धरती पर उतरल बिहान

बोलल चिरइया मड़इया का उपराँ सुनि सुनि उठलें किसान देखीं धीरे धीरे- धरती पर उतरल बिहान। पुरुवा पवनवाँ पोर पोर भीने बछरू बन्हल डिंड़िआय चमकत चनवाँ कहवाँ लुकइलें गइलीं तरइयो हेराय। मठ मन्दिर से भजनियाँ सुनाले रेडियो में जोर से अजान देखीं धीरे धीरे – धरती पर उतरल बिहान। बसिया परल रातरानी के महकिया पनघट के जल जोहे बाट पोखरा के भीटा बतिआवे डहरिया से हँसे लगे नदिया के घाट। हेंईं हेंईं धोवेला धोबिनियाँ के सजना साफ साफ लउके सिवान देखीं धीरे धीरे- धरती पर उतरल बिहान। सोनवाँ का पलकी…

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गजल

जिनिगी के जख्म, पीर, जमाना के घात बा हमरा गजल में आज के दुनिया के बात बा   कउअन के काँव-काँव बगइचा में भर गइल कोइल के कूक ना कबो कतहीं सुनात बा   अर्थी के साथ बाज रहल धुन बिआह के अब एह अनेति पर केहू कहँवाँ सिहात बा   भूखे टटात आदमी का आँख के जबान केहू से आज कहँवाँ, ए यारे, पढ़ात बा   संवेदना के लाश प कुर्सी के गोड़ बा मालूम ना, ई लोग का कइसे सहात बा   ‘भावुक’ ना बा हुनर कि लिखीं…

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