रात क मुरगा दिनही दारू लड़ी चुनाव अब मेहरारू काम धाम करिहें ना कल्लू मुँह का देखत हउवा मल्लू। जनता खातिर गंदा पानी हम नगर निगम बोलतानी। साफ सफाई हवा हवाई चिक्कन होखब चाप मलाई के के खाई, का का खाई इहो बतिया हम बतलाईं। जनता के भरमाई घानी हम नगर निगम बोलतानी। सड़क चलीं झुलुआ झूलीं दरद मानी भीतरें घूलीं गली मोहल्ला अंधा कूप दिन में खूबै सेंकी धूप जनता के सुनाईं कहानी हम नगर निगम बोलतानी। अब वादा पर वादा बाटै कुछ दिन जनता के…
Read MoreCategory: भोजपुरी कविता
राजनीति कै इहै पहाड़ा
बता के पड़िया बांटा पाड़ा राजनीति कै इहै पहाड़ा जनता खातिर थूकल बीया अपने सोगहग भखा छोहाड़ा। बिना कमीशन बने न कुच्छौ शौचालय गऊशाला एकौ तन गयल आपन तल्ला तल्ला कोई बितावै नंगे जाड़ा। पईसा कहाँ गयल सरकारी के घुमत हव बईठ सफारी राजतन्त्र भी लज्जित बाटै बाजत दुअरे देख नगाड़ा। ब्लाक बीडीओ अउर सेकेटरी परधाने संग काटैं गठरी ठठरी लउकत लोकतंत्र कै बिन बोकला जस लगै सिंघाड़ा। मुँह में राम बगल छुरी लेके वोट बनावा दूरी का करबा अब हाल जान के जान पड़त अस मरलस माड़ा। बड़हन कुरता…
Read Moreमन के बात
बाति कहीं कि ना कहीं बाति मन क कहीं मन से कहीं क़हत रहीं सुनवइया भेंटाई का? उमेद राखीं भेंटाइयो सकेला कुछ लोगन के भेंटाइलो बा कुछ लोग अबो ले जोहते बा, त बा सुनवइया मन से बा मन के बा जोगाड़ल बा बिचार करे के होखे त करीं के रोकले बा रोकल संभवे नइखे लोकतंत्र नु हवे। जयशंकर प्रसाद द्विवेदी
Read Moreकईसन होला गाँव ?
हम त भूलाइये गइनी कईसन होला केहूँ गाँव जब से पसरल शहर में गड्ढा में गईलन सगरे गाँव न दिखेला पाकुड़ के पेड़ न चबूतरा, न खेत के मेड़ न बाहर लागल ईया के खाट न रौनक बचल मंगलवारी हाट न अब लईकन के कोई खेल बचपन ले गइल मोबाइल के रेल न गुल्ली, न डंडा, न पिट्ठों, न गोटी गाँव गईलन शहर में खोजत रोटी कईसे बाची बाग-बगीचा फुलवारी रखे के तनी सलीका हाय-हेलो में मरल त जाला गोड़ लागे के सब तौर-तरीक़ा कईसे न…
Read Moreबूड़ल बंस कबीर
1 तीन तिरिखा- देह, मन के, तत्त्व के। रूप-रस-धुनि-गंध-परसन तीर रहलन सत्त्व सारा देह के, आदिम समय से। भटक जाला बेबसी में अनवरत मन, भाव के फैलाव-घन में। चिर तरासा अस बयापल तत्त्व के बुनियाद में, कन परस्पर डूब रहलन तिश्नगी में। के कही कि के पियासल- नदी-जल कि माछरी? बेअरथ जनि हँस कबीरा। 2 छोटीमुटी गुड़ुही में बुलुकेला पनिया, छलछल गुड़ुही के कोर। पनिए से उपजलि नन्हींचुकी जीरिया, जीरिया भइल सहजोर। सातहूँ समुन्दर के सोखेली मछरिया मछरी में छुपल अकास। अँखिया में मचलेली नन्हीं-सी बुँदनिया, बुँदनि के मिटे न…
Read Moreलगै कि फागुन आय गयल
गायब पूष भयल बा भयवा, जइसे माघ….हेराय गयल। बहै ला पछुआ आन्ही जइसन, लगै कि फागुन आय गयल।। कइसो कइसो गोहूं बोवलीं, किल्लत झेललीं डाई कै, करत दवाई थकि हम गइलीं, खोखी रुकल न माई कै, मालकिन जी कै नैका छागल, कल्हिऐ कहूं हेराय गयल। बहैला पछुआ आन्ही जइसन, लगै कि फागुन आय गयल।। झंड भइल बा खेतीबारी, पसरल धान दुआरे पे, लेबी, बनियां केहु न पूछै, न्योता चढल कपारे पे, खरचा अपरम्पार देखि के , हरियर ओद झुराय गयल। बहैला पछुआ आन्ही जइसन, लगै कि फागुन आय गयल।। जाड़ा…
Read Moreगजियाबादी नगर निगम हौ
लूट खसोट मचवलें प्रतिनिधि जन सुविधन पर गिरल सितम हौ। गजियाबादी नगर निगम हौ॥ मेयर की तो बात न पूछो लूट रहल सौगात न पूछो ठिकेदारन के ज़ेबा भइया इनका खातिर अति सुगम हौ। गजियाबादी नगर निगम हौ॥ निगम के पिछे कचरा के ढेरी लूटे खातिर लगत हौ फेरी शिकायत कइला पर भइया जिनगी ससुरी भइल ज़ुलम हौ। गजियाबादी नगर निगम हौ॥ सड़कन पर गढ़्ढन के लाइल अन्हियारा विकास के साइन मोहल्लन में गटर के पानी इनका खातिर चलत फिलम हौ। गजियाबादी नगर निगम हौ॥ लगल करै स्वक्षता के नारा…
Read Moreलोकतन्त्र के लास जरी
जब मनई मनई के आस जरी बूझीं, लोकतन्त्र के लास जरी। गली गली भरमावल जाई उलटबासी पढ़ावल जाई आइल फिर चुनाव के मउसम फुटही ढ़ोल मढ़ावल जाई। कवनो बहेंगा, फिरो गरे परी । बूझीं, लोकतन्त्र के लास जरी। लागत हौ दिन बदलल बाटे एही से अब लउकल बाटे जनता के हौ जनलस नाही उनुके बेना हउकत बाटे। अब घरे घरे जाई, गोड़ परी। बूझीं, लोकतन्त्र के लास जरी। जात क लासा धरम क लासा गढ़ि गढ़ि के नवकी परिभाषा केहु क गारी केहु क गुन्नर देहल जाई…
Read Moreदेयाद
अलगाउज आँगना व्यथा औरी , मुंसुकी छाँटि व्यंग भर दौरी । मुँह बिजकल नियत बा खराब , घोर दुसुमन बनल देयाद बैरी । देयाद देयादी जरी भईल भौंरी , हर बात में हरदम जोरा-जोरी । दाजाहिसी देखजरूआ भईल , घोर दुसुमन बनल देयाद बैरी । ठेन बेसहेलन धूरी जेवर बरी , रेर हरदिन करे ढेरी बलजोरी । भोज- भवदी सभ छुट गईल , घोर दुसुमन बनल देयाद बैरी । चाल-ढाल बात -बतकही गैरी , बुझल धधकावेले खोरी-खोरी । अपनउज भाईचारा सभ गईल , घोर दुसुमन बनल देयाद बैरी । उमेश…
Read Moreधन पसु
बहेंंगवा-लफंदर बन घूमत रहन , ई त आहे प ढेला ढोवत रहन , अब त दिन – दूना रात – चौगना , बबुआ बड़हन नेता बनी बढ़न । पीठे पोछ फेंकी पिलकईलन , सभकर सलाह चुतरे दबईलन , सुमति टेरि कुमति के दाता भई , आग-पाछ विचारवा भुलईलन । नेत-धरम पीठिअउरा कईलन , सभके पछाड़ अगउरा भईलन , सभके एके लऊरी हंकलन , बनलो काम सभ बउरा कईलन । गोल बनाई गोलदार बनलन , सभके लूटि चौकीदार बनलन , सभकर त धन बाईसे पसेरी , कुबेर बन अवकातो थहलन। टटका…
Read More