइका क माई खोजात रहलीं। पता चलल कि ऊ तैयार होये गयल हईं।लइका क पापा, चच्चा जब खुनुसन  सुनगे लगलन जा तब जाके ऊ धउरल अइलीं।बूढ़ा लोग बोलावल गइलीं। हाली-हाली नहछू नहावन भयल।बूढ़ा लोग गवलीं जा-
” के आइ पोखरा खनावेला घाट बन्हावेला
केकर भरेला कंहार त राम जी नहावन।’
इमली घोटावल गईल त बूढ़ा लोग कढ़वलीं जा-
” भइया जे बइठे पलंग चढ़ बहिनी चउक पर
भइया खोलि देता दाम क पोटरीया औ इमली घोटावा।”

मऊर बान्हत क, परिछन के बेरी बूढ़ा लोग खूबे राग बन्हलीं जा बाकिर जब बरिआत जाये लागल त केहू इन्हन लोग के पुछबे ना करे।लइका क माई लइका के संगे गाड़ी में बइठ के चल दिहली।फ़ौजदार बो गोहरवते रह गईली बाकिर केहू सुनलस ना।सब नाचत -गावत बैंड बाजा के पाछे -पाछे चल गयल।बूढ़ा लोग पाछे फेफियात रह गइलीं।केहुतरे फ़ौजदार बो सबके टेकावत वापिस होटल चहुँपली।घंटा भर बाद फ़ौजदार बो लइका के माई क फोन आयल।
” मनोजवा क माई क फोन रहल ह, कहत रहलीं ह कि नकटा क कुल समान रख गईल हईं।होटल वालन के सात पलेट पूड़ी-तरकारी के कह देले हईं।जब ले हमहन के खाएब जा तबले ऊ आ जइहैं। लुक्का लागो अइसन कुल बिआह -सादी में ।ई कवनों बात ह जी, कि माई -चाची बरिआत क मजा लुटें अउर दयाद -पटीदार नकटा खेल्ले आंय। ”  फ़ौजदार बो कहत जायँ अउर मुस्किआय के भउजी ओर ताकत जायँ।भउजी भूख अउर खाँसी से बेहाल रहलीं अब ऊ फ़ौजदार बो के बउराह जस टुकुर -टुकुर ताके लगलीं।लगे कि उनके कुछ बुझाते -चिन्हात ना ह।
” का ए जीजी बड़ा सउख से चलल रहलीं ह जा रउआ लोग बिआह देखे बाकिर बउरहिया बनाके चल गइलीं न मनोज क माई ? ” फ़ौजदार बो क बोली टीबोली सुनत बूढ़ा लोग केवाड़ी ओर कान रोपले रहलीं जा , कि कब केहू खाना क पलेट लिहले आई आ कि  खाये बदे बोलाई।

  • डॉ.सुमन सिंह
    असिस्टेंट प्रो.(हिन्दी-विभाग)
    डी ए वी पी . जी कॉलेज, वाराणसी

 

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