राजनीति बिख बोली

एकहुँ अवसर छोड़त नइखे
कँउचावे के ,
बोल रहल बा बोली ;
राजनीति बिख घोली ।

जइसे खेल भइल लइकन के ,
काट रहल बा चिउँटी ।
पुलु – लुलु अँउठा देखलावे
अउरी झोंटा-झोंटी ।

जब – जब आपन मुँहवा खोली
टुभुकत बोल कुबोली ।
राजनीति बिख घोली ।।

पाथर जोड़ी बनल महल में
रहत भइल जे पाथर ।
सत्ता सुख पावे भर नाता
मन में बाटे ऑतर ।

जनता के खाली बा झोली ,
भरलस आपन खोली ।
राजनीति बिख घोली ।।

खोट समाइल बा नीयत में
समय आज खुनसाइल ।
कवने रहते बँच के जाइब
सब राहे कँटिआइल ।

फन कढ़ले बिखधर जब डोली
निकली नाहीं बोली ।
राजनीति बिख घोली ।।

 

  • डॉ ब्रज भूषण मिश्रा

मुजफ्फरपुर, बिहार

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