भोजपुरी गीतन में होली वर्णन

भोजपुरिया धरती उत्सवधर्मी  धरती ह। भोजपुरिया लोकजीवन मुख्य रूप से खेती-किसानी पर आधारित बाटे ना, त मेहनत मजदूरी पर। भोजपुरिया लोकजीवन के हर एक परब त्योहार कृषि से जुड़ल बाटे। एह त्योहारन में होली-फगुआ के त कहहीं के का बा?घर के कोठिला में घान-चाउर भरल रहेला, बघार में गेहूँ गदरात रहेला,आम-महुआ मोजरात रहेला आ सरसो पिअर रंग फुलाए लागेला,त समझीं बसंत आ गइल बा। किसान-मजदूर देख-देख हरखित होला आ बसंत पंचमी से शुरू होखे वाला होरी के उत्सव अबीर खेल के शुरू करेला आ लगभग चालीस दिन तक एह त्योहार आ उत्सव के होरी-फगुआ गा के मनावत रहेला। जब बघार में गेहूँ सोना अस पिअराये लागेला,तब होलिका दहन खातिर सम्बत फूंकत, अगजा करत,धुरखेल करत रंग उड़ावेला, होरी, धमार, जोगिरा, कबीर गावत अपना उमंग उछाह के प्रकट करेला। आ तब जाके एह त्योहार के विराम दिआला।

ढ़ोल झाल-डफ-मजीरा के ताल पर गावल जाय वाला होरी गीतन के आपन अलग लोक लय बा। गीत सुनते केहू कह-बता सकत बा कि ई होरी गवाता, फगुआ गवाता। रोज रात के चउपाल में भा कवनो सार्वजनिक स्थान पर फगुआ के गीत गूंजेला। अगजा के दिन ओही जगह पर फगुआ गवाला जहवाँ होलिका दहन कइल जाला। फगुआ के दिन सबेरे अगजा के जगह से धूर आ अगजा के राख़ उड़ावत राहे-राहे फगुआ-जोगिरा-कबीर गावे के प्रचलन रहल बा। साँझ के माई स्थान, ब्रह्म स्थान चाहे मंदिर से फगुआ गावल जात रहल ह आ रंग-अबीर उड़ावत दुअरे-दुअरे गवात रहल ह। धीरे-धीरे ई प्रचलन खतम भइल जा रहल बा। अधरतिया ले आखिरी घर तक फगुआ गाके चैता गावल जात रहल ह, तब जाके ई त्योहार पूरा होत रहल ह।

होरी गीतन में  निरगुन-सगुन, शैव-वैष्णव-शाक्त सबका भावना के आदर करत सबके सुमिरन त कइलहीं जाला, शिव-पार्वती,चारो भाई राम आ सीता आउर कृष्ण-गोपी के होली खेलला के वर्णन वाला गीत गा के पौराणिक प्रसंगन के स्मरण कइल जाला। होरी गीतन में इतिहास आउर राजनीतियो का प्रसंग पर गीत आधारित होला। बाक़िर होरी गीतन में स्रिंगार, हँसी,ठिठोली आ मधुर संबंधन के व्यक्त करे वाला गीतन के संख्या बेसी बाटे। बहुत गीत अश्लीलों बाड़न स। हलांकि होली के त्योहार अइसन बा कि अश्लील गीतन के जरिये विकार बहरिया जाला आ मन निर्मल हो जाला।

लोक से लेके शास्त्र तक में होली के रंग मौजूद बा। संत कवियन से लेके आधुनिक कवियन के रचना तक में होली के ई रंग मिलेला। जोगिरा आ कबीर में हास्य-व्यंग के प्रधानता देखाई पड़ेला। होली गीतन में समाज के मस्ती का अभिव्यक्ति मिलेला।

होली का गीतन के रस परम ब्रह्म के गीतन से प्रवाहित भइल शुरू होला। फगुआ गावे वाला एह त्योहार में ब्रह्मा के सहायता मांगत गावेला-

बरहमा होखीं ना सहाय

एही जगहिया के बरहमा

सीवान जिला के मैरवा नामक जगह पर ब्रह्म के स्थान बा, उनकर सुमिरन दोसरो जिला के लोग करेला-

हरिराम ब्रह्म रउरा पइयाँ पड़ीं

हो मैरवा में धूम मचे।

अइसहीं आदि शक्ति भवानियों के सुमिरन कइल जाला-

हम अइनी तोहरी सरनियाँ हो माता

मोरी पत राखs हे जगदंबा

इज्जत-हुरमत राखे खातिर गोहरावत आदि शक्ति से आन्हर खातिर आँख,कोढ़ियन खातिर काया आ बाझिन औरत खातिर लइका के मांग कइल जाला-

अन्हरा के आँखि, कोढ़िया के काया

बाझिन के पूत दीहs महामाया

अब देखी कि शंकर भगवान के दरबार में होरी के धूम मचल बाटे-

शिवशंकर के दरबार

होरी धूम मची हो

शिव बाबा के देवल पर फागुन में अबीर उड़ रहल बा-

 

हे सिव रउरा देवल में

फागुन के उड़त अबीर

डमरू बजा-बजा शिवशंकर सती के संगे फगुआखेल रहल बाड़ें। उनकर सवारी बैल नाच रहल बा-

सिव-सती खेले फाग,आहो लाला

नाचत बएल, बजावत डमरू

सिव-सती खेले फाग

बनारस के होली बड़ा मशहूर ह। इहाँ का होली के आपन मस्ती बा। बाबा बिश्वनाथ इहाँ निवास करेलें। ऊ इहाँ अइसन ढंग से होली खेलत बाड़न कि कैलास लागे लागल बा-

होली खेले बिसेसर नाथ

कासीपुरी कैलास बने।

बनारस के गलियन में सिव हँस-हँस के होरी खेलत बाड़न आ साथे भैरव आ आउर गन लोग बाड़ें-

हँसि-हँसि सिव खेले होरी

ऐसो विदित बनारस के खोरी

भैरव आदि सकल गन मिली के

अबीर लिए भर झोरी

अब रघुबंसी राम के होली बरनन देखिन। ऊ अवतारी रूप ना, एगो साधारण मनई के रूप में देखावल गइल बाड़ें। ई लोक के शक्ति आ श्रद्धा बा कि ऊ अवतारियो व्यक्तित्व के अपना अइसन समझेला। संत लक्ष्मी सखी लिखल गावल गीत देखीं-

होरी खेलत अवध रघुबीरा

काया अवध सरजू नदी तीरा, जहां संतन के भीरा

हाथु पिचकारी माथे सोभे चीरा

संग सखा लिए ढाल मजीरा

उठत गह-गह गगन गम्हीरा

सुनि-सुनि संत भए धीरा

चलु सखि, चलु जे मेटेला भवपीरा

देख-देख दसरथ बीरा

राम जी चारो भाई सरजू  के तीर पर होरी खेलत बाड़ें। गीत देखीं-

सर जुग का तीर

होरिया खेलें चारो भइया

रस रंगन धूम मचाये रसिया

राम जी होली के अवसर पर अपना ससुरारी जनकपुर में बाड़न। फेर कबों उनका आवे के मोका मिली कि ना, एही से घोषणा हो रहल बा-

खेलहु रंग बना इ के हो

फेरु नाही राम जनकपुर अइहें।

राम जी के पगिया रंगा द सइयाँ

फेरु नाही राम जनकपुर अइहें।

ब्रज के होली के आपन रंग बा। बृजनन्दन कृष्ण उनका सखा-सहेली गोप-गोपियन के होली त विश्व प्रसिद्ध बा। कृष्ण आ गोपियन का बीच के मधुर संबंध के पता एह गीत से चल रहल बा-

भींजे हमरी चुनरी हो नंदलाला

डारहु केसर पिचकारी जनि हाँ हाँ मदन गोपाला

भींजल बसन, उघारो अंग अंग बड़ निरलज ई लाला

रसिक बिहारी छैल मनमाना बढि गयो मोर जंजाला

गोपी कृष्ण से गोहार लगा रहल बाड़ी-

लाख रूपइया साड़ी ओ लंहगा

साड़ियो लहंगवा रंगवा में

जनि बोर हो कन्हैया।

कन्हैया गोपी के कलाई पकड़ के रंग लगावे के चाहत बाड़न। पातर चूड़ी टूटला का डर से ऊ गा उठत बाड़ी-

पतरी चूरी हो कन्हैया

बहियाँ जनि मोरs

कान्हा अइसन पकिया रंग बृजवासिन पर डलले बाड़न, जवन  छोड़वले छूटे के नइखे, एही से उनका मीठ-मीठ गरियो सुने के मिलत बा-

कवना रंगवा में बोरले कन्हइया

लाखन गारी होला बिरिज में

रंग खेलत-खेलत कन्हइया राधा के मंडप में पहुँच गइल बाड़न। सखी लोग राधा से रंग अबीर तइयार करे के विनती कर रहल बा-

राधे घोरs ना अबीर

माँड़ो में अइलें कन्हइया

बृज के होरी के त बाते का बा? रंग-अबीर-गुलाल  के बेसी ख़रच त एही जगही होला-

जहां होला अबीरन मारि

बिरज में भूलि गए नंदलाल

नौ मन रोरी घोरी बिरज में

दस मन उड़त गुलाल

अब होरी गीत में कुछ इतिहास के बात देखीं। गुलामी के दौरान आजादी आ उन्नति खातिर आम जनता का एकता के जरूरत बुझाइल, जवन होरी गीत में अभिव्यक्त भइल। आजों एह एकता के जरूरत बुझा रहल बा-

खेलहु सभ मिली भाई

नीच-ऊंच अउर भेद भाव के

देहु आज भुलाई

बैर कपट छल त्याग हिया से

फूट के फूट हटाई

द्वेष के दूर भगाई

गुलामी के दौरान देह मुरुछा में रहे। जान जाये के नौबत बनल रहे, ओइसे में भला होरी खेले के मन कर सकत बा-

भारत दुखित होई नटवर से विनय करे करजोरी

धावहु नाथ बचावहु अब त होली में जान गयो री

फाग अस नाहि खेलो री।

जब 1857 ई0 में कुँवर सिंह अंग्रेजन के आरा में परास्त कइलन त धूम-धाम से होली मनावल गइल-

बाबू कुँवर सिंह तेगवा बहादुर

बंगला पर उड़ेला अबीर

आहों लाला बंगला प उड़ेला अबीर

चंपारण के इलाका में अंग्रेज़ लोग किसान लोग खातिर नील के खेती करे खातिर कानून पास कइले रहे। एह बात के होरी गीत में उठावल गइल बा-

मोरा पिछुअरवा लीलवा के खेतवा

बलमुआ  हो, लील रंग चुनरी रंगा दs

लीलवा के चुनरी के जाड़ो  नाहि गइले

बलमुआ  हो, सलवा दोसलवा ओढ़ा दs

बाक़िर, नील रंग में चुनरी रंगावल जनता का नीक नइखे लागत, एह से आजादी दिआवे वाला देशप्रेमी रंगरेज के खोज काइल जा रहल बा-

मोर बलमुआ  हो,  लीलवा चुनरी रंगावे

लील में के चुनरी मोरा मन नाही भावे

सइयाँ हो पटना से रंगरेजवा बोला दs

पौराणिक-ऐतिहासिक होरी गीतन के अलावे रूप-सिंगार, ननद-भौजाई आ देवर-भौजाई के हँसी ठिठोली वाला होरी-फगुआ के संख्या हजारन में बा। एकर प्रचुरता बा-

गोरी के काजर लागल आँख के बड़का फाँक लोग के आँख में अंटकत बा –

हे गोरी तोहार बड़ी-बड़ी अँखिया

नैना कजरवा सोभेला

गोरी के केश लाम-लाम बा, बिना ककही कइसे झराई , बालम ककही नइखे ले आइल –

ककही ना लइलs हो बालम

कइसे झाड़ी लामी केश

अब देखीं भउजाई कइसे ननद से ठिठोली करत बाड़ी –

होली खेलन अइहें मोर ननदोइया

केसिया सँवार जुड़वा बान्ह हे ननदिया

आवत होइहें घरवा मोर ननदोइया

अब लहुरा देवर के देख के तनि भउजाई के क्रिया कलाप देखीं-

देवरा के देखते अंगनवा हो

झमकि भउजो बान्हे चोली बनवा

भोजपुरी के आधुनिकों साहित्यकार लोग बसंत आ होरी पर कलम चलवले बा। दू-तीन गो उदाहरण देखल जा सकत बा-

रंग के त्योहार में भोलानाथ गहमरी का सब कुछ रंगाइल देखल जा सकत बा-

पोर-पोर मन सहज रंगाइल

जागल हिया उमंग में

ओठन से ओठन के लाली

लसे लिपटि के अंक में

छंद-छंद लय-ताल पर गूंजल गीत सिंगार के

फगुआ गवला के जरूरत पर अविनाश चंद्र विद्यार्थी जी लिखले बानी –

फगुआ गा के गतर गतर के कठरल रग गरमावs

ढोलक झाल मजीरा जवरे तन मन मस्त बतावs

नगर में धूम मचाव

फागुन का दिन के पता गंगा प्रसाद ‘अरुण’ का कइसे लागल देखीं-

मन मातल मदमस्त भइल, मधुआइल हो

अइसन लागत बा फिर फागुन आइल हो

एह प्रकार से पता चालत बा कि भोजपुरी गीतन में हर तरह के रंग उड़त-छिटांत  दिखाई पड़त बा, मस्ती देखाई पड़त बा, सामाजिक चिंतन देखाई पड़त ह।

 

  • डॉ ब्रज भूषण मिश्र

मुजफ्फरपुर

 

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