पंछी उड़त गगन छिछिआए

पंछी उड़त गगन छिछिआये।

 

अइसन उठल बवण्डर-अंधर

जाना कहाँ,कहाँ चलि जाय।

पंछी उड़त गगन छिछिआये॥

 

तनिक हवा के दया न आइल

टूट-टूट खोंता उधिआइल

टूटल डाढ़ बसेरा उजड़ल

ना निशान कुछ जगह चिन्हाए

पंछी उड़त गगन छिछिआये॥

 

नीड़ गिरल कुछ नदी नीर में

ताल-तलइया नहर-झील में

भुंइ भूखे कुछ मरे डूब जल

पर बिनु बचवन उड़ ना पाये।

पंछी उड़त गगन छिछिआये॥

 

छींटल दाना जाल बिछल बा

का उतरे चिड़िमार छिपल बा

बिमल सोत लउके ना कतहूँ

का पंछी ऊ प्यास मिटाये।

पंछी उड़त गगन छिछिआये॥

 

थाके पंखिया, ताके भुंइया,

दिखे दूर कुछ गछिया ठइया

जा न सके पर काँपे भूखे ,

गिरि नीचे तड़पत मरि जाये

पंछी उड़त गगन छिछिआये॥

 

चहक-महक ना मिटे गीत ऊ,

बोल अमर नभ में रहि जाये

भरे नयन सभ देख-देख के,

पंछी, जग किस्सा बनि जाये।

पंछी उड़त गगन छिछिआये॥

 

 

  • स्व0 अनिरुद्ध

मुजफ्फरपुर (बिहार)

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