बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो

ठुनुक़त घरवाँ अंगनवाँ, बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो। अरे हो बिहँसत माई के परनवाँ, बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो।   मुँहवा लपेटले मखनवाँ बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो। अरे हो उचकि उतारत अयनवाँ, बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो।   हुलसत गरवा लगावेली अरे हो भरले लोरवा नयनवाँ , बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो।   रोआँ पुलकि जिया हरसेला अरे हो कुंहुकेला मन अस मयनवाँ, बबुनवाँ बड़ नीक लागे हो।।     जयशंकर प्रसाद द्विवेदी

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वसंत अइले नियरा

हरसेला हहरत हियरा हो रामा, वसंत अइले नियरा।। मन में मदन, तन ले ला अंगड़ाई, अलसी के फूल देख आलस पराई, पीपर-पात लागल तेज सरसे, अमवा मोजरीया से मकरंद बरसे, पिहू-पिहू गावेला पपीहरा हो रामा, वसंत अइले नियरा।। मटरा के छिमिया के बढ़ल रखवारी, गेहूँआ के पाँव भइल बलीया से भारी, नखरा नजर आवे नजरी के कोर में, मन करे हमहूँ बन्हाई प्रेम-डोर में, जोहेला जोगिनीया जियरा हो रामा, वसंत अइले नियरा।। पिया से पिरितिया के रीतिया निभाएब, कवनो बिपत आयी तबो मुस्कुराएब, पोरे-पोर रंग लेब नेहिया के रंग में,…

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सारधवा

मरछिया अपने त सात गो लइका के मार कै भइल रहै .. जनमते महतारी घुरा पर फेकवा दिहली ..कौदो दे कै किनली ..बड़ा टोटरम पर .मरछिया जिएल ..मरछिया धीरे-धीरे सेयान होखे लागल ..जवानी उफान मारत रहे ..”इजवानी केकरा कस  में बा ..मरछिया एकदम गोर भभुका रहे रहे ..आओठ लाल-लाल ..नकिया सुग्गा के ठोर अइसन चोख ..अँखियांमें बुझाए काजर कईल बा ..केसिया टेढ़ टैढ़ घुंघराला  बुझाए करिया घाटा ह..माने छाछाते देवी कै मूरत ..देह के उतार चढ़ाव गजब के .. चाल मस तानी ..चोटिया नागिन खनिया  अँखिया बुझाए दारु पियले बिया…

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मम्मी रे हमहूं इसकूल जाइब

मम्मी रे पापा से कह के ड्रेस एगो बनवा दे। हमहूं रोज इसकूल जाइब भइया के बतला दे। जूता मोजा कलम पेनसिल कापी किताब टाई। जेंटल मएन बनके जाइब जइसे जाला भाई। हरमेस हाथ पकड़ि के चलबि पीठ प लादि के बसता। इयाद पारि के रोजे रखिहे मम्मी ओ में नासता। मम्मी कान पकड़त बानी छोड़ देब सैतानी । सभ केहु के मान राखबि हम बोलबि गुर जस बानी। ना खाइब अब चिप्स कुरकुरा चाट अउरी समोसा। ए ममता के मूरत मम्मी अब त क ले भरोसा। सभ लइकन से…

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भोर हो गइल

खोल द दुआर, भोर हो गइल। किरिन उतर आइल, आ खिड़की के फाँक से धीरे से झाँक गइल, जइसे कुछ आँक गइल, भीतर से बन्द बा केंवाड़ी त बाहर के साँकल के पुरवाई झुन से बजा गइल, आँगन के हरसिंगार, दुउरा के महुआ जस, चू-चू के माटी पर अलपना सजा गइल, ललमुनियाँ चहक उठल, बंसी के तान थोर हो गइल।। रोज के उठवना जस, ऊठ, अब जाग त किरिन-किरिन जूड़ा में खोंस ल, झुनुक-झुनुक साँकल से पुरवाई बोलल जे, पायल में पोसल ; अँचरा से महुआ के गंध झरल हरसिंगार गंध…

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बसंत-फागुन

धुन से सुनगुन मिलल बा भँवरन के रंग सातों खिलल तितलियन के लौट आइल चहक, चिरइयन के! फिर बगइचन के मन, मोजरियाइल अउर फसलन के देह गदराइल बन हँसल नदिया के कछार हँसल दिन तनी, अउर तनी उजराइल कुनमुनाइल मिजाज मौसम के दिन फिरल खेत केम खरिहानन के! मन के गुदरा दे, ऊ नजर लउकल या नया साल के असर लउकल जइसे उभरल पियास अँखियन में वइसे मुस्कान ऊ रसगर लउकल ओने आइलबसन्त बन ठन के एने फागुन खनन खनन खनके! उनसे का बइठि के बतियाइबि हम पहिले रूसब आ…

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बड़हन बानर हिरोइनची

ओह घरी पश्चिमी बिहार में हिरोइनचिअन के आंतक बहुत बेसी हो गइल रहुए, जदि भुला के बल्टी, तसला, रसरी, कुरसी, टेबुल भा सइकिल घर के बहरी भा बिना ओहारे अंगना में छूट जाए त दस पनरह रोपया खातिर मारल मारल फीरत हिरोइनचिअन के लाटरी लगले जइसन खुशी मिलत रहे। कसहूं चोरा के बेच खोच के दस पनरह रोपया में हीरोइन पी के रात भर टुन्न रह$सन।   एगो साहूकार आ बाबाजी पड़ोस में रहत रहुअन जा ,साहूकार के पांच गो छौड़ी आ बाबा जी के दू गौ छौड़ा रहे। साहूकार…

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पान थूक के

पढ़े लिखे में जी ना लागे बनि के घुमत हवा नमुन्ना पिता जी पूछलन पूत से अपने रगड़त खैनी संगे चुन्ना।   तब बबुली झार अदा से अगबै पान थूक के बोलस मुन्ना सुना हे बाऊ नेता बनबै कइ देब दऊलत पल में दुन्ना।   का घबड़ाला झूठमूठ क अँगुरी पर बस दिनवा गीन्ना लड़ब बिधइकी जल्दी हनहुँ फिर बुझबा हम हई नगिन्ना।   जिला जवारी जानी हमके निक निक लोगवा छोड़ि पसिन्ना तोहरो नाम ऊँचाई छुई नाची सब डेहरी पर धिन्ना।   खड़ा सफारी दुअरे होई मनी महोत्सव साथ…

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नून-तेल-लकड़ी मे फंसि गइल जनता

नून-तेल-लकड़ी मे फंसि गइल जनता नाहीं त तखता पलटि देत जनता!   ओके लगेला की होत बा सब अच्छा नइखे मालूम के बा झूठा के बाद सच्चा भेड़ियन के बीच में भइल नंगी जनता नाहीं त तखता पलटि देत जनता!   धरम-करम मेें उ बा गइल अझुराई जात-पात ऊंच-नीच के रोग लगाई भरम मे भागल जाले कांवर लेके जनता नाहीं त तखता पलटि देत जनता!   बरध जइसे रात-दिन बहावे पसीना पेट जिआवे फारि धरती के सीना किसमत पे रोवै बइठ करे कुछ ना जनता नाहीं त तखता पलटि देत…

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दू गो लघुकथा

१.बेटी के बियाह बेटी के बियाह खातिर चिन्तित महतारी अपना पतिदेव से कहली- एजी! रउरा बेटी के बियाह के कवनो चिन्ता बा की ना ? बेटी पढ़ि -लिख के पांच बरीस से नोकरीयो करऽ तिया, पैंतीस बरीस के उमीरो हो गईल। समय से शादी-बियाह कईल हमनीं के जिम्मेवारी बा बाकिर रउरा त कवनो फिकीरे नईखे। मेहरारू के बात सुनि के पतिदेव जी कहनीं- बेवकुफी मत करऽ। बबुआ इंजिनियरी पढऽ ता, दूसरा साल ह। अबहीं बियाह के बात टारऽ, काहां से आई हर महीना पच्चीस हजार रुपीया आ हमनीयों के आपन…

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