मई में माई चल गइल

“डभकेला मन के सपन,

माई पसवे लोर ।

आस सेराइल जा रहल

दुख के ओर न छोर।।”(सुकुपा)

 

‘मातृदिवस’ के  छव दिन पहिलहीं एह साल  3 मई के माई विदा ले लिहलस।जब से एह दिवस विशेष के प्रचलन भारतो में खूब बढ़ गइल , माई के फोटो हम  फेसबुक पर डालल शुरु कर दिहनीं ।एह मौका पर हम माई से जब कहीं कि “फलनवा तोरा के परनाम लिखले बाड़ें” तब  ऊ कहे कि “तूहूं हमरा ओरी से आसीरबाद लिख दs।सब बाबू आ बबुनी लोग हंसी-खुसी  से रहो,सभे फलल-फुलाइल रहो।”

अबकी माई नइखे,छव दिन पहिलहीं भगवान जी ओकर टिकस काटि के भेज दिहले। जाये के एकदिन पहिलहीं ‘वीडियोकाल’ पर बात कइले रहे।एह कठिन दौर में खूब बच के रहेके ताकीद कइले रहे।फगुआ में गांवे गइल रहे तs घूमि के पटना लवटआवे के कह के गइल रहे।भगवान के ओकर लवटल मंजूर ना रहे।हमनीं के सावधान करके अपने चलि गइल।राते भर में सब खेला हो गइल।बेमार त ऊ चार-पांच साल पहिलहीं से रहे बाकिर बीच- बीच में सम्हरत -उठत सगरी परब- त्योहार में सामिल, परनातियो के गोद में खेलावत ऊ विदा लिहलस।मलाल एतने रह गइल कि एह कोरोना -काल में जब पेट के रोग ओकर उपटल त मनमाफिक इलाज के सुविधा ओकरा ना मिल सकल। “भगवान अपना पर कबो ना नू लीले, कुछ ना कुछ कारन मनई पर मढ़िये दीले।”-ई माइये से सुनले रहनीं हमनीं, ई बात ओकरे संगे चरितार्थ हो गइल।

माई नइखे।माई बहुत पढ़लो लिखल ना रहे।बाकिर लइकाईं में टो-टाके लिखल गीत के ओकर कांपी हमनीं देखले रहनीं।बहुत बालपने में आपन बिआह के बात बतावे।इहो सुनावे कि जनमते कइसे ऊ अपना बपसी के छाया से वंचित हो गइल।ओकर सरजुग बाबा ओकरा के गोदी में खेलावत पोसलें रहनीं।

छोट कद-काठी के माई एतना मेहनती कि सबेरहीं बाबूजी के आफिस जाये खातिर नास्ता आ  दुपहरिया के टिफिन सब बना देव।कवनों बिआह- शादी भा जग-जुप घर में नधाव त 40-50आदमी के तs ऊ अकेले बना के खिआ देत रहे। “दाल भात आ एगो तरकारी बना दिहनीं हं बबुआ टाइम पर खाके निकलबs लोगिन त काम संसरी।हलुआई के हाथ के दिन में खात रहिह लोगिन।”-अइसन फुरती आज दुरलभ बा।

बाबूजी पर कबो-कबो  खिसिआव तs कहे-“हमरा के तनीं झकझोरीं मत,जिनिगी भर तानिये के चलल ठीक ना हs।लइकनो के बात समझे के चाहीं।” कवनो गलतियो पर अपना लइकन के तरफदारी ओकर सुभावे बन गइल रहे।बाकिर अस्थिरहा बताइयो देव कि बबुआ सबके मिलाके चले के चाहीं।

‘विद्या धन सबसे बड़ धन हs’-ई मंत्र हमनीं माइये से सिखनीं।सभकर सुनेके चाहीं आ सभके मिलाके चले के चाहीं-ई ओकर अइसन सलाह रहे जवना से आदिमी कवनों संकट से उबर जाला।

माई लकीर के फकीर कबो ना रहे।समय के साथे सबकुछ बदलेला,आदिमियो का बदले खातिर तइयार रहे के चाहीं।ई ओकर सबसे बड़ सीख रहे।

माई धार्मिक रहे बाकिर धर्मभीरु अचिको ना।पतोह लोग के पहिलके ‘तीज’ में समझा देले रहे कि सब बरत-तेवहार नीके देह-जांगर के चीज।देह में रोग लेले जबरदस्ती ब्रत भूखीं भा भूख के बेराम पड़ जाईं तs केतना मंहगा पड़ी।कवनो भगवान ना कहीले कि मरि-मरि के हमार भगती करिहs लोगिन।माई कहे कि ‘हरितालिका ब्रत’ के कथा में जवन कहल बा कि ब्रती अगर आपन उपास भंग करके पानी पी ली तs ऊ जोंक हो जाई आ दूध पी ली तs सांपिन -ई सब बतबनउवल हs।नीमन करम करी केहू त काहे सांपिन हो जाई?आ होइये जाई तs आदिमिये बन के जिनिगी भर पाथल कवनों जरूरी बा का?ऊ देवी-देवता सबके मानत रहे ,पूजा-पाठ सब करे बाकिर कहे कि जिनिगी के हर चीज तs अपना खुसिये खातिर नू आदमी करेला, फेर देह गलाके देह के सांसत में डालके घर भर के पेरल कवन बढ़ियां चीज हs?जिनिगी जीये के ओकर आपन ढंग रहे,आपन तरीका आ तर्क रहे।तन्तर- मंतर- जंतर में ओकर तनिको विस्वास ना रहे।ओकरे गुरुमंत्र रहे कि ना बाबूजी ना हमनीं कवनों भाई के अंगुरी में आज ले गरह- नछत्तर के कवनों अंगुठी ना पड़ल।ऊ कहे कि ए बाबू आतमबल सबसे जरुरी चीज हs। रतन भा पत्थर पेन्हला से तs मन में शुरुए में आउरो भय समा जाला।माई खातिर पूजा-पाठ साफ-सूथरा रहे के ,एक दोसरा से प्रेम करेके,सहयोग करे के,बढ़िया बचन बोले आ सुने के एगो व्यक्तिगत निष्ठा से जुड़ल भीतरी ज्ञानपरक  आ भावात्मक अइसन एगो प्रयास रहे जवना में सभकर कल्यान के कामना समाइल रहेला।

माई रहित तs आज फेर कहितीं -“आज ‘मदर्स डे’ हs रे माई।” माई धीरे से हंस दीत आ कहित- ‘ त जा मिठाई ले आके खा लs आ लइकनो के खिआ दs।” मिठाई हमरा से मंगाके लइकन के खियावे वाली इया एह साल नइखी रह गइल । हफ्ता भर पहिलहीं भगवान जी उनके अपना सरन में बोला लेले बाड़ें एह से लड़िकन के मुंह अबकी लटकले रह गैइल बा।

माई बहुत गुनी आ कलाकारो ना रहे बाकिर काम लायेक सगरी विद्या ओकरा लगे रहे।सिलाई मशीन पर कपड़ा के सिआई तs ऊ ना जाने बाकिर फाटल साड़ी के लेवा-लुगरी सी के खटिया नंगा ना रहे देत रहे।सब बिधि–बेवहार आ परब-तेवहार के गीत ओकरा इयाद रहे।ऊ चाहत रहे कि संझा-पराती आ बिआह-तिलक के सगरी पुरनका गीत पतोह लोग ओकरा से. सीख के रट जाव लोग भा लिख के रख लेव लोग ।बाकिर ऊ सगरी ज्ञान ओकरा साथहीं विदा ले लिहलन सं।

माई जांत चला लेव,ओखर में नवका धान के चिउरा कूट लेव,अदौरी-तिलौरी पार लेव,किसिम-किसिम के अचार घइला के घइला डाल लेव ,दउरी -मोना बीन लेव,तीन दिन में फूल सूइटर बीन के उतार देव,गांजी के गांजी कपड़ा फींच के सुखा देव-ई सब काम ऊ पूरा मनगर ढंग से करे।

गैस के चूल्हा जब गांवे आइयो गइल तबो ऊ लकड़िये आ सरसौटिये पर खाना बनावे।कहे कि गैस ले आसान हमरा मटिया के चूल्हवे बुझात बा।चूल्हा फूंकि-फूंकि खूब धुआं पियलस आ आंखि आ फेफड़ा गंवा बइठल। कार्डियक हार्टअरेस्ट से पटना में रहला के चलते ऊ बाचियो गइल तs बाद में जांच में  ई बात सामने आइल कि ई सी.ओ.पी.डी.के गम्हीराह मरीज हो गइल बिया।चौका-चूहानी से ऊ तब ले हाथ ना जोड़लस जाले ले एकदम अलचार ना हो गइल।

नान्ह कद आ हलुका देह के माई के फरहरी देखि के हित-पाहुन लोग चिहा जाव।

माई आज नइखे बाकिर मिहनत,साहस,संयम,सहयोग आ धीरज के जवन ऊ पाठ पढ़वलस,सादगी, उदार सोच आ परिवार के मान-मरजाद के खेयाल करिके जीवन जीये के जवन ऊ तरीका बतवलस , ऊहे आज कामे आ रहल बा।जे आइल बा ऊ तs चलिये नू जाई एक न एक दिन, बाकिर ओकर जीवन जब एगो नजीर बन जाव मनई के आपन  जिनिगी सजावे-सुधारे खातिर, तs अइसने इंसान बराबर खातिर पूजनीय हो जाला नयकी पीढ़ी खातिर।माई आज वंदनीय हो गइल बिया।

माई ! तू जग के पालनहार के लगे पहुंच गइल बाड़ू।हमनियो के पालत- पोसत रहिहs।गलती बतावत सही राह पर चले के प्रेरना देत रहिहs।दोसर हमनीं का कहीं?आज ‘मातृदिवस’ पर तहार पुण्यस्मरण करत आपन सरधा- सुमन हमनीं अर्पित कर रहल बानीं।

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  • डा.सुनील कुमार पाठक

आवास सं.-जी./3,आफिसर्स फ्लैट, न्यू पुनाईचक,

पटना-800023(बिहार)

 

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