कुकर्मनासा

आपन गाँव आउर आपन माटी के सोन्ह महक सभके भाव- विभोर क देवेले | पीढ़ी दर पीढ़ी के संजोवल इयादन के मंजर अपना के ओहमे रससिक्त करे लागेलन | आउर अगर अपना गाँव के नीयरे कवनो नैसर्गिक बनस्थली होखे , त उ मनई  के मन मोर लेखा नाचहूँ लागेला  | टकटकी बान्ह के निहारल आउर निहारत – निहारत रोंआ जब भरभराए लागेला ,तब अंखियो ओह सुन्दरता के रसपान करत ना अघाले | भोरे – भोरे चिरई चुरमुन के चंह – चहाँइल जब कान में परेला , त उ कवनो बड़…

Read More

करतब वाली मुनिया

“का बताई बाबुजी, हमरा खातिर त रउरे लोग भगवान बानी, जे हमर करतब देखी के कुछ पइसा दे देत बानी लो, हम नईखी जानत की अल्लाह के ह ss अउरी राम के हs, हमरा खातिर त ई दर्शक लोग ही राम अउरी अल्लाह हवे लोग”, करतब वाली कहलिन। थोड़ा सास लइके उ फिर कहली,”जब हमरा ,मुनिया के,अउरी ओकरा  छोट भाई  के, बाबुजी के भुख लागेला त हमनी के हाथ मेहनत खातिर उठे लागेला, निगाह बाजार के कोना तलासेला कि, जहवा करतब दिखाई जा अउरी दर्शक के भीड़ लागे, पइसा ज्यादा…

Read More

तलफत भुभुरी सोंच के

सोंचे में सकुचातानी कहे में भीतरे डेराइला, रोज अंजुरी में धुंध सहोरले दिल के कठवत में नेहाइला।। बेवहार के बागि नोचाता फीकीर केहुके हइए नइखे, जब कहीं करम के पटवन कर त हम केकरो ना सोहाइला।। सभे बवण्डर बनिके चले रेगिस्तानी राग अलापता, कपट के करवन लोटकी से सभके के नेहवाइला।। कसमकस से कलपत काया करीखा के बनल संघाती, सोंच के तलफत भुभुरी में डेगे डेग नहाइला।। जेने देखीं झूठ के ढेरी ना बाजे कवनो रणभेरी, आंखि अछइत आन्हर भइनी कुकुर जस चिचिआइला।। कइसन दइब के ज्ञानी बस्तर झूठ फरेब…

Read More

हरिहरी काकी

भोरे भोरे फोन घरघड़ाइल त हरिहरी चाची कसमसात पलंग से उठ के ओकरे तरफ झटक के  बड़बड़ात चलली- कवना के भोरे भोरे आग लागल बा।आजकाल ई फोनवो आदमी के जान पर बनहुक नियन गोली दागता।आरे आवतानी रे।तनी थिर हो रे बाबा।तोरा नियन हमरा में जान थोड़े भरल बा, जे हमहु घनघना के पहुंच जाइब। उमिर भइल। कहत कहत झटकले फोन उठवली- परनाम अम्मा!  हम मनहरन। का भइल एतना भोरे भोरे तान कसले बाड़ऽ।  आरे अम्मा!  जरूरी बा।अबहीयें बम्बई जाये खातिर टरेन धरे के बा।एही से फोन कइनीहऽ। का भइल हो?…

Read More

सुहराई रवै रव

सुहराई रवै रव बकोट ता कोई खड़ा दूर से भी कचोट ता कोई।   अजादी सबै क नकोट ता कोई गुदगुद्दी बराय धइ लूट ता कोई।   हिया में बईठ के भकोट ता कोई निवाला उड़ाई सरबोट ता कोई।   जगह पाई जरिका तरोट ता कोई लगाई के आसन सघोट ता कोई।   छुआई के अँगुरी दरेट ता कोई उचारी के देहियाँ चमोट ता कोई।   एकै बात हर बार फेट ता कोई सिंघासन बदे भाय लोट ता कोई।   पारी पारा आई घघोट ता कोई पलत्थी जमाई के घोट…

Read More

काम

एकबेरा फिर से सोच ल रामसिंगार, काहेकि तू हउअ बाबू साहब ..तोहार बेटा बैंक में पार्ट टाइम काम कर ना सकी .. ग्राहक लोग के चाह- पानी पियावे के पड़ी । अउर भी छोट-मोट काम कुल करेके पड़ी साहब लोग से डाँट भी सुनेके पड़ी । बाबू बिनोदवा ई कुल काम करी ओकरा गांव से बाहर लिया जाईं डहेण्डल बनल फिरता ..हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाए लगले रामसिंगार .. साहब के आगा । साहब के मन पसीज गईल, नया-नया बैंक में नौकरी भईल रहे . पार्ट टाइम ‘वाटर ब्वाय’ राखेके पावर मिलल…

Read More

ऐतिहासिक किताबि ‘भोजपुरी साहित्य में महिला रचनाकारन के भूमिका’ के भव्य लोकार्पण भइल

महिला लोगन के  योगदान हमेसा से समाज, संस्कृति आउर सभ्यतन के बनावे आ जोगावे में रहल बा। बात भाषा के होखे भा संस्कृति के, महिला लोग एकरा हमेसा से भरले-पूरले बानी। महिला लोगन के योगदान हर भाषा, सभ्यता आउर संस्कृति में रहल बा। महिला लोगन के एही योगदान का बटोरे वाली ऐतिहासिक किताबि ‘भोजपुरी साहित्य में महिला रचनाकारन के भूमिका’ का भव्य लोकार्पण गांधी शांति प्रतिष्ठान में भइल। बतावत चलीं कि कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री अशोक लव किताबि के उपयोगिता बतावत कहलें कि सर्व भाषा ट्रस्ट के उद्देश्य अब सभका…

Read More

गीत

दिन धोइ साफ करे नभ इसलेटिया तारा गीत लिखि चान करे दसखतिया। तारा के पढ़ी तरई हो करुन कहानियाँ लिपि अनजान मुँहे नाही बा जबनियाँ देखे के बा खाली ओरि अन्त हीन गीतिया ।तारा लोग कहे लोक यह आँख का सिवान में छोट बड़ निगिचा आ दूर आसमान में हम कहीं नाहीं ई करेजवा के बतिया।तारा जिन ताकअ तरई आ चान ई बेमारी ह हम कहीं देखे द सुकून के इयारी ह उठत बनत नाहीं लागे असकतिया। तारा आनन्द संधिदूत 

Read More

महंगाई में भुलाईल रिस्ता

ईयाद करी छठी माई के गीत “ पांचऽ पुतऽर आदित हमारा के दिहिना, धिअवा मंगिले जरुर” छठ माई के परब करेवाली आजुओ ई गाना गावेली. आ सुनहु में ई गाना के बड आनन्द आवेला. यानी कि जब ई गाना के प्रचलन शुरू भईल होई ओहघरी आबादी कम होई. आजू के लोग से दिल से पूछी त केहू पांच गो लईका ना चाहत होईहे. जईसे जईसे समय बदले लागल कम परिवार होखे लागल. ओह घरी एगो घर में रिस्ता रहत रहे. परिवार आ गाँव में एक दोसरा के घर के आपन…

Read More

रउरा कहां सेयान बानी?

रउरा ना बुझबि सियासत रउरा अबहीं इंसान बानी, नेता खाली लाल बुझक्कड़ रउरा कहां सेयान बानी।। जनता जाहिल भकचोन्हर नेता नीमन सभमे सुनर, नेता छोडि़ सभे बा द्रोही नेताजी ग्यान बिग्यान बानी, रउरा कहां सेयान बानी।। रउरा सुनी इन्हिकर बात नीमन सीखइहें जात पात, एकरा से बड़ त सास्तर नइखे हमनी के इन्हिकर लगान बानी, रउरा कहां सेयान बानी।।       देवेन्द्र कुमार राय (ग्राम+पो०-जमुआँव, थाना-पीरो, जिला-भोजपुर, बिहार)  

Read More