ई आठवीं अनुसूची नहिंए रहे त का हरज !

( अपने अद्भुत-सरस काव्य-पाठ से दर्शकन के लोभे -मोहे में प्रकाश उदय जी जेतना निपुण हउवन, ओतने गुणी, ओतने समृद्ध अपने लेखनी से भी हउवन।आशा ह कि,अजब ओज,अलहदा वाचन-लेखन शैली, बेहद विनम्र बाकिर तनिक संकोची-लजाधुर सुभाव वाले, भोजपुरी साहित्य क सर्वप्रिय -प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रकाश उदय जी से  ‘भोजपुरी साहित्य-सरिता’ क सह-संपादिका सुमन सिंह क ई बातचीत उनके व्यक्तित्व -कृतित्व क कई पहलू उजागर करी अउर साथ ही साथ हिंदी क दशा-दुर्दशा, भोजपुरी क संवैधानिक दर्जा अउर आंदोलन क विफलता से सम्बंधित उनके खोभ-क्षोभ के भी आप लोगन के सोझा रखी ।)

◆अपने ओह परिवेश के बारे में बतायीं जवन आपके रचलस गढ़लस ।

प्रकाश उदय जी–अब ले त रचइलीं ना गढ़इलीं ना।जइसे सभे तइसे हमहूँ अबहीं दरकचात बानीं,फिंचात बानीं, फचकरात बानीं, गरात बानीं, पसरात बानीं…।जहिया रचा जाइब,गढ़ा जाइब तहिए बता पाइब कि कवन परिवेश, कइसन, आ कब-कहाँ-कइसे रचलस-गढ़लस ।अबहीं त अतनवे कि ओमें गाँव-नगर, घर-परिवार, साथ- संघत, हीत-नात, रन-बन, आफत-बीपत, ऊख- रूख- पोखरा- पहाड़ सबकर योगदान होई।

◆अपने भीतर के रचनात्मक मन से आपके कब साक्षात्कार भइल ?

प्रकाश उदय जी– हमरा अपना भीतर के रचनात्मक मन के साक्षात्कार आज ले ना भइल।रउरे सब के भइल ।हम त रउरा सब जवन बतवलीं तवन मान लिहलीं।ऊहो एसे कि ना मनला प झगड़ा करे के परित,के झगड़े जाव, एक त तनी भ जिनिगी दोसरे झगड़े खातिर नौ-नौ मन के दोसर- दोसर तमाम बातन के अनोर-छोर विस्तार।

◆भोजपुरी में लिखे कब शुरू कइलीं ?

प्रकाश उदय जी–  लिखे के शुरुआते भइल भोजपुरी से, एसे कि बोलहूँ के शुरुआत भोजपुरिए से भइल रहे ।एही से बुला, कब भइल, कह ना सकीं।ई जरूर कह सकींला कि कविता- कहानी जवना के कहल जाला तवना के कहहूँ के आ लिखहूँ के शुरुआत, भगवान के बड़ी एहसान,कि अपना कविता- कहानी से ना भइल ,दोसरा- दोसरा के कविता- कहानी के आपन मनला से भइल ।ओंइसे, हमरा त लागेला आजो हम अभी ओहिजे बानीं जहँवा के शुरुआत कहल जाला ।

◆ आपके लेखन पर सबसे ढेर प्रभाव केकर पड़ल ?

प्रकाश उदय जी — आपन का बा ए जिनिगी में, सब त लिहल उधार। सब-सब लोहा ओ लोगन के आपन खलिसा धार  …।

◆ भोजपुरी के साथ-साथ आप हिन्दी में भी रचनारत हईं।कवने भासा में लेखन ढेर सहज लागेला ?

प्रकाश उदय जी– सहज कहीं त तवनो आ कठिन कहीं त तवनो, हमरा खातिर दुन्नो एक बरब्बर।एसे जे हम हिंदी सिखले बानीं,ई मान के नइखीं चलल कि हिंदी हमार मातृभाषा ह, ऊ हमरा अइबे करेला, ओकरा के सीखे के जरूरत नइखे।आ हिंदी सिखले बानीं त ओकरा के सीखे में अपना भोजपुरी के लगवले बानीं ,एही से हमरा खातिर लिखल भले बहुत मुश्किल, नीक-नीमन लिखल त महामुश्किल, बाकिर भोजपुरी- हिंदी के लेके कवनो किसिम के कवनो अझुरा ना, ना ई कि लिखब त भोजपुरिए में लिखब, ना ई कि लिखब त हिंदिए में लिखब, ना ई कि भोजपुरी में हिंदी के बात, हिंदी में भोजपुरी के  बात ना लिखब ।हमरा लगे बा अगर,आ अगर ओह लायक हम बानीं, त काहे ना अपना भोजपुरी  से आपन हिंदी, अपना हिंदी से आपन भोजपुरी सँवारब!

◆ लिखे के संगे -संगे गावे -सुनावे में आपके महारत हासिल ह,अलहदा अंदाज़ में अपने कविताई से लोभे-मोहे क एह अनोखा अंदाज़ के प्रेरणा में केके-केके शामिल कइल चाहब ?

प्रकाश उदय जी —  गावे-सुनावे में महारत हासिल भइला के आरोप से इनकारे कइला में हमार भलाई बा ।बहुत दूर मत जाईं त कबो कमलेश राय,कबो भालचंद्र त्रिपाठी के सुन लीं,सुनला के सुख के नमूना मिल जाई। ई जरूर कहब कि भोजपुरी में सुनवला प अपना वाचिक परंपरा में भइला के एगो बल बनल रहेला।राउर सुनावल कइसन बा—नीक कि बाउर कि महज सहाउर—ई अक्सर एह बात प निर्भर करेला कि के रउरा के सुनत बा आ कइसे सुनत बा—गुनला-अस कि सुनला-अस कि टरकवला-अस! कहे के माने कि महिमा रउरा सुनला के, हमरा सुनवला के ना।आजे से ना,हमेशा से ।इयाद करीं कि असाध्य वीणा बजवला से ना बाजल रहे,बजला से बाजल रहे ।

◆ बनारस के बोली -बानी अउर साहित्य-समाज क केतना असर पड़ल आपके कृतित्व पर ?

प्रकाश उदय जी– अनघा ।अफरात।प्रभाव  पड़लो  बा आ अद-बद के अपने अपना प पड़वावलो बा ।संयोग से  बनारस अइला के कुछुए दिन बाद हमार शोध-निर्देशक प्रो.शुकदेव जी किहाँ अमेरिका  से फ्रैंक  ब्लेयर पधरले आ अपना शोध-कार्य में उनुकर मदद मँगले।उनुकर विषय रहे ‘सामाजिक स्तर-भेद से भाषा-भेद : नेपाली और भोजपुरी के विशेष संदर्भ में ‘।शुकदेव जी उनुका मदद के भार हमरा के सँउप देहले।हमहूँ अपना से कुछ उठा ना रखलीं । एह उठा ना रखला में उनुकर जवन मदद भइल से त ऊहे जानें, हमरा सोझा भोजपुरी के छपरहिया,गोरखपुरिया,बनारसी वगैरह विभिन्न रूपन के जवन विभाजक विशेषता रहे तवन बहुत कुछ साफ भइल ।एही बीचे एक दिन फ्रैंक हमरा से चहले कि हम उनुका खातिर अपना स्वर में भोजपुरी के कवनो क्लासिक कहानी टेप करवा दीं।हम ‘का खाईं,का पीहीं, का लेके परदेस जाईं ‘ वाला कहनी टेप करवा दिहलीं।अस्सी प अमर भवन में, जहाँ ई टेप होत रहे,हमरा इयाद बा कि उहाँ रहे वाला मय-के-मय ,अलग-अलग भाषा-भाषी बिदेसी-बिदेसिन लोग, बिना बात के बुझले- समझले, खलिसा एह कहनी के गद्य-पद्य वाला एकमेक शैली- स्वर प रीझ के बटोरा गइल रहले।ओही लोग में एगो रहले बी.जे.ग्राहम, ब्रिटेन के, संस्कृत के शोधार्थी।ऊ कहे लगले कि हमरा के भोजपुरी सिखा द।हम भागल चहलीं,काहेकि फ्रैंक के टुटही हिन्दी आ आपन फुटही अंग्रेजी के लेके हम पहिलहीं बहुत झेल चुकल रहीं ।बाकिर हम भागे पवलीं ना,  काहेकि ग्राहम के हमरा अतना हिन्दी त आवते रहे,  संस्कृत  हमरा से जादहीं आवत रहे । एक त भाषा प अतना मजबूत पकड़ वाला विद्यार्थी, दोसरे ओह विद्यार्थी के फरमाइस कि अपना आरा वाला भोजपुरी त पढ़इबे करऽ,बनारसो वाला पढ़ावऽ।एह पढ़ावे के उधामत में हम बनारसी बोली-बानीं,साहित्य- समाज के प्रभाव में अनायासो अइलीं,  सायासो अइलीं।
भोजपुरी मुँहामुँही के, कहासुनी के भाषा जादे रहल बा,एकरा के लिखापढ़ी में ले आवे खातिर जरूरी बा कि भोजपुरी के विभिन्न रूपन में संज्ञा के, क्रियारूपन के जवन कई-कई ठे विकल्प मौजूद बा तवना के जानल जाय आ ओमें से लिखापढ़ी के दृष्टि से सर्वाधिक उपयुक्त के चुनल जाय।जवना के मानकीकरण कहल जाला ऊहो असहीं होई—रसे-रसे।  भोजपुरी पत्रिका ‘समकालीन भोजपुरी साहित्य ‘ से जुड़ाव के चलते, खुशी बा हमरा कि खलिसा बनारसी बोली-बानी,साहित्य- समाज ना,भोजपुरी भूगोल के प्रायः पत जनपद के बोली-बानी,साहित्य- समाज के प्रभाव-छाँव में नहाय के मोका मिलल करेला।

◆ काशी अउर काशिका के भूत,वर्तमान अउर भविष्य पर कवनो टिप्पणी कइल चाहब ?

प्रकाश उदय जी– काशी क भूत-वर्तमान- भविष्य के जानें बाबा विश्वनाथ, माई अन्नपूर्णा ।सब-सब हमनै जानब त ई लोग का करिहें! रहल बात काशिका के, त जौने काशिका के ‘ बीतल ‘ के भारतेन्दु के बल, तेग अली तेग के तेग के बल ; जौने काशिका के ‘बीतत’ के गुरु आ भइया जी आ नजीर आ चकाचक मतिन जाने कतने ‘बनारसी ‘ के बल ; मंगल-बल,बावला-बल,हरिराम-बल—तौने काशिका के ‘बीतेवाला’ के का चिन्ता , का फिकिर! जवन भयल तवन भयल, जवन होला तवन होता, जवन होई तवन होई ए रामालोई…।

◆ भोजपुरी भाषा के मान्यता के लेके जवन आंदोलन अउर ओहपर विवाद हो रहल ह,एह मुद्दा पर आपके का विचार ह ? काहें ना आंदोलन सफल हो पावत ह ?

प्रकाश उदय जी– भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता के बात बहुत पहिले से चलत चलल आवत बा। धरना,जुलूस, प्रदर्शन, घेराव, प्रस्ताव, हस्ताक्षर- अभियान वगैरह के एगो अनन्त सिलसिला रहल बा—गाँव-गिराँव, नुक्कड़- चौराहा, आरा-पटना, देवरिया-गोरखपुर, आजमगढ़-बनारस— कहे के माने कि देश  से लेके दिल्ली तक ।बदला में आश्वासनो अनघा मिलत रहल बा ; खुदरा,थोक में ; गाँव के गली से लेके संसद के गलियारा तक ।तब्बो सफलता ना मिलल त एसे कि साँच पूछीं त अतना- अतना आ अनवरत उधामत के बावजूद एकरा अभी  आंदोलन के स्वरूप ना मिल पावल ।ऊ जवना दिने मिल जाई तवने दिन के सफलता के दिन के रूप  में  दर्ज क लेब ।सवाल बा कि ऊ दिन अबले काहे ना आइल ? एसे कि भाषा  हमरा एह भोजपुरिया समाज आ भारत सरकार के प्राथमिकता वाला सूची में हइए  नइखे ।  इहाँ तक कि जवन शिक्षा- संस्थान लोग बा,आ बढ़ियाइले जाता लोग दिन दून रात चौगुन, तवनो लोग खातिर भाषा परम फालतू चीज भइल जाता ।अइसना में, हमरा भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता के विरोधे करे वाला लोग  से कुछ उमेद जाग गइल बा। ई लोग अगर अपना विरोध  के झंडा अतने बेहयाई से निरन्तर उठवले रहिहें त बहुत संभव बा कि भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता के माँग एगो आंदोलन में बदल जाय। कामना करे के चाहीं कि अपना विद्वत्ता के जवना थेथरई से ऊ लोग काम ले रहल बा तवन हालाहाली भोथर मत होखे।  भगवान एह लोग के हल्ला-हँउजार के अतना ताकत जरूर दें कि ऊ लोग सुत्तल भोजपुरिया शेरन के जगा सको! आ हम त चाहब कि भोजपुरिया लोग जागो त तनी ठीक से जागो ।संविधान के आठवीं अनुसूची  में अपना भोजपुरी के त शामिल करवइबे करो,अवरू-अवरू जवन भाषा बा भारत के,  ओहू के शामिल करवावो।ई जे  कवनो भाषा के जेठ कवनो के हेठ बता के ; कवनो के भितरी ढुका के, कवनो के बहरी बिलमा के आपस  में भिड़वले राखे वाला नीयत बा तवना के विरोध त होखहीं के चाहीं ।व्यक्तिगत रूप से, हम त अतना ले कहब कि ई आठवीं अनुसूची नाहिंए रहे त का हरज!

◆ काहें ,आप काहें चाहत हईं कि ‘आठवीं अनुसूची’ ना रहे के चाही ?

प्रकाश उदय जी– काहें कि, कुछ विद्वज्जन, आ गुमान के बात बा कि ओह में जादेतर भोजपुरिए भाषी विद्वान बाटन, ई मानेले कि आठवीं अनुसूची में शामिल भइले के अख्तियार भाषा के बा,बोली के ना, आ भोजपुरी बोली ह ,भाषा ना ह, एसे ओकरा बहरिए रहे के चाहीं ।भोजपुरी बोली जरूर ह,बाकिर ओसहीं जइसे ऊ सब भाषा बोली ह,बोलियो ह, जवन जीयत बा, बात-व्यवहार में बा ।जवन भाषा खलिसा किताबे में बा ओकरा के भाषा त कहल जा सकेला, बोली ना कहल जा सके ।एही तरे कवनो बोली खलिसा बोलहीं में होखे, लिखत-पढ़त में होइबे ना करे त ओकरा के बोली त कहल जा सकेला, भाषा ना कहल जा सके ।भोजपुरी बोलहूँ में आ लिखो-पढ़ी में गोरखनाथ से लेके गोरख पाण्डे से होत आज तक ; भारत के कई-कई राज्यन में, महानगरन में,  कुल्हि औद्योगिक नगरन में आ भारत के बहरियो कई-कई देशन में बा,आ ठाट से बा। परिमाण में, आ परिणामो में, प्रभावो में, ओकर लिखित साहित्य  कवनो माने में दब के नइखे ।एह सचाई से मुँह मोड़ लेल जाय, तब्बो एह सवाल के जवाब जुटावल मुश्किल होई कि कइसे हिन्दिए के कहाय वाली एक बोली के चउकठ लंघा लेल गइल,बाकी के अबले टरकवले राखल गइल!
इहँवे भोजपुरी, अवधी, बुन्देली वगैरह के ‘हिन्दी के बोली’ भइला के ममिला फरिया लेल जाय । ई सब हिन्दी के बोली ह,एकर माने ई ना कि खड़ी बोली हिन्दी के बोली ह। खड़ी बोली हिन्दी त खुदे एह हिन्दी के एगो बोली ह।तब ऊ कवन हिन्दी ह जवना के हिन्दी सहित सतरह-अठारह गो बोली ।ऊ जवन हिन्दी ह तवन कवनो भाषा ना ह ,एगो भाषा वैज्ञानिक नाम ह,ओसहीं जइसे ‘बिहारी ‘ कवनो भाषा ना ह, महज एगो  भाषा वैज्ञानिक नाम ह ।अब एह बात के खयाल  राखे के चाहीं कि कवनो भाषा वैज्ञानिक नाम के बोली भइला के ऊहे मतलब ना भइल जवन कवनो भाषा के बोली  भइला के मतलब भइल ।
केहू एगो भाषा वैज्ञानिक नाम ‘बिहारी ‘के तीन गो बोली बतावे—मैथिली,मगही आ भोजपुरी—त केहू के भले ई ठीक ना लागे, ई त नाहिंए होई कि ऊ लाठी  लेके धउरा देही। बाकिर एगो भाषा के रूप में जवना  भोजपुरी के अस्तित्व बा,अगर केहू मैथिली,मगही के ओह भोजपुरी के बोली बताई त कवनो-ना-कवनो मैथिल भा मगहिया भाई के हाथे , तय बा कि दू-चार झापड़ खाइए के लौटे पाई।
कहे के अतनवे बा कि जे बड़का वाला हिन्दी के बजाय छोटका वाला, खड़ी बोली, हिन्दी के बोली के रूप में भोजपुरी के मान्यता देके ओकरा संवैधानिक मान्यता के विरोध करत बा,भगवान ओह लोग के इतिहास के किताब में अमर करें ।ऊ लोग अक्सरहाँ ईहो  कहल करेला, जे कवनो इस्कूल- कालेज में हिंदी के अध्यापक होके भोजपुरी के बात करेला ओकरा बारे में, कि ई लोग हिंदी के खाके, हिन्दिए के पत्तल में छेद करत बा ।पूछे के चाहीं  ए लोग से कि कवना हिंदी के खाके? कवना हिंदी के पत्तल में? जे हिंदी पढ़ावेला ऊ अगर हिंदी के पाठ्यक्रम में तुलसी के,सूर के, विद्यापति के पढ़ावेला त जाहिर बा कि छोटका वाला हिन्दी के ना पढ़ावे खलिसा, बड़का वाला हिन्दी के पढ़ावेला, जवना में छोटको वाला हिन्दी आपरूप आ जाला ।मुश्किल ई बा कि एह लोग के ई बोधे नइखे ।परम मासूम बन के पूछत बा लोग कि जब मैथिली के मान्यता मिल गइल त  हिंदी के पाठ्यक्रम में विद्यापति कइसे रखइहें!मत राखऽ भाई,अगर तहरा खातिर हिन्दी के पाठ्यक्रम  माने खलिसा खड़ी बोली हिन्दी त तू गद्य शुरू करऽ भारतेन्दु-युग से,पद्य शुरू करऽ द्विवेदी-युग से, ओकरा से पहिले लाते मत लगावऽ।
ओंइसे, भोजपुरी के मान्यता से एह विद्वान लोग के ढेर कष्ट ना होखे के चाहीं काहे कि कबीर के ई लोग,अक्सर, भोजपुरी के कवि माने ना आ दोसरा कवनो भोजपुरी साहित्यकार के अपना सिलेबस में राखे ना।त हम त इहाँ सब से ईहे कहब कि मिले दीं भोजपुरी के मान्यता, एसे रउरा सब के सिलेबस जी प आ सिलेबसबाजी प कवनो खरोंच ना लागे के लगभग गारण्टी बा।

◆ ‘कवनो खरोंच ना लागी’ वाली गारंटी देवे वाला त बहुते लोग इनहन लोगन के समझावे-बुझावे में  दिन-रात एक कइले हउवन।बाकिर आँख-कान मूँद के, समझ-बूझ रुन्ह के,कटकटाइल  कंठ से भोजपुरी पर लगतार इ आरोप लगावल जात ह कि एके संवैधानिक दर्ज़ा मिल गइले से हिन्दी कमज़ोर हो जायी,बड़ -बड़ विद्वान लोग एह पक्ष में आपन समर्थन देत हउवन।आप क का राय ह ?

प्रकाश उदय जी–इ जे कहत बा कि भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता मिलला से हिंदी कमजोर हो जाई, ऊ ना हिंदी के जानत बा,ना भोजपुरी के।अतने ना ऊ जाने-अनजाने  एह देश के,खास तौर प एकर हिंदी कहल जाय वाला इलाका के भाषा-विहीन बना देबे वाला साजिश में शामिल बा ।ऊहे ऊ आदमी ह जवन नइखे चाहत कि हिंदी के एह देश में कबो राष्ट्रभाषा  के दर्जा मिले।सबसे पहिले ई समझे के चाहीं कि काहे हिंदी आ हिंदिए में एह देश के राष्ट्रभाषा बने के कूबत बा ।कवन अइसन कबिलाँव जवन हिन्दी में बा ,बाकिर एह देश के बाकी कवनो भाषा में नइखे, जवना के चलते हिंदी राष्ट्रभाषा बने लायक बा,बाकी कवनो भाषा ना ।

◆ एसे कि हिंदी सबसे जादे साहित्य-संपन्न भाषा बा ?

प्रकाश उदय जी–ना,साहित्य के ममिला में एह देश के दूसर  कइक भाषा हिंदी से बीस परिहें स, उनइस त कम से कम नाहिंए  परिहें स।त का एसे कि हिंदी एह देश  के सबसे जादे जन आ जमीन के भाषा ह? ईहे रहित त हिंदी  अबले राष्ट्रभाषा बन गइल  रहित ।आखिर हमन के उत्तर प्रदेश, बिहार,मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, राजस्थान, दिल्ली वगैरह- वगैरह के मिला के एगो हतहत गो प्रदेश के ओकरा बसिन्दन के हिन्दी के हवाले क चुकल हुईं! एसे का भइल? बाकी देश हिंदी के एह विपुल-विराट जन-जमीन के रोब में आ गइल? मुकुट उतार के रख देलस चरन प कि सरकार आइए,राष्ट्रभाषा के पद पर बिराजिए…? ना भइल अइसन।उलुटे ई समझल गइल कि ई हिंदी वाला लोग जबर्दस्ती आपन भाषा  हमन प थोपल चाहत हउअन!
त तय बा कि जादे जन-जमीन के बले हिंदी के आपन हक नइखे मिले वाला ।ई जे भोजपुरी वाला लोग, ब्रजभाषा वाला लोग, छत्तीसगढ़ी वाला लोग आपन- आपन इलाका हिंदी के नाँवे क देल, एह आशा में कि एसे हिंदी राष्ट्रभाषा बन पाई,तवन त भइल ना,उलुटे एने आपन इलाका छूट गइल, ओने हिंदी प प्रादेशिक भइला के दाग लाग गइल ।पहिले ना बुझाइल त ना बुझाइल, अब त बुझा जाय के चाहीं कि एक्के खासियत बा हिंदी  में, जवना के नाते ऊ,आ एकमात्र ऊहे एह देश के राष्ट्रभाषा के काबिल बा, लायक बा,आ बड़लो बा …लगभग ।ऊ खासियत ई कि एकमात्र ऊहे अइसन भाषा बा जवन कवनो- कवनो जनपद के नइखे, कवनो प्रदेश के नइखे, आ एही नाते, ऊ हर जनपद के, हर प्रदेश के आ देश भर के भाषा बने के काबिल बा ।ई कबिलाँव देश के दोसरा कवनो भाषा में  नइखे, एह से दोसर कवनो भाषा के विकास से,मान से,मान्यता से हिंदी के कमजोर भइले के दूर-दूर तक कवनो अनेसा नइखे ।उलुटे एह देश के हर भाषा के बल हिंदी खातिर बल-बढ़ावन बा, हिंदी के बल देश के हर भाषा खातिर बल-बढ़ावन बा ।एह बात के विद्वान लोग भले देर से समझी,आ नेता- परेता लोग त शायदे समझी,बाकिर जे ‘बाहुबली ‘ के हिन्दियो में बनावत बा, ऊ खूब समझत बा । खूब समझत बाटन देश के दोसर-दोसर भाषा के ऊ सब लेखकगण जिनिका देश के विराट पाठक वर्ग तक पहुँचे खातिर अपना रचना के हिन्दी अनुवाद के साध आ इन्तजार बा।ईहो ना कि एह भाषान्तर से जवन परापत बा तवना में हिंदी  के कवनो हिस्सेदारिए ना होखे ।लेन-देन दुन्नो में ,दुन्नो के साझेदारी  बा,दुन्नो के कुछ लगना बा,दुन्नो के कुछ पावना बा ,बाकिर कवनो प्रादेशिक भा क्षेत्रीय भाषा के रचना के राष्ट्रीय फलक प ले आवे के जिम्मेदारी त जाहिर बा कि हिंदी के बा आ हिंदिए के बा ।
राष्ट्रभाषा के रूप में अघोषित रह गइला के बावजूद राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के ई जवन भूमिका बा तवना के आठवीं अनुसूची में शामिल कवनो भाषा— चाहे ऊ तमिल होखे, तेलुगु, बंगला,मलयालम भा मैथिली भा कवनो—कवनो चुनौती दे सकेला का? कबो देले बा? अगर ना,त भाई, भोजपुरी के पासे अइसन कवन  बान-मूठ-मन्तर बा कि मान्यता मिलतेमातर ऊ हिंदी के सोझा चुनौती बन के खड़ा हो जाई?!जेकरा अइसन कवनो अनेसा बा ओकरा कामे आवे लायक, भोजपुरी में एगो कहाउत ह—‘आन्हर कुकुर बतासे भूँके…।’
ई जवन  भोजपुरी के नाम प कँउच-कँउच के छँउके आ छँउक-छँउक के कँउचे वाला बिदमान-बिरादरी बा तवन हिंदी-हितैषी के खोल ओढ़ के कइसे हिंदी के ऐसी-तैसी करे प परल बा ईहो जाने के चाहीं ।एकरा खातिर एह भोजपुरिया इलाका के नातिदूर भाषाई इतिहास के एगो हलुकाहे चिरइयातकान काफी होई…।
आजादी के लड़ाई के संभावित भाषा-शस्त्र के रूप में जवना  हिंदी के पहचान गुजराती के गांधी जी, बंगला के सुभाष बाबू जइसन  इतिहास-पुरुष लोग कइल,ओकरा के रचे-रचावे के, देश के माटी-पानी में रसे-रसावे के आ ओकर बगटुट बढ़न्ती के बेंवत-ब्यवस्था ओइसने एगो इतिहास-पुरुष भोजपुरी के भारतेन्दु बाबू पहिलहीं बना चुकल रहन—ई कवनो कहे-बतावे के बात नइखे रह गइल।एह अभियान में प्रेमचंद-प्रसाद मतिन जाने कतने भोजपुरिया भाइन के अप्रतिम योग के दोहरवलो के कवनो जरूरत नइखे जनात, बाकिर …।एह योगदान, आ बेशक भोजपुरिए के ना,बैसवाड़ी के निराला जी आ मराठी के मुक्तिबोध आ मैथिली के नागार्जुन आ अवधी के त्रिलोचन आ तमाम-तमाम भाषा-बोलिन के तमाम-तमाम लिखवइयन के योगदान के चलते हिंदी के जवन एगो अखिल भारतीय पहचान आ चरित्र बनल ,हिंदी के एह प्रायः समस्त बहुभाषी  देश के एक स्वर में संबोधे के जवन ताकत मिलल तवनो के दोहरवला के कवनो जरूरत नइखे, बाकिर…।
बाकिर ,ई जवन ‘बाकिर ‘ बा तवना प एक नजर, फिलहाल ,जरूरी से तनी जादे जरूरी  जान के …।  ई बाकिर जवन भइल तवन एसे कि भोजपुरी के आ हिंदी के कहल जाय वाली अउरियो अउरी बोली-भाषा के भाई जी लोग हिन्द-हित सोच के, हिंदी के आपन ‘बनावे’ के अपना अति उत्साह में   ‘ उमगि अनुरागा ‘ हिंदी के आपन ‘बतावे’ के जोश में आ गइल ।ई बिना अपना भोजपुरी के लुकववले संभव ना रहे, त ऊ लोग लुकवावे में लाग गइल ।जन-जमीन दूनो से हिंदी के घर भर देबे के परम पवित्र सदुद्देश्य से भोजपुरिए ना,लगभग सब-सब अवधी-ब्रजभाषी इत्यादि  जन हिंदी के आपन मातृभाषा बतावे प उतर अइले।भगवान के दया,भगवान के माया कि जवन चाहल लोग तवन भइबो कइल, शेष भारत मानियो गइल कि हँ, हिन्दिए एह लोग के आपन भाषा ह,कि ईहे लोग हिंदीवाला लोग ह,एही लोग के जमीन हिंदी के जमीन ह ।जब ई मान लेल गइल त ईहो मना गइल, आपरूप, कि भारत के बाकी लोग के  हिंदी  ना ह , बाकी लोग हिंदीवाला ना ह ,बाकी लोग के जमीन हिंदी के जमीन ना ह । ए तरे, जवन हिन्दी देश भर के रहे ,आ जवना हिंदी के  देश भर के होखे के रहे, तवन एगो  प्रदेश के, बेशक बहुत बड़हन प्रदेश के, होके रह गइल ।जवना हिंदी के देश भर के ‘एक भाषा-बल’ बने के रहे ओही हिंदी के नाम प  छ -सात गो प्रदेशन के एकवटला के चलते, ऊहे हिंदी  (हाय हो राम!)शेष भारत के, सुने में  आवेला कि,भाषिक अल्पसंख्यकपन के भय से भर देलस।
अइसना में, टुक रुक के सोचे के चाहीं जरूर कि हिंदी के अपना अतिशय प्रेम में लभेर के हमन के ओकर का सँवरलीं,का बिगड़लीं!  कि कहीं रछेया में हतेया त ना हो  गइल!कि कहीं होम करत हाथ त ना जरा लिहलीं जा! कि कहीं अइसन त ना भइल कि कोंख भरावे गइलीं, मँगियो गँवा अइलीं! जवन हिन्दी  आजादी के लड़ाई में देश भर के एक करे के अपना बेंवत से अंग्रेजन के हिला देलस,माटी मिला देलस, तवने हिंदी अपने देश में कुछ लोग खातिर डेरवावन हो गइल, अतना  डेरवावन कि ओह हिंदी के विरोध में केहू-केहू अपना प किरासन उझिल के जर-मरे तक खातिर तइयार हो गइल—त सोचे के चाहीं कि एह में हिंदी के लेके  हमन के जवन एगो अधिका खरखाही देखावे के लत-लुफुत बा, तवना के हाथ त नइखे! (हंसके) सुमन जी ! हमके लगत ह , कुछ ढेरे बोलत जात हईं …।

◆  ना ..ना एकदम ढेर ना बोलत हईं ।अब हिन्दी के दसा-दुर्दसा प हिन्दी क मास्टर ना बोलिहन त के बोली …।

प्रकाश उदय जी— हमार कहे क मतलब ह कि ई जे हमहन के ‘ हमरे हिंदी ‘ आ ‘ हिंदिए हमार ‘ वाला झूठाधारित आत्मघाती खरखाही बा ऊ हिंदी के जतना बिगाड़ चुकल ओ से जादे मत बिगड़े पावे—एकर जतन जहाँ से, जेकरा से,जइसे बने,जतना ,ओतना त करहीं के  चाहीं ।जवन सत्य बा,जवना सत्य के दिनकर जी ‘ संस्कृति के चार अध्याय ‘ में हिंदी के अखिल भारतीय स्वीकृति के असली वजह बतवले तवन  ईहे ह कि हिंदी एह देश में कहीं के,केहू के मातृभाषा ना ह,निजभाषा ना ह,पहिलकी भाषा ना—आ एही सत्य के सँकरले,आ सँकरववले देश भर के दुसरकी भाषा भइले के जवन हक बा हिंदी के, तवन ओकरा मिल पाई आ तवना के कबिलाँव के ऊ अरज। पाई,अंगेज पाई।ई त भइल हिंदी के बात , अब तनिक ‘ हमहन के हिंदी ‘ के बात ।बड़ गड़बड़ ई भइल कि देश भर के सामने हिंदी के आपन मातृभाषा भइला के झूठ परोसत-परोसत हमन के अपनो मन में बहुत भितरी पइठ के ई बात बइठ गइल  कि हिन्दिए हमन के मातृभाषा ह।अब जब हिंदी मातृभाषा हो गइल त ईहो होत देरी ना लागल कि ओकरा के सीखे के जरूरत नइखे, ऊ हमन के  अइबे करेला । हिंदी सचहूँ रहित मातृभाषा, त चल-बन जाइत,काहे कि दुनिया भर में अगर कवनो अइसन भाषा बा जवन बिना सिखले आवेला त ऊ ह मातृभाषा, एकमात्र ।दोसर कवनो भाषा बिना सिखले आइए ना सके ।नतीजा ई भइल कि जवना के बड़ा गरब-गुमान से हिंदी-क्षेत्र कहल जाला तवना के हिंदी सबसे चउपट ।ना विश्वास होखे त कवनो हिंदी-भाषी इलाका  के बीए-एम्मे के हिंदी विषय के इन्तिहान के कापी उठा के देख लीं,सै में से सत्तर में जवन हिन्दी  लिखल मिली ओकर कवनो माने-मतलब निकल जाय त जे कहीं से।ईहो तय बा कि दुसरकी भाषा ठीक से तब्बे सीखल जा सकेला जब ओकरा के सीखे में अपना पहिलकी भाषा, अपना मातृभाषा के लगावल जाय। एह हिन्दी के कहाय वाला इलाका में हिंदी सीखे में अपना मातृभाषा के इस्तेमाल के शायदे कहीं कवनो परिपाटी बचल होखे । अबकी बे 10-12 के रिजल्ट आइल त पता  चलल कि सबसे कम नम्बर हिंदी   में आइल बा ।विडम्बना ई कि एह बात के लेके मीडिया जवन विलाप-धुन बजवलस तवनो में ईहे रहे कि हाय राम, मातृभाषा के  ज्ञान में हमारे बच्चों का यह हाल! हिन्दिए के मातृभाषा मान लेल जाई  ,ओकरा के सीखे से किनारा क लियाई आ जवन सीखल जाई तवनो में अपना सचहूँ के मातृभाषा के कवनो इस्तेमाल ना रह जाई त लइका सब जवन नम्बर पवले तवनो उन्हनी के बहादुरिए कहाई ।
त एक तरफ त ई बिना सीखल हिंदी, दूसर तरफ ऊ अंग्रेजी जवना के सीखे में जीव-जान लगा  दियाला।तवना के बाद लोग तरजुई के एक पल्ला प अपना अनसीखल हिंदी के रखेला,  दुसरका प खून सुखा-सुखा के सीखल अंग्रेजी के रखेला आ धधा-धधा के बतावे लागेला कि ई हिंदी त बहुते लद्धड़ भाषा है जी!ई ना कि ‘हमार हिंदी’ , सीधे-सीधे ‘हिंदी’ !
जे भोजपुरी के बात प तड़कल-भड़कल करेला ऊ जाने-अनजाने एही मरल मानसिकता के मददगार होला ।भोजपुरी अलोत रही आ हिंदिए के मातृभाषा मनात रही,ओकरा के सीखे से असहीं परहेज कइल जात रही त अंग्रेजी के असहीं कपार प चढ़ के निपटान करे से केहू रोक ना पाई।
हमरा त एहू से जादे डर एकर बा कि अब्बो से अगर भारतेन्दु बाबू के एह चेतावनी प ध्यान ना दिहल गइल कि “निजभाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल ” त ऊ दिन दूर नइखे जब भाषा नाम के कवनो बतुस हमहन के लग रहिए ना जाई ।अबहिंए देख लीं, का बा भाषा के नाम प हमन के पास! एगो भोजपुरी जवना के भुला जाय के हमन ठान के बइठल हईं, जवना में बोललो-बतियावल हमन बदे भारी लाज के बात ; एगो अनसीखल हिंदी आ एगो, एही अनसीखल हिंदी के दम प अधसीखल अंग्रेजी आ कुलमिला के एह तीनो के मेरवन से बनल एगो खिचड़ी भाषा, कामचलाऊ भाषा, जवना के बले हमन ले-दे के बस एगो कामचलाऊ किसिम के मनई—कामचलाऊ किसिम के  महटर,कामचलाऊ किसिम के विद्यार्थी, कामचलाऊ किसिम के ईमानदार आ अगर  बेइमानो त कामचलाऊ किसिम के! एगो अइसन मनई जे चुप रहे के जगहा प चिकरे लागेला, चिकरे के जगहा  प चुप्पी लगा लेला!
एकरा पहिले कि कमल के कुल्हि फूल कुम्हिला जाय,पोखरा के पानी बदल देल जाय,कोशिश त कम से कम कइले जाय कि हिंदी हमन के सीखे के भाषा बनल रहे,दुनिया-जहान जाने जे हिंदी के हमहन राष्ट्रभाषा के रूप में आगे करत बाटीं त कवनो आपन भाषा के आगे नाइँ करत बाटीं, एगो दूसर भाषा के आगे करत बाटीं, कि हमहन क आपन भाषा त कवनो दूसर हौ ; ऊ भोजपुरी हौ,मेवाती हौ,मालवी हौ…। हमन के एह साँच बात के लोग साँच माने,एकरे बदे जरूरी हौ कि हमन के मातृभाषा लोगन के लउके ।कइसे लउकी? बोलले।बतियवले ।लिखले ।पढ़ले ।आ बेशक आठवीं अनुसूची में पठवले ।एह पठावे खातिर अपना तरफ से कुछ उठा ना रखले…आ जे एकर विरोध करे ओकरा से जम के जुझले।
◆ अब तक के रचनात्मक यात्रा से केतना संतुष्ट हईं, का कवनों अइसन रचना ह जेके लिख के आपके लगल कि ऊ आपके जीवन क उपलब्धि ह ?

प्रकाश उदय जी — ई सवाल हमरा प हमरा उमेद से कुछ अधिका भारी बा। यात्रा तक त ठीक बा,आखिर जियलको के जीवन-यात्रा कहे के चलन चलले चलल आवत बा,बाकिर ‘ रचनात्मक यात्रा ‘ ?! हम कवनो रचनात्मक यात्रा में बाटीं—हमके त ई  सोचहूँ के साहस नाइँ होत,संतोष-असंतोष के बात त बहुत दूर! एक झोंक में  ई जरूर कह गुजरे के मन—मतलब एकर चाहे जवन निकले—कि हम का देबे पाइब अपना कवनो रचना के, रचनवे दे जालन स जब-ना-तब-कुछ-ना-कुछ …आ बेशक, कबो-कबो संतोषो!

◆  ई कहल जाला कि कवि -कलाकार कालजयी होलन।भविष्य-द्रष्टा होलन, ऐसे हम पूछल-जानल चाहत हईं कि आपके भोजपुरी क भविष्य कइसन देखाला ?हालाँकि एह विषय प आप पहीलहीं बहुत विस्तार से चर्चा कइलीं ह फिर भी जदि कुछ अउर बतावल चाहीं त …।

प्रकाश उदय जी– कहल त जाला ।होइबो करेले कुछ कवि,कुछ कलाकार कालजयी , बाकिर कालजयी होखे खातिर केहू कवि भइल होखे  , कलाकार भइल होखे—अइसन सुने में ना आवे ।भविष्य केहू-केहू के जना जरूर जाला बाकिर हमरा जनाला कि जे भविष्य के जानल चाहेला कम-से-कम ओकरा त ऊ नाहिंए जनाय ।एगो मजगर बात ई कि भविष्य-द्रष्टा भाई जवना घरी-पहर में भविष्य-द्रष्टा होले तवना घरी-पहर में केहू ना जाने कि ऊ भविष्य-द्रष्टा हवे,जब अपने अतीत में चल जाले आ उनुकर देखल भविष्य वर्तमान में आ जाला, तबे पता चल पावेला कि भाई जी जवन  रहन तवन भविष्य-द्रष्टा रहन।
त अतना धिरजा त हमरा में—ना रे… ना रे…ना रे ना रे ना…।तब्बो अतना तय बा कि जवना भोजपुरी के वर्तमान में हम आ आप आ (बाकी  मित्र लोग कोहांय मत,ई सोच के) ऊ ऊ ऊ—ओह भोजपुरी के भविष्य के लेके चिन्ता नाॅट फिकिर नास्ति …।

◆  आपके लाजवाब वाचिक शैली से त हमहन क परिचित हईये हईं जा बाकिर प्रकाशित संग्रह भा किताब से अबहीं परिचय ना भइल ह,हो सकत ह इ हमार अग्यानता भी हो पर निहोरा ह कि एके मात्र जिग्यासा के तौर पर आप देखब ।

प्रकाश उदय जी —  प्रकाशित त बा।जहाँ-तहाँ,जब-तब,जवन-तवन,जइसे-तइसे । कुछ किताबो बा, सहसंपादित टाइप के ।30-32 साल पहिले कविता के एगो किताबो छपल रहे, छपल ना रहे,छपवावल रहे।नाम रहे ‘बेटी मरे त मरे कुँआर ‘।भोजपुरी के एगो शब्द ह ‘बरतुहारी’।वर(दुलहा) नामक पदार्थ के संधान के बरतुहारी कहल जाला ।बड़ लोग के साथे एही बरतुहारी में घूम-टहर के पावल कुछ तींत-तीकछ अनुभवन के समेट के व्यंग्य कवितन के संग्रह रहे।तनी बचकस त रहे,कुछ  कचतुरुस , कुछ भर्तियो के रचना रहे  ,बाकिर कुल मिला के  ठीकेठाक रहे ।कुछ रोचक प्रसंग जुड़ल ओह किताब के साथे, ओकर चर्चा कब्बो बाद में ,बाकिर ई बतावत तनी नीक लागेला कि ओह किताब के भूमिका खुद बाबू  लोहा सिंह—रामेश्वर सिंह काश्यप—लिखले रहन।
फिलहाल कहे के अतनवे बा कि छपे-छपावे के एगो जवन सवख होला तवन अतना लइकाईं में पूरा हो गइल कि बुढ़ारी आ गइल, बाकिर फेरु से अबले ऊ जागल ना।
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  • डॉ सुमन सिंह

वाराणसी

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