देंह फागुन महीना हमार भइल बा

जहिए से नैना दु से चार भइल बा,

इंतजार में मजा बेसुमार भइल बा I

 

पह फाटल हिया में अंजोर हो गइल,

पाँख में जोस के भरमार भइल बा I

 

जाल बंधन के तहस नहस हो गइल,

संउसे धरती आ अम्बर भइल बा I

 

पूस के दिन बीतल बसंत आ गइल,

देंह फागुन महीना हमार भइल बा I

 

महुआ फुलाइल आम मोजरा गइल,

हमरा दिल में नसा बरियार भइल बा I

 

डॉ. हरेश्वर राय, सतना, मध्य प्रदेश

 

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