मुहब्बत खेल ह अइसन कि हारो जीत लागेला भुला जाला सभे कुछ आदमी , जब प्रीत लागेला अगर जो प्यार मे मिल जा त माँड़ो-भात खा लीले मगर जो भाव ना होखे , मिठाई तीत लागेला । पड़े जब डांट बाबू के , छिपीं माई के कोरा मे अजी ई बात बचपन के मधुर संगीत लागेला कबों आपन ना आपन हो सकल मतलब का दुनिया मे डुबावत नाव उहे बा , जे आपन हीत लागेला कहानी के तरे पूरा करीं, रउवे बताईं ना बनाईं के तारे…
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गजल
कम में गुजर-बसर रखिहऽ! घर के अपना, घर रखिहऽ! मुश्किल-दिन जब भी आवे दिल पर तूँ पाथर रखिहऽ. जब नफरत उफने सोझा तूँ ढाई आखर रखिहऽ. आपन बनि के जे आवे सब पर खास नजर रखिहऽ. दर्द न छलके ओठन पर हियरा के भीतर रखिहऽ. एह करिखाइल नगरी में दामन तूँ ऊजर रखिहऽ. डॉ अशोक द्विवेदी
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जलल बा हिया में अगन धीरे धीरे मिलल जब नयन से नयन धीरे धीरे जुड़ल प्रीत के डोर जबसे ह उनसे सजावे लगल मन सपन धीरे धीरे नशा प्रीत के लग गइल बाटे अइसन रहत मन ह खुद में मगन धीरे धीरे बहक जाला तन मन न धीरज धराला बुलावेलु चुपके सजन धीरे धीरे अधर पे पड़ल जब अधर बाटे तहरा बढ़ल तब बदन के तपन धीरे धीरे घटा बन के जिनगी पे अइसन बरसलू खिलल दिल के सउँसे चमन धीरे धीरे ग़ज़ल ‘राज‘…
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