आगे बाबूजी लगनीं पीछे हम छोटका भाई सबसे आगे जोर-जोर से घड़ीघंट बजावत चिल्लात चलत रहुए- “राम नाम सत है ।” राधामोहन के हाथ में छोटकी टाँगी रहुए कहत रहुअन- “चाचाजी जी एक सव एकवाँ नम्मर पर बानीं सएकड़ा त फागुये राय पर लाग गइल रहे हमार ।” बड़ गजब मनई हउवन राधामोहन ठाकुरो! गाँव के कवनों जाति छोट-बड़ सबका में मसाने दउड़ जालें बोखारो रहेला तबो कवनों बहाना ना बनावस केहू किहाँ मउवत सुनिहें झट दउड़ जइहें । परदूमन भाई बोललें- “अच्छा चलीं नरब चाचा राधामोहन जी बाड़ें त…
Read MoreCategory: भोजपुरी कविता
तीन गो कविता
१ कारगर हथियार कोर्ट – कचहरी कानून थाना – पंचायत कर्मकांड के आडम्बर धर्म आजुओ बनल बा आमजन के तबाही के कारगर हथियार सबसे बिगड़ल रूप में साम्प्रदायिकता साम्प्रदायिक तानाशाह के दरवाजे बइठ आपन चमकत रूप निरख रहल बिया कारगर हथियारन के बल बढ़ल आपन सौंदर्य के। २ छलवा विकास जमीनी स्तर पर कम कागज पर चुनावी दंगल में अधिका लउकत बा बाजारवाद, भूमंडलीकरण उदारीकरण के पेट से उपजल विकास के देन ह दलित, स्त्री, आदिवासी आ पर्यावरण समस्या विकास के गोड़ तऽ कुचलल जा रहल बा गरीब, दलित मजदूर,…
Read Moreकौड़ी के तीन
इहवाँ कइसन साज सजल हौ कइसन बनल जमीन। हाथ घवाहिल पंचर सैकिल हथियो बजावे बीन॥ आपौ के त छूटल पसीना जेल क अजबै सीन। दक्खिन वाले पीटें छाती सगरे फेल मसीन।। लालटेन क तेल ओराइल उधो सुधो गमगीन। भर दुनिया करे हथजोरिया का रसिया का चीन॥ अब्बो झाल बजावे पपुआ हव कौड़ी के तीन । के मोदी के रोकी इहवाँ केकर अतना दीन॥ जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read Moreधत्त मरदवा हाँले
इसक समंदर डूबि नहइला, धत्त मरदवा हाँले। का रहला आ का बनि गइला, धत्त मरदवा हाँले।। ओझा सोखा पीर मौलवी, तहरे से माँगे पानी खबर नबीसन के खातिर तू, बनला अधिका ज्ञानी। नुक्कड़ नुक्कड़ तोही जपइला, धत्त मरदवा हाँले। का रहला आ——– डगर नगर में सभै सुनावे, तहरे रामकहानी आगे आगे महा गुरुजी,पीछे से मधुरी बानी। पकड़ि पकड़ि के खूबै कुटइला, धत्त मरदवा हाँले। का रहला आ——— के के बेंचला के खरीदल, केहू जान न पावल कलुआ खातिर प्रान वायु ह, तहरे गुनवा गावल। मुसुकी मुसुकी घाहिल…
Read Moreप्यार के भूखल
दुनियाँ के चहलो-पहल में लोग प्यार के भूखल रहेला प्रेम के ईयाद करावेला गर्मी में पेड़न के छाँव, जाड़ा में कम्बल, बरखा के झींसी-बूनी अउर समय बीतलो पर नदी के बहाव के नियन घेरत प्यार के सुखद ईयाद। ओही प्रेम के इयाद करावेला माई के गोदी में सूतला के भूख अचके भेंटल बाबूजी के डांट अउर गुरुजी के दिहल शिक्षा बेर बेर प्यार भरल शब्द जिनगी के मधुबन में रंगीन फूल खिला जालें मानवता के खातिर उनुका प्यार के ईयाद करा जालें। संतोष कुमार महतो हिन्दी सेवी विश्वनाथ चारियाली,…
Read Moreबात बनउवल
दुनियाँ में हम सबसे अउवल कविता हउवे बात बनउवल। गढ़ीं भले कवनों परिभाषा मंच ओर तिकवत भरि आशा गोल गिरोह भइया दद्दा साँझ खानि के पूरे अध्धा। कबों कबों त मूड़ फोरउवल। कविता हउवे….. कवि के कविता, कविता के कवि उनुके खाति कबों उपमा रवि अब त ज़ोर जोगाड़ू बाटै पग पूजी के चानी काटै। कबों कबों के गाल बजउवल। कविता हउवे….. कुछ के चक्कर भारी चक्कर ज्ञान कला के लूटत जमकर बोअल जोतल खेती अनके बेगर लाज खड़ा बा तनके कबों कबों के टांग खिंचउवल। कविता…
Read Moreहम नगर निगम बोलतानी
रात क मुरगा दिनही दारू लड़ी चुनाव अब मेहरारू काम धाम करिहें ना कल्लू मुँह का देखत हउवा मल्लू। जनता खातिर गंदा पानी हम नगर निगम बोलतानी। साफ सफाई हवा हवाई चिक्कन होखब चाप मलाई के के खाई, का का खाई इहो बतिया हम बतलाईं। जनता के भरमाई घानी हम नगर निगम बोलतानी। सड़क चलीं झुलुआ झूलीं दरद मानी भीतरें घूलीं गली मोहल्ला अंधा कूप दिन में खूबै सेंकी धूप जनता के सुनाईं कहानी हम नगर निगम बोलतानी। अब वादा पर वादा बाटै कुछ दिन जनता के…
Read Moreराजनीति कै इहै पहाड़ा
बता के पड़िया बांटा पाड़ा राजनीति कै इहै पहाड़ा जनता खातिर थूकल बीया अपने सोगहग भखा छोहाड़ा। बिना कमीशन बने न कुच्छौ शौचालय गऊशाला एकौ तन गयल आपन तल्ला तल्ला कोई बितावै नंगे जाड़ा। पईसा कहाँ गयल सरकारी के घुमत हव बईठ सफारी राजतन्त्र भी लज्जित बाटै बाजत दुअरे देख नगाड़ा। ब्लाक बीडीओ अउर सेकेटरी परधाने संग काटैं गठरी ठठरी लउकत लोकतंत्र कै बिन बोकला जस लगै सिंघाड़ा। मुँह में राम बगल छुरी लेके वोट बनावा दूरी का करबा अब हाल जान के जान पड़त अस मरलस माड़ा। बड़हन कुरता…
Read Moreमन के बात
बाति कहीं कि ना कहीं बाति मन क कहीं मन से कहीं क़हत रहीं सुनवइया भेंटाई का? उमेद राखीं भेंटाइयो सकेला कुछ लोगन के भेंटाइलो बा कुछ लोग अबो ले जोहते बा, त बा सुनवइया मन से बा मन के बा जोगाड़ल बा बिचार करे के होखे त करीं के रोकले बा रोकल संभवे नइखे लोकतंत्र नु हवे। जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read Moreकईसन होला गाँव ?
हम त भूलाइये गइनी कईसन होला केहूँ गाँव जब से पसरल शहर में गड्ढा में गईलन सगरे गाँव न दिखेला पाकुड़ के पेड़ न चबूतरा, न खेत के मेड़ न बाहर लागल ईया के खाट न रौनक बचल मंगलवारी हाट न अब लईकन के कोई खेल बचपन ले गइल मोबाइल के रेल न गुल्ली, न डंडा, न पिट्ठों, न गोटी गाँव गईलन शहर में खोजत रोटी कईसे बाची बाग-बगीचा फुलवारी रखे के तनी सलीका हाय-हेलो में मरल त जाला गोड़ लागे के सब तौर-तरीक़ा कईसे न…
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